आगामी रक्षाबंधन पर बहनों को याद करते हुए
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बैणीक बोल(भाई के लिए एक बहन के कोमल उद्गार)
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सुवा रे सुवा,
ओ बणखण्डी सुवा !
म्यर रंग रंगीली राखी
प्यारो प्यारो भै के पास
पुजै बेर आ !
म्यर भै दिल्ली में रूँ,
वाँ ठुली ठुली बिल्डिंग हुनीं
सर्प जैसि काई काई
चमकीलि चौड़ चौड़ सड़क हुनीं !
जब सूरज ढल जाँ
और रात आपुण हाथ खुट पसारछैं
तो पुर शहर लाल, नीली, पीली बत्तिनक
उज्याव में न्है जाँ, जगमग है जाँ !
सुवा रे सुवा,
तू इतकै उतकै झन चायै,
सिध अपुण रस्त जायै !
नन्तर तू भभरी जालै,
आपुणी मंज़िल भूल जालै !
भै दगड़ भेंट करबेर,
म्यर मैतक हाल वीकें बताये !
यो कयै कि याँ इजा, बाबू
भै, बैंणी , गोरु बाछि
कुकुर, पुसुली, खेती पाती
सब भल छन !
सुवा रे सुवा
मीले सुणौ कि दिल्ली में
पाणि लै मोल लिबेर पिनी !
तू म्यर भै थै कयै कि वो
बस ऑफ़िस में न खो बेर
बख्त पर घर लौट ऐजाई कर
आपुण आराम खाण पिणक
खूब ख्याल करी कर !
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म्यर भै
मैं श्रावणी त्यार में मैत ऐ रयूँ ,
जाणनूँ कि जब तू छुट्टी लिबेर
सबुन थैं भैटणक लिजि घर आल
तब मैं अपुण सरास लौट जूँल!
त्यरि सबन दगड़ भेंट होलि
बस एक म्यर दगड़
तेरि भेंट नि होली !!
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फिर वही ज्यौड़, दातुई और ड्वाक
म्यर रोजकि जिन्दगी बण जाल !
ये तो भागक लेखि भै,
लेकिन
मडु, मादिर, झँगुर गोड़न गोड़न
गोठ बटि पर्श खेत तक सारण सारण,
हर पल मैं त्वीकें याद करूँल
म्यर भै !
आज मैं बाखई में टँकी
बाबू दगड़ सब भै बैणीक फोटो चाणैछी,
याद करणैछी कि कस
पटांगण में हम सब साथ खेल करछीं
तब क्वैल सोचछी कि
एक दिन जब हम ठुल है जाँल,
हमर रस्त अलग अलग है जाल
इक मालाक मोती जस बिखर जाल !
अब बस यो राखीक धाग,
मिकें भै दगड़ और भै लोगनक
म्यर दगड़ जोड़ राखें !
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म्यर भै
तु आपुणि कलाई में मेरि भेजि राखी
मज़बूत गाँठ बाँधि बेर पैर लिये,
त्विकें लागल कि मीले त्यर हाथ
जोरल पकड़ राखो
जीवनक हर धूप छाँव में,
और ऊबड़ खाबड़ बाटन में !
मैं त्विकें हर बख्त याद करनूं
घा काटण काटण,
खेत गोड़न गोड़न,
लुट लगाण लगाण !
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म्यर भै
तु लै मिकें बाटुलि लगूणै रयै,
जेठक धूप में,
सावन भादो कि बारिश में,
और
पूसक कँपकपाती ठण्ड में
म्यर ठुल सहारा होलो,
तेरी बाटुलि ,
याँ सरास में !
सुवा रे सुवा !!
सुवाssss हो!!!
सर्वाधिकार सुरक्षित -दिनेश पाण्डे
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