मंगलवार, 26 मार्च 2024

राजनीति कच्यार

राजनीति कच्यार मे मथोंवा मथोंव

तुमी  मालिक छा मे तुमर  सेवक छु

तुमी  स्वामी छा मे पोहरदार  छु

निर्झरक्या  आवों पोलिंग  बूथ मे

चुनाव चिन्ह के ध्यान ल  देखि बैर बटन दबाओ

क्ये  त्यर  क्ये  म्यर  
य पोलिंग  बूथ मे बार घण्टक म्यर  ड्यर 

तु मुहर बटन दबै  बै  धर जा बक्स मे 

नेता सोचे रई  हम तुके  टरके द् यूल सस्त  मे

हमर जीती बाद दगाड़ झन  लागिये

तुके  भबरे द् यूल रस्त  मे
आब हमार  पॉच  साल कट जाल  मस्ती मे

किलेकी

कर्मण्येवाधिकारस्ते  मॉ  फलेषु कदा चने
यसिकै आपुण किमती  बोट दिने  रैजै

य बोट दियक  तुके  पुण्य मिलल
और हमुके  जितियक बाद धन पॉवर कुर्सी मिलल

ले पे   एक  आद पवू पी बैर घर न्है  जा

आघिल चुनाव है पैली  
ना हम दैखियूल 
ना तु दैखिये

कविता- देवेन्द्र सती 
पपनैपुरी  पाखुडा

सोमवार, 25 मार्च 2024

होली संदेश

आयुर्धनं शुभएशोवितानं
निरामयं जीवनसंविधानम् ।
समागतो होलीकोत्सवोऽवं 
ददातु ते मांगलिक विधानम् ।।

इस होली के त्योहार पर आपको लंबी आयु, धन-वैभव, निर्मल यश, निरोगी जीवन और सम्मान मिले ।। यह होली आपको मंगलमय अधिष्ठान प्रदान करें ।।

*रंगोत्सव होली की सभी बन्धु-बांन्धव सहित हार्दिक शुभकामनाएं"*
🌸🌹🍁🍁🌹🌸

बुधवार, 20 मार्च 2024

पहाड़ की होली

इन दिनों पूरे पहाड़ में बुरांश खिला हुआ है। मौसम के साथ ही होली के रंग भी बदलते हैं। शिवरात्रि के बाद गुलाल की होली की गायकी शुरू हो जाती है। इससे पहले पौष के पहले रविवार से निर्वाण की होली, बसंत के बाद श्रृंगार तथा शिवरात्रि के बाद अबीर-गुलाल की होली खेली जाती है। फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी से रंग की होली खेली जाती है।

पूरे कुमाऊं में पौष के पहले रविवार से निर्वाण की होली की गायकी शुरू हो जाती है। इसमें अध्यात्म तथा विरह की होली गाई जाती है। इसमें शिव शंकर को ध्यान धरूं, क्या जिदंगी का ठिकाना, विरत कान काहे को लुटाना आदि शामिल हैं। बसंत पंचमी के बाद होली के रस में भी परिवर्तन होता है। इसके बाद श्रृंगार रस की होली का गायन होता है। इसमें आयो नवल बसंत ऋतुराज कहायो, राधाकृष्ण सखी सहित प्रमुख होली हैं। शिवरात्रि के बाद अबीर-गुलाल की होली गाई जाती है। इसमें बुरूशि को फुल य कुमकुम मारो, डानाकाना बही गे बंसती बयार आदि होली आज भी प्रमुखता से गाई जाती है। यह बैठकें अधिकतर रविवार को होती हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूरे पहाड़ में रंग की होली शुरू हो जाती है। इससे पहले चीर बंधन किया जाता है। ग्रामीण अंचलों में होल्यार टोली बनाकर घर-घर जाते हैं। होल्यारों को गुड़ तथा आलू के गुटके खिलाए जाते हैं। होली में कई प्रवासी भी अपने परिवार के साथ आते हैं। छरड़ी पर होली पूरे देश में शबाब पर होती है। लोग सुबह से ही रंग लेकर एक दूसरे पर डालते हैं। टीके दिन शुभाशीष देकर सुख समृद्धि की कामना की जाती है।

