शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022

अशोक कुमार पंत जी की कविता

🥺 किलै ? कांहुंणि ? जाणौछा 🤔
          (उत्तराखंड कून लागिरौ )

किलै हो कांहुणि लाग् रौछा सरासर बाट्  ?
ज्यै लागणौं कि तुमनकैं  पुरुखौंक् माट् ?
लाख, द्वी लाख दस-बीस लाख छोड़ि ,
कांहुंणि ? जाणौंछा दौड़ा दौडि ...
जांणीं भरिबै धरिे राखौ तुमन हुं सुनुक् भकार .…
जाणीं तुम बणिगौछा ततुकै लकारि……
कि जै धरि राखौ शहरों में बताओ ध्यैं जरा...
एक बार म्यार तर फरकि चाऔ ध्यैं जरा…
तुमार जाते ही खेति पाति है जालि बाँजि..
गोरु-भैंस-दै-दू्ध-नौनि-छाँ पट्ट हैजालि काँजि .…
कि सोचणरौछा परदेश में डबलनोंक् खान मिलल् कै ?
पत्त चलि जाल जब र् वाट कमाला भान् माँजि- माँजि ।
पढ़ी घोघीं त थ्वाड़ मैस् ले बण़ि सकनीं ।
अपन खुटान लक् लकाट करिबै ले ठाड्  है सकनी ।
हिम्मत करिबै जसिक तसिक पेट भरि सकनीं ।
आमदनि अठनि खर्च रुपांय किराय् भरि मरि- मरि ले जी सकनीं ।
भौतै मुश्किल छ प्वाथा डबल कमूंन..…
परदैशकि शान शौकत में नानतिन पढ़ूंन- लेखूंन..
ना घरक् न घाटक्  रौलै...
ज्यूंन छनां तक ले प्वाथा..….बिन ठाठ्-बाटकै रौलै ।
न परदेश तेर् होलोैे न तू अपन माटिक्वै रौलै….
अंत में खोर पकड़िबे कैक मुख थैं बैठी रोल्वै ..
समझदारी देखौ प्वाथा..अपन् ईज- बौज्यू कैं चा ।
उनुंल कसिकै काम करौ कसिकैं तुमन दुधाक् भाल् लगा । 
अपन खै न खै जसिकैं ले भै जतुकैं ले पढ़ा-लिखा ..
ठुलाठुल् परिवार हैबेर ले सबौंकै एक बट्यां ।
कि नहां गौं पिन सब त छू
ठंडी हाव ठंडो पाणि
फल फूलनकि बहार
ताज् ताज् साग पात शुद्ध आहार 
हरीं भरीं डान् कान् सुर सुर बयाल्
कतू भल छ मुलुक मायालो
हिम्मत कर धैर धर
गाड़ खेतन चा  गोरु भैंस पाल
एक ब्यू बोबेरन् त देख ..…..।
अहा.…..
साग पात धिनालि पानि
घाम बैठि खा नींबू सानि
एक ब्यू कतू नाज दिछ
 पुर एक्कै गड़-खेत  ले भकार भरि दिछ
लगन लगौ बानर सुअर हकौ
तेरि मिहनत रंगत ल्यालि
मन में सकून दी जालि
हाथ में हाथ धरीं नीं बैठ
ज्यून हैबेर ले मरीं नीं बैठ
सब हैबेर ले ततू नीं ऐंठ
थ्वाड़ भलि बातन कैं मन में गैंठ..…
अपन हाथ खुट भड़कौ जरा...
बांजा खेतन् हुं आंखान् सरकौ जरा….
ध्यानले सोच समझ कि भल कि नक छू..
 त्वेकैं अपन खेती पाति सुधारनाक् पुर हक छू ।
मन चित लगौ.. आलकस भजौ.…
खालि बैठि खोरो नैं खज्यौ.. ..
एक बार जै मन में ठानि ल्हिलै….
नाज-पानिल अपन भकार भरि ल्हिलै…. 
पुर जाग तेरि हाम होलि नौं होलो.. 
सांचि कूं प्वाथा सबौंहे भल तेरो गौं होलो..
तू घरहूं अ..मैंकैं सुधारि-संवारि नयीं ब्योलि जस बनौ.…
अ प्वाथा.…अब घरहूं अ….…।

अशोक कुमार पंत
   ( अभ्यासी )

बच्चों को अंग्रेजी के साथ कुमाउनी भी सिखायें श्रीविनोद पंत जी की कविता

बच्चों को कुमाउनी में इगलिस ऐसे भी पढाई जा सकती है -

ए फार एप्पल , बी फार बौय 
खुश्याणि खाला लागलि झौय | 
सी फार कैट डी फार डौल 
झकड करला मैंस कि कौल |
ई फार एलीफेन्ट एफ फार फिश 
सूरज निकलौ खुल ग्या दिश् |
जी फार गर्ल एच फार हैन 
झ्वाट बटी  निकालो पैन |
आई फार इंकपाँट जे फार जग 
हाव् चलणै द्वार  ढक |
के फार काइट एल फार लैग
झन करिया कैकै रग् 
एम फार मंकी एन फार नोज 
 एडिसनलि करी बल्ब कि खोज | 
ओ फार ओरेन्ज पी फार पटैटो 
ट्याड म्याड बाट भलीकै हिटो |
क्यू फार क्वीन आर फार रैबिट 
पाज्यूं कें गध्यारन  खित् |
एस फार स्नैक टी फार टौय 
लूण पिसो झौय मौय |
यू फार अम्ब्रैला वी फार वैन 
हिमुलि  गालन सुनै चैन |
डब्ल्यू फार वाच एक्स फार एक्स मस 
जस ब्वेला काटला तस |  
वाई फार याक जैड फार जेबरा 
याद करो ईसकूल जैबेरा ||
#विनोदपन्त_खन्तोली

