गुरुवार, 7 मार्च 2024

श्रीमान महेश रौतेला जी की रचना बटुवा हरै गो

य शहरा मजि म्यर बटुआ हरै गो
य चलति गाड़ि में, म्यर जेब कटि गे
जथां चानु उथां, जेब कटि गे,
इथां चानु ,उथां चानु
मन उदास हयि गो।
मैं सोचनैं रै गयु
म्यर पहाड़ै हरै गो,
इथां चानु, उथां चानु
म्यर लिजि य शहर, शहर हरै गो।
कस समयि आछ बटुआ हरै गो
य लोगों की भीड़ै
म्यर जेबै कटि गे
मैं सोचनुं आब, यां म्यर पहाड़ै हरै गो।
काफो हरै ग या,हुसाउ हरै ग य
बुरांश का फूल ज सा
म्यर आँख हइ ग या
ठुल बजार मजि, म्यर बटुआ हरै ग य।

* महेश रौतेला

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