बुधवार, 20 मार्च 2024

पहाड़ की होली

इन दिनों पूरे पहाड़ में बुरांश खिला हुआ है। मौसम के साथ ही होली के रंग भी बदलते हैं। शिवरात्रि के बाद गुलाल की होली की गायकी शुरू हो जाती है। इससे पहले पौष के पहले रविवार से निर्वाण की होली, बसंत के बाद श्रृंगार तथा शिवरात्रि के बाद अबीर-गुलाल की होली खेली जाती है। फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी से रंग की होली खेली जाती है।

पूरे कुमाऊं में पौष के पहले रविवार से निर्वाण की होली की गायकी शुरू हो जाती है। इसमें अध्यात्म तथा विरह की होली गाई जाती है। इसमें शिव शंकर को ध्यान धरूं, क्या जिदंगी का ठिकाना, विरत कान काहे को लुटाना आदि शामिल हैं। बसंत पंचमी के बाद होली के रस में भी परिवर्तन होता है। इसके बाद श्रृंगार रस की होली का गायन होता है। इसमें आयो नवल बसंत ऋतुराज कहायो, राधाकृष्ण सखी सहित प्रमुख होली हैं। शिवरात्रि के बाद अबीर-गुलाल की होली गाई जाती है। इसमें बुरूशि को फुल य कुमकुम मारो, डानाकाना बही गे बंसती बयार आदि होली आज भी प्रमुखता से गाई जाती है। यह बैठकें अधिकतर रविवार को होती हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूरे पहाड़ में रंग की होली शुरू हो जाती है। इससे पहले चीर बंधन किया जाता है। ग्रामीण अंचलों में होल्यार टोली बनाकर घर-घर जाते हैं। होल्यारों को गुड़ तथा आलू के गुटके खिलाए जाते हैं। होली में कई प्रवासी भी अपने परिवार के साथ आते हैं। छरड़ी पर होली पूरे देश में शबाब पर होती है। लोग सुबह से ही रंग लेकर एक दूसरे पर डालते हैं। टीके दिन शुभाशीष देकर सुख समृद्धि की कामना की जाती है।

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