#जंवाई
  

इस चराचर जगत में अगर कोई पद सबसे बडा है तो वो है जंवाई का पद और कोई सर्वोच्च सिंहासन है तो वो है जवांई  होना और कोई मान प्रतिष्ठा की पराकाष्ठा है तो वो भी जंवाई ही है | 
आज  लडकों को जीवनसंगिनी नही मिल पा रही है और उनका यह दु:ख इसलिए है कि उन्हें जंवाई बनने का परमसुख नही मिल पा रहा है | उन्हें तरह तरह की परीक्षा और योग्यताओ के मापदण्डों पर परखा जा रहा है | एक युवा के लिए ब्याह करना आईएएस बनने से अधिक कठिन हो गया है   यदि मैं अपने समय को याद करूं तो हमारे समकालीन युवाओ का विवाह बडी आसानी से हो जाया करता था योग्यता सिर्फ इतनी अर्जित करनी होती थी कि आप दिल्ली या किसी शहर रिटर्न हों और आपके पिताजी या मंगजोगी ( मध्यस्त या बिचौलिया ) वाकपटुता में कुशल हों |  भलो धर बर छ कहना ही पर्याप्त था . 
अब जब विवाह हो गया तो सभी ससुरालियों को अपना जंवाई राजदीवान लगता था | सबसे ज्यादा तो हमारी पत्निया ओच्छ्या जाती थी हमको पाकर , चूंकि गांव की सीधी साधी लडकियां होती थी तो उनके सपनो में राजकुमार आता ही नही था | विवाह या पति के नाम पर तो वो शरम से अकेले में भी  लाल हो जाती थी |  सहेलियों में भी कहा करती मैं शादी ही नही करूंगी पर जब मां बाप ब्या ठरयाते तो तुरन्त मान जाती थी , कैसा है क्या है ये पसन्द है नही है या यूं कहिये कि लडके को नापसन्द भी कर सकते हैं ये उन बेचारियों को मालूम ही न था |    शादी के बाद दूल्हा जैसा भी निकला उसके सांचे में ढल जाना ही उनकी नियति थी | 
विवाह के दिन तो दूल्हा मुकुट , हार , माला , झालर , कोट पैन्ट मुंह में ऐपण जैसे डिजाइन जिन्हे कुरमू कहते थे  में ठीक ही लगता था |  असली पता तो दुरगूण के दिन चलता था कि पैकिग के भीतर माल कैसा है ? 
पहली बार ( दुरगूण )  ससुराल जाते ही गांव वाले भी जंवाई को देखने पहुंच जाते थे ,  लडकी का परिवार तो जंवाई को पाकर धन्य हो जाता था | 
लडका दुबला पतला सिंट जैसा हो या गोल मटोल गुबर के थोपे जैसा या काला उल्टे तवे जैसा हो , मुह पटपटाया जैसा हो या ढडुवे जैसे गाल वाला , लम्बा लुट्यास जैसा हो या साढे तीन फिट का बौना सास को जंवाई मे कोई कमी नजर नही आती थी |  मुझे याद है जब मैं ससुराल गया तो मेरे बयालीस किलो के धागे जैसे शरीर को देखकर भी मेरे ससुराल के पडोसियों ने प्रोटोकाल के तहत मेरी सास से कहा था - लाआआआ भला जवैं ऐरीन .. तो मेरी सास के चेहरे की चमक ऐसी हो गयी थी मानो हिमालय पर सूरज की पहली किरण पड रही हो | वो गर्वित संतोष से बोली थी -  होय भालै छन पैं , दुबाव पताव छन पर छाजन छन | ढ्योर कैलै बाकि लाग भलै कम लाग कि फरक पडौं .
काले कलूटे जंवाई को भी सासू मांऐ कहती थी -  जरा कलसुवाल छन , पर नाक् नि देखीन , रसील काल् छन .. किसन भगवान नि छिये काल् ? 
गोल मटोल बेडोल को कहा जाता - रंग रूप तो भगवानक दिई भै , बच रई चैनन . 
अगर जंवाई मोटे मिल गये तो कहा जाता था - शरीर मोट् छ पर  छाव् छरबट गजब छन ,  सब कामाक भाय , घर पन ले एक मिनट खालि नि बैठन बल | 
ठिगने या बौंने जवाई को कहा जाता था - अरे भला भाल गुदुक जास छन , चार मैसन में बैठी घच्च कन  कतुक भाल् देखीनी | 
बिलकुल पटपटाऐ चुतरौव जैसे गालो वाले की तारीफ कुछ यूं की जाती थी - अरे मैसाक् गुण देखण चैनन  आब ब्या हैगो सन्तोषलि मोटै जाल् | 
अगर जंवाई नकचढा , तुनकमिजाज हो तो कहा जाता था - खर आदिम भाय , लोपड चापड भल नि लागन तनन | 
अगर जंवाई बैचाल टाईप , बिलकुल लाटा पप्पू  आ गया तो सासू मां लोगो को बताती - हमार जवैं धरती भाय धरती , धीर गम्भीर , सिद इतुक कि गोठ नि बादा भितरै बाद | 
अगर दिल्ली रिटर्न जवाई बेरोजगार निकल गया तो भी चिन्ता की बात नही , सास ससुर के पास इसका भी हल था -  अरे चेलि कैं पालि हालाल , भुक ज के मरण दयाल , खेति पाति छनै छ , चेलि में जै हुनर होलौ कर खालि कारबार . 
   मतलब सास ससुर के लिए जवाई में कोई कमी नही होती थी |  साली का तो कहना ही क्या ? उसके भिन्ज्यू गांव की हरुलि परुलि , मीना , गोबिन्दी सबके भिन्ज्यू से ज्यादे स्मार्ट हुए | 
सच कह रहा हूं हमारे जिन अवगुणो की वजह से गांव वाले हमें चिढाते थे वो ससुराल आते ही ऐसे गुणो में परिवर्तित हो जाऐगे हमने सोचा तक नही था |  काले रंग की वजह से कई या कल्लू कहे जाने वाले लडके को जब ससुराल में  रसीला काला कहा जाता तो तब पता चलता कि काले रंग का एक शेड ऐसा भी होता है |  जिस पतले शरीर के कारण हमें लुतरा या लुत्ती कहा जाता था ससुराल जाकर पता चला कि हम छाजन हैं | 
मोटे को खुद नही पता कि वो छाल् छरबट है | जिस बेरोजगारी का तंज मां बाप हर समय मारते थे और कहते थे कि आगे जाकर भूखा मरेगा उसे सास के बचनो से पता लगता था कि वो तो पत्नी को भी पाल लेगा वो भी बिना कुछ करे धरे | जिस बौने ठिगने दिनेश को घर गांव में दिन्नू ठिन् कहते थे उसे क्या पता था कि वो चार आदमियोॆ मेॆ बैठा जमता है |
और तो और लाटा या बैचाल जंवाई भी ससुराल जाकर धीर गम्भीर धरती टाइप निकलता है इससे सुखद आश्चर्य और क्या होगा ? 
इसीलिए मै बार बार दोहराता आ रहा हूं कि दुनिया की सबसे महान उपलब्धि जंवाई बनना है |  इसलिए हे युवाओ ! उठो , सघर्ष करो और जवाई बनने का लक्ष्य निर्धारित करो इसे पाकर रहो | मेरी शुभकामनाऐ तुम्हारे साथ हैं | 
#विनोदपन्त_ की कलम से

राजेन्द्र सिंह भण्डारी जी की कविता

         उज्याड़ (राजेंद्र सिंह भंडारी)

कैक छू रे बल्द सफ़ेद,  टोड़ि भेर बाड़ लगो
समावना किलै नां क तुम, फिर उज्याड़ लगो

सुणो रे भगुली आमक छू, या सरुली मैक छू
हाथ जोड़नूं रे  हकै ल्याओ, ऊ बल्द जैक छू

तुमुहें ना य बल्द हें  कौनूं, हैक भाग पुरि जो
जैक लै छू रे ह बल्द, जल्दी से भ्योव घुरि जो

एक बेलुक लै य बल्दल,  बाण झन पाया तुम
बाई बोई ह उज्याड़िक, खाण  झन पाया तुम

ओ इजा कथां  मरूं, बल्दकि  कमर  टूटि जो
निकलि जान प्राण बल्दा, त्यर ख्वर फुटि जो

बौली भ्यार  बटि पोरूँ,  हुड़की  बौल लगै र
पाणी चारी देखो धें इजा, उदुक डबल बगै र

को मर ह बल्दक, हुनिं कसिक यूँ धान आब
खवौंल के नांतिनों कें निकलें य ज्यान आब

कान नि बुड़ों गुसें कें,  तेरि  गुस्याँण मरि जो
लागि जो मेरि गाई बल्दा, तिमें बांण पड़ि जो

कतुक बेशर्म छा रे, तुम भ्यार औना किलै ना
कैक छू क ह काटण, मिकें  बतौना  किलै ना

झन सुणिया रे नि सुणना, मी लै घर जानूं आब
झोई टपकी पकौनूं आज, और भात खानूं आब

भूलते जा रहे हैं वैदिक कैलेंडर, रट लीजिए।
हमारा नववर्ष चैत्र प्रतिपदा से आरंभ होता  है 
1. चैत्र 
2. वैशाख
3. ज्येष्ठ 
4. आषाढ़ 
5. श्रावण 
6. भाद्रपद 
7. अश्विन 
8. कार्तिक
9. मार्गशीर्ष 
10. पौष
11. माघ 
12. फाल्गुन 

चैत्र मास ही हमारा प्रथम मास होता है, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष को नववर्ष मानते हैं। चैत्र मास अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्च-अप्रैल में आता है, चैत्र के बाद वैशाख मास आता है जो अप्रैल-मई के मध्य में आता है, ऐसे ही बाकी महीने आते हैं l फाल्गुन मास हमारा अंतिम मास है जो फरवरी-मार्च में आता है, फाल्गुन की अंतिम तिथि से वर्ष की सम्पति हो जाती है, फिर अगला वर्ष चैत्र मास का पुन: तिथियों का आरम्भ होता है जिससे नववर्ष आरम्भ होता है।

हमारे समस्त वैदिक मास (महीने) का नाम 28 में से 12 नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं।

जिस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर होता है उसी नक्षत्र के नाम पर उस मास का नाम हुआ।

1. चित्रा नक्षत्र से चैत्र मास
2. विशाखा नक्षत्र से वैशाख मास
3. ज्येष्ठा नक्षत्र से ज्येष्ठ मास
4. पूर्वाषाढा या उत्तराषाढा से आषाढ़
5. श्रावण नक्षत्र से श्रावण मास 
6. पूर्वाभाद्रपद या उत्तराभाद्रपद से भाद्रपद 
7. अश्विनी नक्षत्र से अश्विन मास 
8. कृत्तिका नक्षत्र से कार्तिक मास 
9,. मृगशिरा नक्षत्र से मार्गशीर्ष मास 
10. पुष्य नक्षत्र से पौष मास 
11. माघा मास से माघ मास
धन्य थे हमारे पूर्वज,🙏🏻
12. पूर्वाफाल्गुनी या उत्तराफाल्गुनी से फाल्गुन मास

मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

श्री विनोद पंत जी की कविता

कम्पनी वाल कर दिनी अणकसी काव्  ,
तीन रुपैं चिप्स में  भरनी सात रुपै हाव् | 
रैपर में काजू बदाम भीतर ढूढण पडौं ,
दाज्यू इनार चक्कर में खिम्मू दुकानदार कैं जै सुणण पणौ ||
                    ------------
हर तीन  म्हैण में रेट बढै दिनन 
हर तिसार दिन भीतरक माल घटै दिनन | 
हात पुजन नै खाप्  खाली पैकेट सुंघण पडौं ,
दाज्यू इनार चक्कर में खिम्मू दुकानदाल कैं जै सुणण पडौं ||
                   ----------------
सात ग्राम क पैकेट में लेखनन तैतीस परसेन्ट फिरी  ,
एक पैकेट लूछला दूसर जां चिरी 
फिर स्टेपलर लगै बेर पैकेट सिणण पडौं 
दाज्यू इनार चक्कर में खिम्मू दुकानदार कैं जै सुणण पडौं ||
                    -------------------
तुरतुरे सुरसुरे टेडा मेडा सोया अनाप सनाप 
रंगील चंगील पैकेट खायो पेट खराब 
नानतिन जिद करनी फिर झुकण पडौं 
दाज्यू इनार चक्कर में खिम्मू दुकानदार कैं जै सुणण पडौं ||
                   ---------------------
लोग रैपर खेडि दिनी चिप्स खैबेर 
नालि में बुज लागि जां गन्दगी ढेर 
फिर यो नुकसान सबन कें भुगतण पडौं 
दाज्यू इनार चक्कर में खिम्मू दुकानदार कैं जै सुणण पडौ ||
       #विनोदपन्त_खन्तोली

