नदी को गाड़ बेशक बोल लेना
लेकिन गाड़ को नदी मत बोलना
क्योंकि गाड़ नदी बन सकती है
ऊंचे पहाड़ों से बह कर
नदी गाड़ नहीं बन सकती
मैदानों में रह कर
गाड़ चट्टानों में सिर टकराकर
भी जीवंत है बेगवान है
नदी समतल में भी
शिथिल सी बेजान है
गाड़ का अपना सुसाट
वाला संगीत है तराण है
नदी का शिशकियों वाला
अधमरा सा पराण है
गाड़ ही गंगाजल
नदी तक पहुंचाती है
बड़प्पन भी ऐसा कि _
अपने को मिटा नदी में समा जाती है
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