बच्चों को कुमाउनी में इगलिस ऐसे भी पढाई जा सकती है -
ए फार एप्पल , बी फार बौय
खुश्याणि खाला लागलि झौय |
सी फार कैट डी फार डौल
झकड करला मैंस कि कौल |
ई फार एलीफेन्ट एफ फार फिश
सूरज निकलौ खुल ग्या दिश् |
जी फार गर्ल एच फार हैन
झ्वाट बटी निकालो पैन |
आई फार इंकपाँट जे फार जग
हाव् चलणै द्वार ढक |
के फार काइट एल फार लैग
झन करिया कैकै रग्
एम फार मंकी एन फार नोज
एडिसनलि करी बल्ब कि खोज |
ओ फार ओरेन्ज पी फार पटैटो
ट्याड म्याड बाट भलीकै हिटो |
क्यू फार क्वीन आर फार रैबिट
पाज्यूं कें गध्यारन खित् |
एस फार स्नैक टी फार टौय
लूण पिसो झौय मौय |
यू फार अम्ब्रैला वी फार वैन
हिमुलि गालन सुनै चैन |
डब्ल्यू फार वाच एक्स फार एक्स मस
जस ब्वेला काटला तस |
वाई फार याक जैड फार जेबरा
याद करो ईसकूल जैबेरा ||
#विनोदपन्त_खन्तोली
#जंवाई
इस चराचर जगत में अगर कोई पद सबसे बडा है तो वो है जंवाई का पद और कोई सर्वोच्च सिंहासन है तो वो है जवांई होना और कोई मान प्रतिष्ठा की पराकाष्ठा है तो वो भी जंवाई ही है |
आज लडकों को जीवनसंगिनी नही मिल पा रही है और उनका यह दु:ख इसलिए है कि उन्हें जंवाई बनने का परमसुख नही मिल पा रहा है | उन्हें तरह तरह की परीक्षा और योग्यताओ के मापदण्डों पर परखा जा रहा है | एक युवा के लिए ब्याह करना आईएएस बनने से अधिक कठिन हो गया है यदि मैं अपने समय को याद करूं तो हमारे समकालीन युवाओ का विवाह बडी आसानी से हो जाया करता था योग्यता सिर्फ इतनी अर्जित करनी होती थी कि आप दिल्ली या किसी शहर रिटर्न हों और आपके पिताजी या मंगजोगी ( मध्यस्त या बिचौलिया ) वाकपटुता में कुशल हों | भलो धर बर छ कहना ही पर्याप्त था .
अब जब विवाह हो गया तो सभी ससुरालियों को अपना जंवाई राजदीवान लगता था | सबसे ज्यादा तो हमारी पत्निया ओच्छ्या जाती थी हमको पाकर , चूंकि गांव की सीधी साधी लडकियां होती थी तो उनके सपनो में राजकुमार आता ही नही था | विवाह या पति के नाम पर तो वो शरम से अकेले में भी लाल हो जाती थी | सहेलियों में भी कहा करती मैं शादी ही नही करूंगी पर जब मां बाप ब्या ठरयाते तो तुरन्त मान जाती थी , कैसा है क्या है ये पसन्द है नही है या यूं कहिये कि लडके को नापसन्द भी कर सकते हैं ये उन बेचारियों को मालूम ही न था | शादी के बाद दूल्हा जैसा भी निकला उसके सांचे में ढल जाना ही उनकी नियति थी |
विवाह के दिन तो दूल्हा मुकुट , हार , माला , झालर , कोट पैन्ट मुंह में ऐपण जैसे डिजाइन जिन्हे कुरमू कहते थे में ठीक ही लगता था | असली पता तो दुरगूण के दिन चलता था कि पैकिग के भीतर माल कैसा है ?
पहली बार ( दुरगूण ) ससुराल जाते ही गांव वाले भी जंवाई को देखने पहुंच जाते थे , लडकी का परिवार तो जंवाई को पाकर धन्य हो जाता था |
लडका दुबला पतला सिंट जैसा हो या गोल मटोल गुबर के थोपे जैसा या काला उल्टे तवे जैसा हो , मुह पटपटाया जैसा हो या ढडुवे जैसे गाल वाला , लम्बा लुट्यास जैसा हो या साढे तीन फिट का बौना सास को जंवाई मे कोई कमी नजर नही आती थी | मुझे याद है जब मैं ससुराल गया तो मेरे बयालीस किलो के धागे जैसे शरीर को देखकर भी मेरे ससुराल के पडोसियों ने प्रोटोकाल के तहत मेरी सास से कहा था - लाआआआ भला जवैं ऐरीन .. तो मेरी सास के चेहरे की चमक ऐसी हो गयी थी मानो हिमालय पर सूरज की पहली किरण पड रही हो | वो गर्वित संतोष से बोली थी - होय भालै छन पैं , दुबाव पताव छन पर छाजन छन | ढ्योर कैलै बाकि लाग भलै कम लाग कि फरक पडौं .