शनिवार, 24 दिसंबर 2022

कभै पहाड़ उनै धै

आदरणीय श्री तारा दत्त तिवारी जी के श्री मुख से पहाड़ के प्रति प्रेम प्यार का चित्रांकन 🌹🙏🏻🌹

कभै पहाड़ ऊंनां ध्यैं..…

🙏🏻 मुलुककि नरै,  बुड़-बाड़िनक् आशीर्वाद ,दगड़ि़नक् आस् 🙏🏻

🌹🙏कभै पहाड़ ऊनां ध्यैं 🙏🌹

कभै पहाड़ ऊनां ध्यैं ।
हरीं साग-पात,कद्दू-लौकी है रईं,
तुमोर बाट चान-चान आंख नि सै रई,
धिनालिकि बहार आ रै,
पार दाज्यूकि ले भैंसी ब्यारै,
थ्वाड़ दिन त दूध-दै-छां चाखि जानां ध्यैं ।
कभै पहाड़ ऊनां ध्यै ।
बाड़-बोटनमें फल लागि रईं,
हमार त दांतै नि भै खालि चै रईं,
कतू भल काकाड़ाक बोट है रईं,
बाड़ौ में जै बै काकाड़ाक छुन बुकूना ध्यैं ।
कभै पहाड़ ऊना ध्यैं ।
हिसालू-किल्मोड़ी हैरै,
काफलौंकि बहार छा रै,
नींबू-नारिंग-पुलम-खुमानि ,
आ बैर चाखि जानां ध्यैं।
कभै पहाड़ ऊनां ध्यैं ।
हरी-भरी डाना-काना,
खै जानां नींबूसाना,
नानछनाक दगडि़न कैं,
कभै भेटि जानां ध्यैं ।
कभै पहाड़ ऊनां ध्यैं ।
ईजा-बौज्यू ,बुड़-बाड़ी ,
धुंधलि हैगै आँखों की तारी,
फाटि गयीं लुकुड़ सब,
थ्वाड़ नयीं ल्यूनां ध्यैं ।
कभै पहाड़ ऊनां ध्यैं ।
कि?कभै नि ऊनीं याद,
ततु लागि रौ परदेश स्वाद ?
थकि गया हुनाला आ बेर,
थ्वाड़ दिन पटै बिसूनां ध्यैं ।
कभै पहाड़ ऊनां ध्यैं ।
कभै पहाड़ ऊनां ध्यैं ।  

अशोक कुमार पंत 
   (अभ्यासी)

पहाडों क खुशक ठण्ड

कुछ दिनों बटी मौसम ठण्ड ठण्ड हैगो

एक आद हप्त बै तुस्यार ले पडन फैगों

अच्यालू पड़ी बड़ी कडाके ठण्ड छु

अदजगई ठिटुक रौन मे धूमन छु

हव्वक फरफराट तुस्यरैक कडकडाक

आब त बिछुणम बै उठुहू न मन छु

अच्यालू पड़ी बड़ी कडाके ठण्ड छु

हाथ मे ठण्ड पाणि लागि गो त 
तबियत झण्ड छु

खण मे पकौडी समोसा अहम अंग छु
स्वर्ग ले या नर्क ले या लासणेकि चटडि अगर संग छु

टोपी मफ्लर क करनू मे बखान
बनैन जैकिट जो ले गरम हू उ इन दिनों महान

द्वि महिणक ठण्ड हमुकें लागु अनंत
धिरज धरिया मित्रों आघिल आल बसंत

कडाकें ठण्ड दगड भौत भौत धन्यवाद

कविता _देवेन्द्र सती 
पपनैपुरी बटी

गुरुवार, 22 दिसंबर 2022

श्री मनोज कृष्ण जी(सनातनी हिन्दू व्यास जी)

रिसोर्ट मे शादियां ! 
नई सामाजिक बीमारी  

हम बात करेंगे शादी समारोहो में होने वाली भारी-भरकम व्यवस्थाओं और उसमें खर्च होने वाले अथाह धन राशि के दुरुपयोग की!

सामाजिक भवन अब उपयोग में नहीं लाए जाते हे
शादी समारोह हेतु यह सब बेकार हो चुके हैं
कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियां होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है!
अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादीया होने लगी है!

शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है
आगंतुक और मेहमान सीधे वही आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं।
इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन होते हैं वहीं पहुंच पाते हैं!
और सच मानिए समारोह के मेजबान की दिली इच्छा भी यही होती है कि सिर्फ कार वाले मेहमान ही  रिसेप्शन हॉल में आए!!
और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है 
दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी है

किसको सिर्फ लेडीस संगीत में बुलाना है !
किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है !
किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है !
और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है!!
इस आमंत्रण में अपनापन की भावना खत्म हो चुकी है!

सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है!!
महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं!
मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं!
हल्दी लगाने के लिए भी एक्सपर्ट बुलाए जाते हैं!
ब्यूटी पार्लर को दो-तीन दिन के लिए बुक कर दिया जाता है !
प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं जिसके कारण दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है!!
क्योंकि सब अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए हैं!
मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका है!
रस्म अदायगी पर मोबाइलो से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं !
सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं!
और यही अमीरीयत का दंभ उनके व्यवहार से भी झलकता है !
कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं
परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता !
वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने अपने कमरो में ही गुजार देते हैं!!

विवाह समारोह के मुख्य स्वागत द्वार पर नव दंपत्ति के विवाह पूर्व आलिंगन वाली तस्वीरें, हमारी विकृत हो चुकी संस्कृति पर सीधा तमाचा मारते हुए दिखती हैं!

अंदर एंट्री गेट पर आदम कद  स्क्रीन पर नव दंपति के विवाह पूर्व आउटडोर शूटिंग के दौरान फिल्माए गए फिल्मी तर्ज पर गीत संगीत और नृत्य चल रहे होते हैं!
आशीर्वाद समारोह तो कहीं से भी नहीं लगते है
पूरा परिवार प्रसन्न होता है अपने बच्चों के इन करतूतों पर पास में लगा मंच जहां नव दंपत्ति लाइव गल - बहियाँ करते हुए मदमस्त दोस्तों और मित्रों के साथ अपने परिवार से मिले संस्कारों का प्रदर्शन करते हुए दिखते हैं!

मंच पर वर-वधू के नाम का बैनर लगा हुआ होता है!
अब वर वधू के नाम के आगे कहीं भी चि० और सौ०का० नहीं लिखा जाताक्योंकि अब इन शब्दों का कोई सम्मान बचा ही नहीं
इसलिए अंग्रेजी में लिखे जाने लगे है

हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा एसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है

मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है 
आपका पैसा है , आपने कमाया है,
आपके घर खुशी का अवसर है खुशियां मनाएं,
पर किसी दूसरे की देखा देखी नही!
कर्ज लेकर अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा!
जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करिएगा
4 - 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है !
और आप कितना ही बेहतर करें 
लोग जब तक रिसेप्शन हॉल में है तब तक आप की तारीफ करेंगे!
और लिफाफा दे कर आपके द्वारा की गई आव भगत की कीमत अदा करके निकल जाएंगे!
मेरा युवा वर्ग से भी अनुरोध है कि 
अपने परिवार की हैसियत से ज्यादा खर्चा करने के लिए अपने परिजनों को मजबूर न करें!

आपके इस महत्वपूर्ण दिन के लिए 
आपके माता-पिता ने कितने समर्पण किए हैं यह आपको खुद माता-पिता बनने के उपरांत ही पता लगेगा!

दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए!

