💐दो जून की रोटी 💐
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मैंने वनीकरण में
गमले सारे ,पेड़ लगाए ।
बगीचों में नौकरी की
ह्वा चड़ी ह्वा तोते भगाए ।
रोड़ी फोड़ी ,रेता निकाली
ज्यों ही अकल आई
जे आर वाइ में हाजिरी लगाई ।
मैंने फेरी जो नहीं लगाई
लीसा जो नहीं लगाया
मैंने दो साल घोड़ा भी चलाया
ठुलबौज्यू ग्राम प्रधान बने तो
मुझको मुंशी भी बनाया ।
हाइस्कूल में फेल हुवा तो
भागकर शहर आया
होटल में भाँड़े खकोले
रिक्सा भी चलाया ।
क्लीनरी भी की
ड्राइवरी भी सीखी ।
साब के यहाँ नौकरी भी की
मेमसाब की चाकरी भी की ।
मंडी में पल्ले दारी भी की
अपना खोखा भी खोला
पीलिया निमोनिया मलेरिया
मैंने क्या क्या नहीं झेला ।
पुलिस की लाठियां भी खाई
मालिकों की गालियाँ भी खाई ।
कभी स्टेशन में ही सोया
घर की याद आई तो खूब रोया ।
हल्द्वानी,गुड़गाँव, गाजियाबाद
कभी दिल्ली तो कभी फरीदाबाद
मैं बदलता रहा अपना ठिया
इस दो जून की रोटी के लिये
मैंने क्या क्या नही किया ॥
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🌺शंकर दत्त जोशी 🌺
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