शनिवार, 5 नवंबर 2022

श्री पूरन चन्द्र काण्डपाल जी की कविता

खरी खरी - 1159 :  गिच खोलणी चैनी

मसमसै बेर के नि हुन
बेझिझक गिच खोलणी चैनी,
अटकि रौछ बाट में जो दव
हिम्मतल उकैं फोड़णी चैनी ।

अन्यार अन्यार कै बेर
उज्याव नि हुन,
अन्यार में  एक मस्याव
जगूणी चैनी । 
मसमसै..

जात  - धरम पर जो
लडूं रईं हमुकैं,
यास हैवानों कैं भुड़ जास
चुटणी चैनी ।
मसमसै ...

गिरगिट जस रंग
जो बदलैं रईं जां तां,
उनुकैं बीच बाट में
घसोड़णी  चैनी ।
मसमसै...

के दुखकि बात जरूर हुनलि
जो डड़ाडड़ पड़ि रै,
रुणीकैं एक आऊं 
कुतकुतैलि लगूणी चैनी ।
मसमसै बेर...

पूरन चन्द्र कांडपाल
05.11.2022

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