अपना दांपत्य जीवन सर उठा के, स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए धर्म के लिए सार्थक बनाइए !   
नमो राघवाय🌹🌹

सोमवार, 19 दिसंबर 2022

बूबू

बूबू 
बूबू अब सौ साल के होंगे 
सारा जीवन पहाड में रहे  
लाल चावल का भात 
भाटों की चुटकाँणी  
तम्बाकू की फर्सी 
याद करते हैं 
वो अब हल्द्वानी में रहते हैं, रोज़ दोपहर वो छत पर जाते हैं 
पहाडों की उँची- और उँची शृंखलाओं को ताकते हैं 
पूछा, बूबू क्या देखतो हो 
अरे , वो जो पहाड है न,
वहाँ था रे चार नाली का खेत 
खूब चावल , भट, मूली ,गढेरी होने वाली ठहरी ...
 पूछा, यहाँ से कहाँ दिखेगा बूबू !
क्यों रे, वहाँ से हम देखते थे हल्द्वानी को... 
बूबू वहाँ से सब साफ़-साफ़ दिखता है, हवा जो हुई साफ़...
कैसा समय आ गया रे ,
कौन आता था यहाँ भाभर में घाम खाने,
बुखार और उमस में मरने को...
 ये हल्द्वानी पहाड में क्यों नहीं रे नतिया,
पहाड का आदमी पहाड में रहता...
अब क्या जवाब दूँ बूबू को कि पहाड तो भेंट चढ़ गया निकम्मे हाकिमों के हाथ..
ये जो  टूटा हुआ पहाड है, बिखरा पड़ा है मैदानों में...
अब समेटे तो समेटे कौन,
जिनको समेटना है, वो खुद मैदानों में बिखरे पडे हैं।
बूबू 
बूबू अब सौ साल के होंगे 
सारा जीवन पहाड में रहे  
लाल चावल का भात 
भाटों की चुटकाँणी  
तम्बाकू की फर्सी 
याद करते हैं 
वो अब हल्द्वानी में रहते हैं, रोज़ दोपहर वो छत पर जाते हैं 
पहाडों की उँची- और उँची शृंखलाओं को ताकते हैं 
पूछा, बूबू क्या देखतो हो 
अरे , वो जो पहाड है न,
वहाँ था रे चार नाली का खेत 
खूब चावल , भट, मूली ,गढेरी होने वाली ठहरी ...
 पूछा, यहाँ से कहाँ दिखेगा बूबू !
क्यों रे, वहाँ से हम देखते थे हल्द्वानी को... 
बूबू वहाँ से सब साफ़-साफ़ दिखता है, हवा जो हुई साफ़...
कैसा समय आ गया रे ,
कौन आता था यहाँ भाभर में घाम खाने,
बुखार और उमस में मरने को...
 ये हल्द्वानी पहाड में क्यों नहीं रे नतिया,
पहाड का आदमी पहाड में रहता...
अब क्या जवाब दूँ बूबू को कि पहाड तो भेंट चढ़ गया निकम्मे हाकिमों के हाथ..
ये जो  टूटा हुआ पहाड है, बिखरा पड़ा है मैदानों में...
अब समेटे तो समेटे कौन,
जिनको समेटना है, वो खुद मैदानों में बिखरे पडे हैं।

रविवार, 18 दिसंबर 2022

शनिवार, 17 दिसंबर 2022

श्रीमान महेश रौतेला जी की कविता

हिमाला तु साजि है जैयै
दैब्त यैंला,दैब्त नैह जैंला
हिमाला तु साजि है रैयै।

य बद्री य केदार छु
य जागेश्वर य बागेश्वर छु,
यां सोर घाटि,यां गेवाड़ छु
द्यब्तु कि भूमि सिरांणें छु।

पांडवों कि बात यां कनि
स्वर्ग जांणि बा ट यां बतानि,
हरि सुकि घा काटण में
घस्यार यां गीत भा ल गानि।

कतु दिन मैंल बिताइ
कतु दिन तमूल बिताइ,
निखरि तुम लै ग या
निखरि मैं लै ग य।

हिमाला तु बासि झन हैयै
नक भल चलते रौं,
सड़ि-पड़ि बगि जां
हिमाला तु बासि झन हैयै।
          ****
* महेश रौतेला

अंकिता पंत जी की कविता

दो जोड़ी उम्मीद 

एक दिन ऐसा भी वक्त आयेगा 
जो तेरी सारी असफलताओं से टकराकर 
तेरे सारे सपने साकार  कर जायेगा 

उसे लोग बेशक किस्मत,चमत्कार जैसे नाम देंगे
पर तेरे पीछे खड़े वो दो जोड़ी हाथ कहेंगे 
हमें विश्वास था ,तू करके दिखायेगा 

सारी दुनिया खिलाफ होगी 
लोगों का स्नेह भी कम नजर आयेगा 
मगर वो दो जोड़ी आंखें कहेंगी 
हमें अहसास था,हमारा बच्चा सपना सच कर जायेगा 

कोई रास्ता भले रोक ले
संदेह भरी नजर से भले देख ले 
मगर वो दो जोड़ी पैर मजबूती देकर कहेंगे
हमें गर्व है था तुझ पर तब भी 
है आज भी, तू सच्चाई महसूस करायेगा
तू सपना साकार कर जायेगा।
       अंकिता पंत ✍✍

तारा पाठक जी की कविता

नदी को गाड़ बेशक बोल लेना
लेकिन गाड़ को नदी मत बोलना

क्योंकि गाड़ नदी बन सकती है 
ऊंचे पहाड़ों से बह कर

नदी गाड़ नहीं बन सकती
 मैदानों में रह कर 

गाड़ चट्टानों में सिर टकराकर
भी जीवंत है बेगवान है

नदी समतल में भी
शिथिल सी बेजान है

गाड़ का अपना सुसाट
 वाला संगीत है तराण है

नदी का शिशकियों वाला
अधमरा सा पराण है

गाड़ ही गंगाजल 
नदी तक पहुंचाती है

बड़प्पन भी ऐसा कि _
अपने को मिटा नदी में समा जाती है

गुरुवार, 15 दिसंबर 2022

मन और पानी

मन और पानी
मन भी पानी जैसा ही है, पानी फर्श पर गिर जाए तो कहीं भी चला जाता है। मन भी चंचल है।कभी भी कहीं भी चला जाता है।मन को हमेशा सतसंग और भजन-सिमरन के साथ जोडे
रखना है।जैसे पानी को फ्रिज में रखने से ठंडा रहता है और आॅईस बॉक्स मे रखने से सिमट कर बर्फ में परिवर्तित हो जाता है।वैसे ही मन फ्रिज रूपी सतसंग में ठंडा और शांत रहता है और भजन-सिमरन करने से  सिमट कर एक हो कर परमात्मा में लीन हो जाता है।अगर बर्फ को बाहर धूप में रखा तो वह पिघल कर पानी होकर
इधर-उधर होकर बिखर जाता है।हम लोग भी माया रूपी धूप में सतसंग से दूर होकर बिखर जायेगे।तो हमें हमेशा सतसंग और भजन-सिमरन से खुद को जोड कर रखना है🙏🙏🙏🙏

गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

अशोक कुमार पंत जी की कविता

😟 पढ़ीं - लेखीं बिरोजगार 😟

आर गयूं  पार गयूं...
गाड़ - गध्यार गयूं..
इसीकैं डोई रयूं..
सबहूं बौई रयूं..
    कि करूं हो तौई रयूं..
 दाज्यू..मीं बिरोजगार भयूं ।

यां चां.… कभै वां...
दौड़ि जां.. धां धां...
आजि तलक त मिली नां..
नौकरी ,  हमुंहूं छई कां... 
     ज्ञानोक् त मीं भंडार भयूं.….
  दाज्यू.. मीं बिरोजगार भयूं ।

एकल कौ एक काम कर..
कर्जाक् थ्वाड़ इंतजाम कर.
नानीं... ले के दुकान कर..
द्वी डबल आला घर ।
       कर्ज लीबेर कर्जदार भयूं ..
      दाज्यू... मीं बिरोजगार भयूं ।

कर्जाक आगोश में..
डुबि गयूं होश नैं..
मन चित में जोश नैं..
कैकैं  द्यूं दोष मैं..
        तिरसंकु जस लटकि गयूं.…
     दाज्यू .. मीं बिरोजगार भयूं ।

आन नैं के मान नैं..
कैं ले जाऊंत के सम्मान नैं..
ठुलि के पछ्याण नैं..
म्यार तर क्वे चाण नैं ..
      अटकि जस मझधार गयूं..
    दाज्यू.. मीं बिरोजगार भयूं ।

म्यार जतू ले यार छन्...
सब्बै दुकानदार छन्..
माँख ले नीं ऊंन दुकान पन्..
क्याले चुकूं ब्याज धन् ।
    मीं दुनीं में भार भयूं..
    दाज्यू ...मीं बिरोजगार भयूं ।

अशोक कुमार पंत
  ( अभ्यासी )

मंगलवार, 8 नवंबर 2022

राजु पाण्डेय जी की कविता

ठौर
***

पाथर वाला घर
उसमें दो छोटे छोटे कमरे
एक कमरे के एक कोने में चुलान
दूसरे कोने में देवता की थाई
दूसरे कमरे के एक कोने में
गेहूँ, मड़वा पीसने की चक्की
असोज में
एक कोने में मड़वा, मादरा
चार भाई बहिन, ईजा, आमा
साल में दो महीने की छुट्टी आते
फौजी पापा
एक बिल्ली और उसके बच्चें
नीचे गौठ में गौठ भर जानवर
आते जाते पोन-पाछी
बारिश में टप्प टप्प करती छत
खाना बनाते हुए होलपट्ट
फिर भी असज नहीं हुआ कभी
मन और रिश्ते बड़े थे और दिखावा छोटा
तो ठौर हो ही जाती थी।

शब्दार्थ:
चुलान - रसोई
थाई- घर के अंदर बना छोटा मंदिर
गौठ - पालतू जानवर बांधने का कमरा
पोन-पाछी - रिश्तेदार
होलपट्ट - धुंवा धुंवा
असज - परेशानी
ठौर - जगह

© राजू पाण्डेय
ग्राम - पो. बगोटी (चम्पावत)
यमुनाविहार - दिल्ली

शनिवार, 5 नवंबर 2022

श्री पूरन चन्द्र काण्डपाल जी की कविता

खरी खरी - 1159 :  गिच खोलणी चैनी

मसमसै बेर के नि हुन
बेझिझक गिच खोलणी चैनी,
अटकि रौछ बाट में जो दव
हिम्मतल उकैं फोड़णी चैनी ।

अन्यार अन्यार कै बेर
उज्याव नि हुन,
अन्यार में  एक मस्याव
जगूणी चैनी । 
मसमसै..

