रचनाकार: उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम")
नमस्कार दगड़ियो।
आज "फूल देयी" त्यार छू।
प्रस्तुत छू आजैकि कविता
बखाई सब वीरान जै है गईं, भौत छी रौनक जां पन बेई।
तुमै बताओ कां जै करूं मैं, आज फूलदेई छम्मा देई।
आज फूल देई छम्मा देई, ना मैस दिखड़ौं ना वीक ठोर।
सुगंध लै है रै फूल लै खिलणईं, देखो यां पन चारों ओर।
कसी जै बतूं गोंनैकि व्यथा, दुखी जै हगो म्यर यो मन।
उल्लासैल फूल देई मनाया, पैलि थामो यां गों बटि पलायन।
तब जै कौला फूल देई छम्मा देई, सासू ब्वारिक एकै लकार।
जी रया जाग रया, दैणी हजो द्वार और तुमर भरजो भकार।
दैणी हजो द्वार और तुमर भर जो भकार, लाल बुरांशल बोट सजो।
भगबान जस बासंती य मौसम हैरौ, रंग बिरंगी हमर गौं लै हजो।
गौं गौं पन तब सब नान नानतिन, लि बेर फूल और गुड़कि डेई।
ब्रह्मांड सारो गुंजायमान कर द्याल, घर घरै जब हौल फूल देई छम्मा देई।।
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