रविवार, 5 जून 2022

२ जून

💐दो जून की रोटी 💐
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मैंने वनीकरण में 
गमले सारे ,पेड़ लगाए ।
बगीचों में नौकरी की 
ह्वा चड़ी ह्वा तोते भगाए ।
रोड़ी फोड़ी ,रेता निकाली 
ज्यों ही अकल आई 
जे आर वाइ में हाजिरी लगाई ।
मैंने फेरी जो नहीं लगाई 
लीसा जो नहीं लगाया 
मैंने दो साल घोड़ा भी चलाया 
ठुलबौज्यू ग्राम प्रधान बने तो 
मुझको मुंशी भी बनाया ।
हाइस्कूल में  फेल हुवा तो 
भागकर शहर आया 
होटल में भाँड़े  खकोले 
रिक्सा भी चलाया ।
क्लीनरी भी की 
ड्राइवरी भी सीखी ।
साब के यहाँ नौकरी भी की 
मेमसाब की चाकरी भी की ।
मंडी में पल्ले दारी भी की 
 अपना खोखा भी खोला 
पीलिया निमोनिया मलेरिया 
 मैंने क्या क्या नहीं झेला ।
पुलिस की लाठियां भी खाई 
मालिकों की गालियाँ भी खाई ।
कभी स्टेशन में ही सोया 
घर की याद आई तो खूब रोया ।
 हल्द्वानी,गुड़गाँव, गाजियाबाद 
कभी दिल्ली तो कभी फरीदाबाद  
मैं बदलता रहा अपना ठिया 
इस दो जून की रोटी के लिये 
 मैंने क्या क्या नही किया ॥
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🌺शंकर दत्त जोशी 🌺
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