जात  - धरम पर जो
लडूं रईं हमुकैं,
यास हैवानों कैं भुड़ जास
चुटणी चैनी ।
मसमसै ...

गिरगिट जस रंग
जो बदलैं रईं जां तां,
उनुकैं बीच बाट में
घसोड़णी  चैनी ।
मसमसै...

के दुखकि बात जरूर हुनलि
जो डड़ाडड़ पड़ि रै,
रुणीकैं एक आऊं 
कुतकुतैलि लगूणी चैनी ।
मसमसै बेर...

पूरन चन्द्र कांडपाल
05.11.2022

गुरुवार, 3 नवंबर 2022

दीपक करगेती जी की कविता

*घर कुड़ी पीछाड़ी कुरि कटारि*

कुड़ी पीछाड़ी, बाड़-ख्वड़ हैं छि
उनु मजि हंछि ,साग हरि
कोई उन्यूमें प्यांज लगा छि
कोई उगेछि उन्यूमें गडेरि
पै कसि हौला साग हरि?
को उगाल उन्यूमें गडेरि?
गौं बाखेइ ,बांजि पड़ी ग्ये
घर कुड़ी पीछाड़ी, कुरि कटारि ।।

एक हौवका बल्द हछि
कतु ते मंडु ,कतु झुवंर हछि
धान भकार भरिए रछि
भरिये र छि ग्यों ढूकैरि
जंगल जानर हांग घुसी री
कसि करूं हो खेति खन्यारि
गौं बाखेइ, बांजि पड़ी ग्ये
घर कुड़ी पीछाड़ी, कुरि कटारि ।।

को भुलौ,उं पांड़ी नोहौ 
पांड़ी गेलन,पांड़ी गागेरि
बकरां पोथिलु हुं, हैं छि छापेरी 
सुक गि नोहौ ,ना बचि गागेरी
 को बताओ ,बुंड़ोल छापरी
गौं बाखेइ, बांजि पड़ी ग्ये
घर कुड़ी पीछाड़ी ,कुरि कटारि ।।

त्योहारूं दिना, झर फर हैं छि
चैत महैन ,फुल खेलछि
जै घर मजिक भौ हैराया
उ भौ नामेकि ,घुमछि टोपेरी 
घा काटनि ,हछि घास्यारी
खों बनाड़ी, नाम रस्यारी 
आम गुठेइ,बनछि पिपिरि
गौं बाखेइ ,बांजि पड़ी ग्ये
घर कुड़ी पीछाड़ी, कुरि कटारि ।।

                स्वरचित
            दीपक करगेती
               

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022

चारु तिवारी की कविता

आजकालक हालात पर शेरदा 'अनपढ' ज्यूक एक भौते भलि कविता मिलि सबनाक लिजि भेट 

तुम भया ग्वाव गुसें। 
हम भया निकाव गुसें॥ 

तुम सुख में लोटी रया। 
हम दुख में पोती रया॥ 

तुम हरी काकड़ जस। 
हम सुकी लाकड़ जस॥ 

तुम आजाद छोड़ी जती। 
हम गोठ्यायी बाकार जस॥ 

तुम सिंघासन भै रया। 
हम घर घाट है भै रया॥ 

तुम स्वर्ग, हम नर्क। 
धरती में, धरती आसमानौ फर्क॥ 

तुमरि थाइन सुनक रवाट। 
हमरि थाइन ट्वाटै-ट्वाट॥ 

तुम ढड़ुवे चार खुश। 
हम जिबाइ भितेर मुस॥ 

तुम तड़क भड़क में। 
हम बीच सड़क में॥ 

तुमरि कुड़ि छाजि रै। 
हमरि कुड़ि बाँजि रै॥ 

तुमार गाउन घ्यूंकि तौहाड़। 
हमार गाउन आसुँक तौहाड़॥ 

हमूल फिरंगी ग्वार भजाय। 
तुमूल हमार छ्वार भजाय॥ 

तुम बेमानिक रवाट खांनया। 
हम ईमानक ज्वात खांनया॥ 

तुम पेट फुलूण में लागा। 
हम पीड़ लुकूण में लागा॥ 

तुम समाजक इज्जतदार। 
हम समाजक भेड़ गंवार॥ 

तुम मरी लै ज्यून् भया। 
हम ज्यूणैजी मरी भया॥ 

तुम मुलुक कैं मारण में छां। 
हम मुलुक में मरण में छां॥ 

तुमूल मौक पा सुनुक महल बणै दीं। 
हमूल मौक पा गर्धन चड़ैदीं॥ 

लोग कूनी ऐक्कै मैक च्याल छां, 
तुम और हम। 
अरे! हम भारत मैक छां, 
तुम साव कैक छा॥
 ...................... 

कुछ साथियों ने कहा हिन्दी में अनुवाद कर दो. ज्यों का त्यों तो नहीं, लेकिन भाव हिन्दी में रखा है.

तुम सुख में मस्त, 
हम दुख में पस्त.

तुम हरी ककडी जैसे,
हम सूखी लकड़ी जैसे.

तुम छूटे अराजक सांड जैसे, 
हम बाड में बंद बकरी जैसे.

तुम सिंहासन में बैठे हो, 
हम अपने घर भी खो बैठे हैं.

तुम स्वर्ग, हम नर्क, 
धरती में धरती, आसमान में फर्क.

तुम्हारी थाली में सोने की रोटी, 
हमारी थाली में छेद ही छेद.

तुम तड़क भड़क में, 
हम बीच सड़क में.

तुम्हारा मकान सजा है, 
हमारा घर बंजर है.

आपके गले में घी की धार, 
हमारे गले में आंसू की धार.

हमने फिरंगी अंग्रेज भगाए, 
तुमने हमारे बच्चे भगाए.

तुम बेइमानी की रोटी खा रहे हो, 
हम ईमानदारी के जूते खा रहे हैं.

तुम पेट फुलाने में लगे, 
हम पीडा़ छुपाने में लगे.

तुम समाज के इज्जतदार, 
हम समाज के भेड़ गंवार.

तुम मर के भी जिन्दा, 
हम जिंदा रहकर भी मरे हुए.

तुम देश को मार रहे हो, 
हम देश पर मर रहे हैं.

तुम्हें मौका मिला तो सोने के महल बना दिए, 
हमें मौका मिला तो अपनी गर्दन चढा दी.

लोग कहते हैं कि एक ही मां के बेटे हैं-
तुम और हम। 
अरे! हम भारत मां के हैं
तुम किसके हो!

 *चारू तिवाड़ी.....*

बुधवार, 28 सितंबर 2022

शंकर जोशी जी की कविता

****बहुत कुछ*****
--------------------------
आँमाँ की पैदाइश 
उन्नीस सौ तितालीस की है !
यानि आजादीसे 
पांच साल बड़ी !
आँमाँ इलाज कराने 
हल्द्वानी आई ।
परचा बनाया नंबर लगाया 
लोग आते रहे जाते रहे 
कोई सीधे अंदर जाते 
किसी को डाँक्टर बुलाते 
किसी ने वार्ड बाय से 
गोटी भीड़ाई ।
किसी ने जुगाड़े से 
अपनी पर्ची आगे बढ़ाई ।
देखा तो आँमा् ने भी 
पर कौन जाने आँमा् के मन की 
नाती को भी हिम्मत नहीं आई 
औबजैक्शन की ।
आँमाँ ओ इजा !ओ बबो! करती रही 
लोग आते रहे जाते रहे 
आँमाँ की परची आँखिरी  रही ।
डाँक्टर ने पूछा अम्मा क्या परेशानी है /
अम्मा बोली सुबह से पर्चा लगा है 
नंबर आखिर में आया 
ये क्या कहानी है ?
डाँक्टर ने कहा आँखें खोलो 
आ करो जीभ दिखाओ 
न टैस्ट न वैस्ट !
डाँक्टर ने सीधे लिख दी दवा 
जीप वाला वहीं खड़ा था 
आँमाँ दवा लेकर
 पहाड़ को हो गई हवा ॥
आँमाँ ठीक हो जाय बस 
सब भगवान की दुवा है 
क्यों नहीं हुवा है 
चौहत्तर साल में बहुत कुछ हुवा है ॥
💐💐शंकर जोशी 💐💐