काले कलूटे जंवाई को भी सासू मांऐ कहती थी - जरा कलसुवाल छन , पर नाक् नि देखीन , रसील काल् छन .. किसन भगवान नि छिये काल् ?
गोल मटोल बेडोल को कहा जाता - रंग रूप तो भगवानक दिई भै , बच रई चैनन .
अगर जंवाई मोटे मिल गये तो कहा जाता था - शरीर मोट् छ पर छाव् छरबट गजब छन , सब कामाक भाय , घर पन ले एक मिनट खालि नि बैठन बल |
ठिगने या बौंने जवाई को कहा जाता था - अरे भला भाल गुदुक जास छन , चार मैसन में बैठी घच्च कन कतुक भाल् देखीनी |
बिलकुल पटपटाऐ चुतरौव जैसे गालो वाले की तारीफ कुछ यूं की जाती थी - अरे मैसाक् गुण देखण चैनन आब ब्या हैगो सन्तोषलि मोटै जाल् |
अगर जंवाई नकचढा , तुनकमिजाज हो तो कहा जाता था - खर आदिम भाय , लोपड चापड भल नि लागन तनन |
अगर जंवाई बैचाल टाईप , बिलकुल लाटा पप्पू आ गया तो सासू मां लोगो को बताती - हमार जवैं धरती भाय धरती , धीर गम्भीर , सिद इतुक कि गोठ नि बादा भितरै बाद |
अगर दिल्ली रिटर्न जवाई बेरोजगार निकल गया तो भी चिन्ता की बात नही , सास ससुर के पास इसका भी हल था - अरे चेलि कैं पालि हालाल , भुक ज के मरण दयाल , खेति पाति छनै छ , चेलि में जै हुनर होलौ कर खालि कारबार .
मतलब सास ससुर के लिए जवाई में कोई कमी नही होती थी | साली का तो कहना ही क्या ? उसके भिन्ज्यू गांव की हरुलि परुलि , मीना , गोबिन्दी सबके भिन्ज्यू से ज्यादे स्मार्ट हुए |
सच कह रहा हूं हमारे जिन अवगुणो की वजह से गांव वाले हमें चिढाते थे वो ससुराल आते ही ऐसे गुणो में परिवर्तित हो जाऐगे हमने सोचा तक नही था | काले रंग की वजह से कई या कल्लू कहे जाने वाले लडके को जब ससुराल में रसीला काला कहा जाता तो तब पता चलता कि काले रंग का एक शेड ऐसा भी होता है | जिस पतले शरीर के कारण हमें लुतरा या लुत्ती कहा जाता था ससुराल जाकर पता चला कि हम छाजन हैं |
मोटे को खुद नही पता कि वो छाल् छरबट है | जिस बेरोजगारी का तंज मां बाप हर समय मारते थे और कहते थे कि आगे जाकर भूखा मरेगा उसे सास के बचनो से पता लगता था कि वो तो पत्नी को भी पाल लेगा वो भी बिना कुछ करे धरे | जिस बौने ठिगने दिनेश को घर गांव में दिन्नू ठिन् कहते थे उसे क्या पता था कि वो चार आदमियोॆ मेॆ बैठा जमता है |
और तो और लाटा या बैचाल जंवाई भी ससुराल जाकर धीर गम्भीर धरती टाइप निकलता है इससे सुखद आश्चर्य और क्या होगा ?
इसीलिए मै बार बार दोहराता आ रहा हूं कि दुनिया की सबसे महान उपलब्धि जंवाई बनना है | इसलिए हे युवाओ ! उठो , सघर्ष करो और जवाई बनने का लक्ष्य निर्धारित करो इसे पाकर रहो | मेरी शुभकामनाऐ तुम्हारे साथ हैं |
#विनोदपन्त_ की कलम से
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