शनिवार, 2 मार्च 2024

कैलाश सिंह चिलवाल जी की हास्य कविता

कुंमाउनी हास्य कविता
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आज-
रधुली इज कै वीक दगणियांल "भड़कै" दे
भनपान नी कर मील हो-
यैक लिजी वील मीकै "नड़कै"दे।

मील कौय मी सयाण मैस छु
य बातक तो ध्यान धर
दा!! वील नी सुणि हो-
मीकै सुदै नाना'कि चारि "झड़कै" दे।

वीक हाथक बेलन जै लुटण लागु
ओ बौज्यू! वील म्यर हाथ जै "मड़कै" दे।

फेसबुकी दगणी धै हलो-हाइ करणौंछी मी
वील सुदै म्यर मोबाइल जै "पड़कै" दे
भाजण चाणौंछी मी वीक डरैल 
पै वील पकड़िबेर मीकै सीढ़ियों बटी "गड़कै" दे।

समौस-जलेबि ल्यायूं हो बजार बटी 
पजै आइ लव यू कैबेर वील दिल "धड़कै" दे
म्यर बणांइ चहा वील गरमै "हड़कै" दे।

(अतवार छु पै, आब रधुली मैक झोइ भात तैयार करनूं)
नोट- कापीराइट छु य म्यर क्वे चोरिया झन नंतर गुलाबी शरारा वाल कांड करि द्यूंल हो महाराज।

कैलाश सिंह चिलवाल 
3 फरवरी 2024

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