सोमवार, 19 सितंबर 2022

जय माँ झूला देवी

एक भजन प्रस्तुत है मय्या झूले वाली को समर्पित

ओ मेरी झूलेवाली मईया तेरी जै जै कारा
श्रद्धा भक्ति चरणो मे त्यर छू आसरा
भव्य रुप मईया जी क घंटी की झनकारा
धूप बत्ती जली रै छ सुगंध अपारा
भक्तोले सुन्दर हैरो देविक आगना
भक्तौ की भीड हैरै भूली छ तन मना
ओ झूलेवाली मईया सुणिए पुकारा
फूल पाती धूप बाती ल्यै रयू दरबारा
सबूकि मनकि ईजा पुरि करि दिए
छोटि मोटि भेंट कैणि ल्याख लगे दिए
नारियल फल फूल ल्यानि चढे हैणि
ख्वार टेकी लम्ब हैरि आशिर्वाद हैणि
भावो मे डूबि जानि त्यारा दरबारा
इनरी नैय्या कै ईजा लगे दिए पारा 
मेरी माता झूलेवाली दयाक भण्डारा
कष्ट पीडा दूर कर दे माया छू अपारा
हे मईया झूलेवाली दि दे सत बुद्धि 
सत काम होते रेजो भावना की शुद्धि

बोलिये झूलेवाली मईया की जय हो

🍀   🙏🏻देव सती🙏🏻🍀

शनिवार, 10 सितंबर 2022

प्रॉपर्टी

सुन दगड़या 👂
प्रॉपर्टी तो मेरी भी कम नही  ठैरी😎 
एक तली धार , 
एक मली धार
मणि गध्यार 
मणि गाड़ 
मणि वार  
और मणि पार 🤣🤣🤣🤣
बस एक ही समस्या ठहरी हो।...
पै कुछ होने वाला नहीं ठहरा फिर, 
बानर, 
गुणि, 
सुवर सब उज्याड़ देने वाले हुए ठैरे।... 🙁
 
जो ठूंठ मूठ बच गया उसे भी ये निर्मोही घस्यारिनें चुपके से काट ले जाने वाली ठैरी बल

इतनी अजुकति काल होने पर भी मुझे यहां अच्छा लगने वाला ठैरा
किलै कि मेरी पुरखों की थात मेरी जनमभूमि जो ठहरी बल

जय देवभूमि उत्तराखण्ड 🙏

लेखक : अज्ञात
सोशल मीडिया पर प्राप्त

मंगलवार, 9 अगस्त 2022

रक्षाबंधन

आगामी रक्षाबंधन पर बहनों को  याद करते हुए 
+++++++++++++++++++++
बैणीक बोल(भाई के लिए एक बहन के कोमल उद्गार) 
————————
सुवा रे सुवा,
ओ बणखण्डी सुवा ! 
म्यर रंग रंगीली राखी 
प्यारो प्यारो भै के पास
पुजै बेर आ !
म्यर भै दिल्ली में रूँ,
वाँ ठुली ठुली बिल्डिंग हुनीं 
सर्प जैसि काई काई
चमकीलि चौड़ चौड़ सड़क हुनीं !
जब सूरज ढल जाँ
और रात आपुण हाथ खुट पसारछैं
तो पुर शहर लाल, नीली, पीली बत्तिनक
उज्याव में न्है जाँ, जगमग है जाँ !
सुवा रे सुवा, 
तू इतकै उतकै झन चायै,
सिध अपुण रस्त जायै !
नन्तर तू भभरी जालै,
आपुणी मंज़िल भूल जालै !
भै दगड़ भेंट करबेर,
म्यर मैतक हाल वीकें बताये !
यो कयै कि याँ इजा, बाबू
भै, बैंणी , गोरु बाछि
कुकुर, पुसुली, खेती पाती
सब भल छन !

सुवा रे सुवा
मीले सुणौ कि दिल्ली में
पाणि लै मोल लिबेर पिनी !
तू म्यर भै थै कयै कि वो 
बस ऑफ़िस में न खो बेर 
बख्त पर घर लौट ऐजाई कर
आपुण आराम खाण पिणक
खूब ख्याल करी कर !
***********

म्यर भै
मैं श्रावणी त्यार में मैत ऐ रयूँ ,
जाणनूँ कि जब तू छुट्टी लिबेर
सबुन थैं भैटणक लिजि घर आल 
तब मैं अपुण सरास लौट जूँल! 
त्यरि सबन दगड़ भेंट होलि 
बस एक म्यर दगड़ 
तेरि भेंट नि होली !!
+++++++++++++++

फिर वही ज्यौड़, दातुई और ड्वाक
म्यर रोजकि जिन्दगी बण जाल !
ये तो भागक लेखि भै,
लेकिन
मडु, मादिर, झँगुर गोड़न गोड़न 
गोठ बटि पर्श खेत तक सारण सारण, 
हर पल मैं त्वीकें याद करूँल 
म्यर भै !
आज मैं बाखई में टँकी
बाबू दगड़ सब भै बैणीक फोटो चाणैछी,
याद करणैछी कि कस
पटांगण में हम सब साथ खेल करछीं 
तब क्वैल सोचछी कि
एक दिन जब हम ठुल है जाँल,
हमर रस्त अलग अलग है जाल 
इक मालाक मोती जस बिखर जाल !
अब बस यो राखीक धाग, 
मिकें भै दगड़ और भै लोगनक
म्यर दगड़ जोड़ राखें !
++++++++++++
म्यर भै 
तु आपुणि कलाई में मेरि भेजि राखी
मज़बूत गाँठ बाँधि बेर पैर लिये,
त्विकें लागल कि मीले त्यर हाथ
जोरल पकड़ राखो
जीवनक हर धूप छाँव में,
और ऊबड़ खाबड़ बाटन में !
मैं त्विकें हर बख्त याद करनूं
घा काटण काटण,
खेत गोड़न गोड़न,
लुट लगाण लगाण !
+++++++++++

म्यर भै
तु लै मिकें बाटुलि लगूणै रयै,
जेठक धूप में,
सावन भादो कि बारिश में,
और
पूसक कँपकपाती ठण्ड में
म्यर ठुल सहारा होलो,
तेरी बाटुलि ,
याँ सरास में !

सुवा रे सुवा !!
सुवाssss हो!!!
सर्वाधिकार सुरक्षित -दिनेश पाण्डे

शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

फेसबुक

मातृ शक्ति हूॅ एक विनती छु नौक झन मानिया हो.

"आजकल चेली ब्वारी चलौनी दिन भर फेसबुक!"

नई फोटो अपलोड करी बेरा पुछनी हाउइज माई लुक!

सौर ज्यू देखनी गोर भैसों कै,

 सासु बेचारी बनी रै कुक

स्वामी जीहे बोलनी छन मैकै छ भारी दुःख!!

देवर जिठान सब फ्रैन्ड बना ली, 

काम पै निछ मन!बट घट जैके देखा भागी फेसबुक मैं बीजी छन!!

जिठाना त कमेन्ट करनी

 "माई ब्रो नाईस लुक"!

मैसेज मै लिखनी छन हे भूली मैंलै ऊँ जरा रूक !!

खेतों की हालत देखि,खेतिम जामिगैइ कान!

रत्ते बटी रात तक सब आनलाइन छन!!

भैंस गोरू को अडाट पडि, गोठ्हन भटा भट!

कानो मजा हैन्ड़फ्री लगै बेरा,

छाजॉं मै बैठी लागी रै टका टक!

भूक हिरागै नीन हिरागै

 फेसबुक मै लागरी टूका टूक

!आजकल चेली ब्वारी चलौनी दिन भर फेसबुक!!

चार नानतिना की माँ छैं 

और फोटो सोल साल की

!फ्रैन्डो क कमैन्ट औना औसम छ त्यर लुक!!

