*उड़ी सब आगी, जाणी सब लेहगी।
एक ब्याव बैठ बेर आपुण बात कैगी।।
को जाड़ल दुख हमर, को सुणल बात हमर।
को रौल जिंदगी भर य पहाड़ में दगङ हमर।।
घर छुटण बार छुटन, कैं बरसंक बाधि परिवार छुटान।*
उ गाड़, उ भ्योव अब बिरान हैरि।
पुसतनक बणि उ घर आब सिर्फ एक थान हैरी।
कदू गुड़ि छन, कदु स्याव छन।
अब को बता सकूं बासक घूरि आब कदुक का्व छन।
*सुणन में ऊणौ घर घर आ्ब रोड ऊनै।
पैली य त पत्त कर लिन उ घर में कैक कैक ब्वार रूणै।*
मेरी बाखई में मेरी कुड़िक उज्याव जल रौ।
एक बलबेल पुर बाखाई में उज्याव हरो।
कखे धात लगू, कखे बुलूं।
नाति नामकरन में कहु जै भात पकू।।
*उड़ी सब आगी, जाणी सब लेहगी।
एक ब्याव बैठ बेर आपुण बात कैगी।।*
कैलै कैं कि उत्ति एक स्कूल बड़ैंण चै,
कैलै को हर घर में उज्याव हुण चैं।
हर एक फिर उठ बेर आपुण घरू लैहगी,
अब उ इस्कूलन में सिर्फ मास्टर रै गि।
*य लै एक बिड़बना छू,
मैं आज आपुण पहाण बै दूर छु।
मैं कहानि लै लिखनू जबै,
पहा्ण बै दूर रबेर लिखू,
तबै त पाहाड़ ल कू, म्यर दुख को समझूं।*
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