रातकि नीन हरै गे,

 दिनक लिगो सुख

जुग जुग जी रयै ईजा जैल बना य फेसबुक

धन धन हो म्यर पहाड ।।।।

एक ब्याव बैठ बेर आपुण बात कैगी

*उड़ी सब आगी, जाणी सब लेहगी।
एक ब्याव बैठ बेर आपुण बात कैगी।।
को जाड़ल दुख हमर, को सुणल बात हमर।
को रौल जिंदगी भर य पहाड़ में दगङ हमर।।
घर छुटण बार छुटन, कैं बरसंक बाधि परिवार छुटान।*

उ गाड़, उ भ्योव अब बिरान हैरि।
पुसतनक बणि उ घर आब सिर्फ एक थान हैरी।
कदू गुड़ि छन, कदु स्याव छन।
अब को बता सकूं बासक घूरि आब कदुक का्व छन।

*सुणन में ऊणौ घर घर आ्ब रोड ऊनै।
पैली य त पत्त कर लिन उ घर में कैक कैक ब्वार रूणै।*

मेरी बाखई में मेरी कुड़िक उज्याव जल रौ।
एक बलबेल पुर बाखाई में उज्याव हरो।
कखे धात लगू, कखे बुलूं।
नाति नामकरन में कहु जै भात पकू।।

*उड़ी सब आगी, जाणी सब लेहगी।
एक ब्याव बैठ बेर आपुण बात कैगी।।*

कैलै कैं कि उत्ति एक स्कूल बड़ैंण चै,
कैलै को हर घर में उज्याव हुण चैं।
हर एक फिर उठ बेर आपुण घरू लैहगी,
अब उ इस्कूलन में सिर्फ मास्टर रै गि।

*य लै एक बिड़बना छू,
मैं आज आपुण पहाण बै दूर छु।
मैं कहानि लै लिखनू जबै,
पहा्ण बै दूर रबेर लिखू,
तबै त पाहाड़ ल कू, म्यर दुख को समझूं।*
🍁🌸

गुरुवार, 23 जून 2022

जय मा धारी

#मां_धारी_देवी_मंदिर_की_दंत_कथा 

कहते हैं कि #धारी_देवी सात भाइयों की इकलौती #बहन थी, बचपन में ही माता पिता के देहांत के बाद #सातों_भाइयों ने #धारी_देवी की देखरेख की, वह भी अपने भाइयों की खूब सेवा करती थी तभी भाइयों को पता चला कि उनकी बहन के #ग्रह भाइयों के लिए खराब हैं तो वे बहन से नफ़रत करने लगे, जब वह कन्या तेरह साल की थी तो उसके पांच भाइयों की मृत्यु हो गई, बचे हुए दो भाइयों को लगा कि इसी बहन के ग्रहों के कारण भाइयों की मृत्यु हो गई है, फिर उन्होंने रात्रि के समय में कन्या की हत्या कर दी और उसका #सिर_धड़ से अलग कर दिया, #सिर और #धड़ को #गंगा में बहा दिया, कन्या का सिर बहते हुए दूर #धारी_गांव में पहुंच गया, प्रातः काल में नदी किनारे एक व्यक्ति कपड़े धो रहा था उसे लगा कि एक कन्या डूब रही है बचाने का प्रयास किया परंतु पानी बहुत था इसलिए पीछे हटा तभी उस सिर में से आवाज आई कि डर मत मुझे बचा, तू जहां जहां पैर रखेगा वहां पर सीढ़ियां बनती जायेंगी! उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया और सीढ़ियां बनती गई! 
जैसे ही उसने कन्या समझकर सिर को उठाया तो #कटा_सिर देखकर घबरा गया फिर सिर पर से आवाज आई कि मैं देवी रूप में हूं! तू मुझे किसी पवित्र स्थान पर #पत्थर_के_ऊपर_स्थापित कर दे, व्यक्ति ने वैसा ही किया, तब देवी ने उसे सारी बात बताई और पत्थर में परिवर्तित हो गई! कन्या के शरीर का बाकी हिस्सा #मठियाणाखाल में है जहां #मैठाणा_मां के रूप में सुप्रसिद्ध है!!
#धारी_देवी_मंदिर #उत्तराखंड के #पौड़ी_गढ़वाल में स्थित है मां धारी को #उत्तराखंड_की_रक्षक भी कहा जाता है!!
मां की कृपा संपूर्ण जगत पर सदैव बनी रहे!!🙏
खूबसूरत दर्शन #मा_धारी_देवी मंदिर के!!
🙏🙏🌹जय♥️मां♥️धारी♥️देवी🌹🙏🙏

रविवार, 5 जून 2022

२ जून

💐दो जून की रोटी 💐
🌺🌺🌺🌺🌺🌺
मैंने वनीकरण में 
गमले सारे ,पेड़ लगाए ।
बगीचों में नौकरी की 
ह्वा चड़ी ह्वा तोते भगाए ।
रोड़ी फोड़ी ,रेता निकाली 
ज्यों ही अकल आई 
जे आर वाइ में हाजिरी लगाई ।
मैंने फेरी जो नहीं लगाई 
लीसा जो नहीं लगाया 
मैंने दो साल घोड़ा भी चलाया 
ठुलबौज्यू ग्राम प्रधान बने तो 
मुझको मुंशी भी बनाया ।
हाइस्कूल में  फेल हुवा तो 
भागकर शहर आया 
होटल में भाँड़े  खकोले 
रिक्सा भी चलाया ।
क्लीनरी भी की 
ड्राइवरी भी सीखी ।
साब के यहाँ नौकरी भी की 
मेमसाब की चाकरी भी की ।
मंडी में पल्ले दारी भी की 
 अपना खोखा भी खोला 
पीलिया निमोनिया मलेरिया 
 मैंने क्या क्या नहीं झेला ।
पुलिस की लाठियां भी खाई 
मालिकों की गालियाँ भी खाई ।
कभी स्टेशन में ही सोया 
घर की याद आई तो खूब रोया ।
 हल्द्वानी,गुड़गाँव, गाजियाबाद 
कभी दिल्ली तो कभी फरीदाबाद  
मैं बदलता रहा अपना ठिया 
इस दो जून की रोटी के लिये 
 मैंने क्या क्या नही किया ॥
************************
🌺शंकर दत्त जोशी 🌺
💐💐💐💐💐💐💐

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

हिन्दू नव वर्ष २०७९

🚩विक्रमी संवत् २०७९ नल नाम   संम्वतसर हिन्दू नव वर्ष क हार्दिक मंगलकामनॉ🚩

पेड नौ पत्त, नौ फूल,नौ फलों मे झूम जनी

हिन्दू धर्म मे नई साल प्राकृतिक बदलाव बटि  औनी

नई साल मे नई पहल हैजो

हमर कठिन जिंदगी और सरल हैजो

अणसूनी बातों क हल हैजो 

जो हिटाल  टैम  देखबेर 
आघिल उई सफल हैजो

सुखमय तुमार पटॉगणक हर पल
हैजो

सबु  लि जी नई साल मंगलमय हैजो🙏🏻

🚩हिन्दू नव वर्षेक हार्दिक मंगलकामनॉ 🚩
 

नई साल चैता यसिकें
नवरात्रि ,रामनौमी, भिटोई, फूलदेई, झोडा़ चाचंरि ल्ये। 

बैशाखा दैण लवाई ग्य कटाई
धूमधामल बैशाखी अये। 

ज्येठा वट सावित्री गंगादश्यार निर्जला एकादशी। 
मॉठू मॉठ त्यार तीज बढ़ आषाढीं कौतिक। 

हरि हरी हर्याव जन्माष्टमी भैबैनियूक त्यार सौणा। 

भादोंवा घ्यू संज्ञानि यसिकें रे आनी जानि। 

दशे घा कटाई मडू लवाई कहाण महाण अशोजा। 

कार्तिका बग्वाई गौधना च्यूड़ कुटाई जाग दिवाई। 

ऐगों लग्न मंगशिरा महैणा बर्यातों की ढमा ढमा। 

पूषाक ठण्ड दय्प्तों की जातूरा बैसी। 

पंचमी माघा काले कव्वा उत्तरैणि। 

महाशिवरात्री फाल्गूना रंग बिरंगी होली।। 

वार त्यार तीज यसिकें आनि रे तूकें हाथ जोडी़। 
नूतन वर्ष सुस्वागतम्।।।

जय श्री राम

कविता -देव सती पहाडी़ बटोही
https://youtube.com/channel/UCxdlaB4HeFRPNpgjPtVhSow

रविवार, 27 फ़रवरी 2022

अंतिम सत्य

*(जीव) मनुष्य  का अंतिम सत्य*

अर्थी पर पड़े हुए शव पर कपड़ा बाँधा जा रहा है। गिरती हुई गरदन को सँभाला जा रहा है।

पैरों को अच्छी तरह रस्सी बाँधी जा रही है, कहीं रास्ते में शव गिर न जाए। गर्दन के इर्दगिर्द भी रस्सी के चक्कर लगाये जा रहे हैं। 

पूरा शरीर लपेटा जा रहा है। अर्थी बनाने वाला बोल रहा है: ‘तू उधर से खींच’ दूसरा बोलता है : ‘मैने खींचा है, तू गाँठ मार।’

लेकिन यह गाँठ भी कब तक रहेगी? रस्सियाँ भी कब तक रहेंगी? अभी जल जाएँगी और रस्सियों से बाँधा हुआ शव भी जलने को ही जा रहा है बाबा! धिक्कार है इस नश्वर जीवन को!

धिक्कार है इस नश्वर देह की ममता को! धिक्कार है इस शरीर के अभिमान को!

अर्थी को कसकर बाँधा जा रहा है। आज तक तुम्हारा नाम सेठ, साहब की लिस्ट (सूची) में था। अब वह शव की लिस्ट में आ गया।

लोग कहते हैं ‘शव को बाँधो जल्दी से।’ अब ऐसा नहीं कहेंगे कि ‘सेठ को, साहब को, मुनीम को, नौकर को, संत को, असंत को बाँधो…’ पर कहेंगे, ‘शव को बाँधो।’

हो गया हमारे पूरे जीवन की उपलब्धियों का अंत। आज तक हमने जो कमाया था वह हमारा न रहा।

आज तक हमने जो जाना था वह मृत्यु के एक झटके में छूट गया। हमारे इन्कम टेक्स (आयकर) के कागजातों को, हमारे प्रमोशन और रिटायरमेन्ट की बातों को, हमारी उपलब्धि और अनुपलब्धियों को सदा के लिए अलविदा होना पड़ा। 

हाय रे मनुष्य! तेरा श्वास! हाय रे तेरी कल्पनाएँ! हाय रे तेरी नश्वरता! हाय रे मनुष्य; तेरी वासनाएँ!

आज तक इच्छाएँ कर रहा था कि इतना पाया है और इतना पाँऊगा, इतना जाना है और इतना जानूँगा, इतना को अपना बनाया है और इतनों को अपना बनाँऊगा, इतनों को सुधारा है, औरों को सुधारुँगा।

अरे! हम अपने को मौत से तो न बचा पाए! अपने को जन्म मरण से भी न बचा पाए! देखी तेरी ताकत! देखी तेरी कारीगरी बाबा !

हमारा शव बाँधा जा रहा है। हम अर्थी के साथ एक हो गये हैं। शमशान यात्रा की तैयारी हो रही है। लोग रो रहे हैं। 

चार लोगों ने अर्थी को उठाया और घर के बाहर हमें ले जा रहे हैं। पीछे-पीछे अन्य सब लोग चल रहे हैं।

कोई स्नेहपूर्वक आया है, कोई मात्र दिखावा करने आये है। कोई निभाने आये हैं कि समाज में बैठे हैं तो पाँच-दस आदमी सेवा के हेतु आये हैं। उन लोगों को पता नही कि उनकी भी यही हालत होगी। 

अपने को कब तक अच्छा दिखाओगे? अपने को समाज में कब तक ‘सेट’ करते रहोगे? सेट करना ही है तो अपने को परमात्मा में ‘सेट’ क्यों नहीं करते भैया?

दूसरों की शवयात्राओं में जाने का नाटक करते हो? ईमानदारी से शव यात्राओं में जाया करो।

अपने मन को समझाया करो कि तेरी भी यही हालत होनेवाली है। तू भी इसी प्रकार उठनेवाला है, इसी प्रकार जलनेवाला है।

बेईमान मन! तू अर्थी में भी ईमानदारी नहीं रखता? जल्दी करवा रहा है? घड़ी देख रहा है? ‘आफिस जाना है… दुकान पर जाना है…’

अरे! आखिर में तो शमशान में जाना है ऐसा भी तू समझ ले। आफिस जा, दुकान पर जा, सिनेमा में जा, कहीं भी जा लेकिन आखिर तो शमशान में ही जाना है। तू बाहर कितना जाएगा?

क्षण-क्षण हरि स्मरण में ही व्यतीत करो! पल-पल मृत्यु की और बढ़ रहे हो और संसार में बेहोश हो।

अभी समय है इसलिए हे जीव जागो और भगवद् भक्ति की ओर अग्रसर हो।

तमस मिटे, श्री बढे, खुले सभी,  प्रगति द्वार!

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

बी जे पी सपोटर

क्षेत्रा वोटरों गौ गौनूक वोटरों
राज्य क वोटरों विधानसभा क वोटरों
नमो नमो हो नमो नमो ,,,,,,,,,,,,,,, 

तुम कुछा  क्यें करो बीजेपी सरकारल 
आई कस दी द् येलि जो आल दूहोर
तुम कूणछा महंगाई बढी गे
पैट्रोल स  सरसो द्वी स करदे
 पर य टैम मा राशन फ्री करदे
य किले नी कू रया
पीएम किसान किस्त महैण भले पॉच सौ
पर आस हैयी द्वी हजार आलै कैबैर
आजि तक को सरकार तूमेकें पॉचे रुपै दिगे
प्रवासीयू के स्वरोजगार करन सीखें गै
पैलि और सरकार तुमर लिजी न्यारे क्यें करिगे
तुम कुछा महंगाई बढगे बहत्तर के
द्वी स द्वी को करगे
दगडें मै वृद्धा विधवा अन्य पैंशन ले बढे दे
कश्मीर बटिक धारा ३७०
अयोध्या में राम मंदिर क विवाद सुलझे दे
भारत क फौज के नई नई हथियार दि गे 
और सरकार यू कामों क लिजी कथहा  मरगे

*आब उणि वाल टैम मै वोट द् या सोचि समझी बै*
*झन रया हजार सराब क चक्कर म*
*तूमर एक गलत वोट टरके  द् यल    एक्के क्वाटरम*

*झन पालिया हो भरम*
*वोट दबाया कमल फूल बटन*

*य बार सबूहूॅ इक्के दरकार*
*मोदी ज्यू धामी ज्यू रेखा आर्या ज्यू सरकार*

*औनी वाल 14 फरवरी हू सबूहै** *निवेदन छू आपूं* *सोमेश्वर* *विधानसभा बटि* *योग्य कर्मठ*
*भाजपा*उम्मीदवार *श्रीमती* *रेखा आर्या ज्यू केभारी बै भारी*वोट ल  विजय बनाया*। 

कैके दिल दूखूण क विचार न्हैं
कुछ मे छोट छोट लेखी दिनू।

देवेंद्र सती(पहाडी़ बटोही) https://youtube.com/channel/UCxdlaB4HeFRPNpgjPtVhSow

बूथ -पाखुडा़
बिधानसभा -सोमेश्वर

गुरुवार, 27 जनवरी 2022

ईजा

Nice poem : Author Unknown :

 ईजा भक्ति में कुछ पंक्तियाँ... 

पहाडूँ की देवीक रूप छू ईजा,
गर्मी में छाया जाड़ान में धूप छू ईजा 
ईजा छू तो उज्याव छू अन्यार में,
ईजा छू तो हँसी छू परिवार में।।

ईजा छू त झोई भात छू,
ईजा छू त चुड़कानि में स्वाद छू,
ईजा छू त बुराँस में रंग छू,
ईजा छू तो त्यार वारन में उमंग छू।। 🙏🏻🙏🏻

ईजा छू तो हर दु:ख दूर छू,
ईजा घरैकि छत व धूर छू,
ईजा गंगोत्री छू,ईजा यमुनोत्री छू,
ईजा सबैनकै एक राखिनी छत्री छू।। 🙏🏻🙏🏻

ईजा यमुना छु,ईजा गंगा की धार छू,
सच जब तक ईजा छू तब तक परिवार छू,
ईजा सत्यनारायणज्यू की काथ छू,
ईजा छू तो दूर हर व्यथा छू।। 🙏🏻🙏🏻

बँजानी धुराको धारा छू ईजा,
चाँद,सूरज,ध्रुबतारा छू ईजा,
ईजा छू तो म्यार बाट साफ छू,
ईजा छू त मेरि हर गल्ती माफ छू।। 🙏🏻🙏🏻

ईजा तपस्या छू,ईजा भक्ति छू,
सच ईजाक आशीश में भौतै शक्ति छू,
ईजा तूँ छै त खेतों में हरियाली छू,
ईजा तू छै तो साल भर धिनाली छू।। 🙏🏻🙏🏻

घरौक श्रिंगार तू छै ईजा,
खुशी की बहार तू छै ईजा,
ईजा तू छै त काँणा ले फूल छन,
ईजा तू छै तो ढूँगा ले धूल छन।। 🙏🏻🙏🏻

तेरी उमर लम्बी है जा ईजा,
तेरा हाथ म्यार ख्वार में रौ ईजा,
ईजा तू छै तो खेतन में हरियाली छू,
ईजा तू छै तो साल भर धिनाली छू।।

सादर ||

तिलक

*महिमा भारी तिलक की , को कर सके बखान |*
*आप तिलक को मानिये , श्री विष्णू भगवान ||*
*जिसके माथे पर तिलक , की होती है छाप |*
*भूत प्रेत ही दूर से , भग जाते चुपचाप ||*
*माथे की शोभा तिलक , तिलक हमारी शान |*
*बिना तिलक माथा लगे , बिल्कुल ही सुनसान ||*
*तिलक करे परिवार को , शक्ति शांति  प्रदान |*
*आप लगाकर देखिये , हो जाये कल्याण ||*
*तन मन को शीतल करे , ये चंदन की छाप |*
*कट जाते है लगाते , जन्म जन्म के पाप ||*
-
*तिलक लगाने से मिले , बुद्धि ज्ञान  सम्मान |*
*तिलक हमारे धर्म की , होती है पहचान  ||*
*वैष्णव  जन के तिलक में , विष्णु लक्ष्मी निवास |*
*इसीलिये इस तिलक की , महिमा सबसे खास ||*
*बिना तिलक होता नहीं , कोई पूजा पाठ |* 
*तिलक लगायें आप सब , सदा रहेंगा ठाठ ||*
   
     🙏 *!! जय श्री कृष्ण !!* 🙏