शनिवार, 16 मार्च 2024

घट

घट जस रिटनैं रयु
भाग जस बाटिनैं रैयु,
फितड़ जस घुमनैं रयु
डव्क जस भरिनैं रयु।

घटपन आनैं रयु
घटापार जानैं रयु,
पीसी जस शुकिल हैबै
इथां-उथां उड़ानैं रयु।

पन्यावक पाणि जस
तेज बहते रयु,
यों फितड़ां पर टकरै बै
घटक पराणि गैं नचाते रयु।

** महेश रौतेला
* आब घट(घराट) लगभग भौत कम हैगयि!

बुधवार, 13 मार्च 2024

फूलदेई

चारों ओर पेड़ों में फूलों से लबालब डालियां हो, फ्यूली, बुरांश,खुबानी, पुलुम, और बासिग के फूलों संग हजारी, कुनूरी, और अनगिनत फूल जवां हो, नये साल का आगमन का आगाज़ फूलों की मदहोश करने वाली खुशबू से होता हो, भंवरों की गुनगुनाहट से दिन की शुभ शुरुआत हो,हल्की ठंडी और सुकोमल सूर्य की किरणों से आलम सराबोर हो रहा हो, बचपना याद दिला जाती ये ऋतु कभी देली देली चावल और फूलों से पूजने का मौका हमे भी मिला था, हर गांव के हर घर से मंगल आसीस हमने भी पायी थी, ये अंदेशा है फूलों के त्यौहार का , संदेशा है उत्तराखंड के लोकपर्व फूलदेई पर्व की शुभकामनाएं, बुधवार 1५ मार्च २०२३.. *आपसे  न्रम अनुरोध है आप पहाड रहे या प्रवास मे रहे कल फूल संक्रांति को अपनी देली को दीवाली पर्व जैसे फूलो💐🌸🌺🪷🌷🌹💐🌻🌼🌸🌸🪷🪷🌸🌸🌻🌻🌻 से संजाकर पर्वतीय लोकपर्व का संदेशा अपनी आने वाली पीढी को दे, अपने आस पडोस को भी अवगत करवाये अपनी महान लोकसंस्कृति से।*🙏

होली गीत

होली गीत
************
आई रैछौ रंग रंगीलो होली क त्यारा 
डाइ- बोटो में ऐइ गे बसंती बहारा ।।

ओ--
बागों में खिली चंपा चमेली
कै बुरांश त कै फूली प्योंली,
ब्योली जसी धरती छाजी 
पौनै फुहारा--
डाइ-बोटो में ऐइ गे बसंत बहारा।।

ओ---
फूली सरसों य फूलीगे दैंणा 
ऐगो रसीलो फागुन म्हैंणा,
परदेसी सब घर ऐ गयी 
देबि है गे दैणा--- 
डाइ बोटो में ऐइ गे बसंती बहारा 
आई रैछौ रंग रंगीलो होली क त्यारा।।

ओ---
भांगै खट्टै आलू का गुटूका 
गूडक कटकी चहा क घूटूका 
आओ! झूमि ल्हियो गीत सुणूंनू---
गुलाबी शरारा ...
डा इ-बोटो में ऐइ गे बसंती बहारा।।

कैलाश सिंह चिलवाल 
बनौङा सोमेश्वर अल्मोड़ा
( वर्तमान- लखनऊ से)
11/3/2024

साभार:- फोटो न्यूज 18.
**********************
ब्योली- दुल्हन 
पौनै- पवन की 
देबि- देवी मां 
दैणा- आशिर्वाद 
भांगै खट्टै- भांग की चटनी 
गूडक कटकी- गुड़ के साथ चाय

फूलदेई

रचनाकार: उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम")

नमस्कार दगड़ियो।
आज "फूल देयी" त्यार छू।
प्रस्तुत छू आजैकि कविता

बखाई सब वीरान जै है गईं, भौत छी रौनक जां पन बेई।
तुमै बताओ कां जै करूं मैं, आज फूलदेई छम्मा देई।
आज फूल देई छम्मा देई, ना मैस दिखड़ौं ना वीक ठोर।
सुगंध लै है रै फूल लै खिलणईं, देखो यां पन चारों ओर।
कसी जै बतूं गोंनैकि व्यथा, दुखी जै हगो म्यर यो मन। 
उल्लासैल फूल देई मनाया, पैलि थामो यां गों बटि पलायन।

तब जै कौला फूल देई छम्मा देई, सासू ब्वारिक एकै लकार।
जी रया जाग रया, दैणी हजो द्वार और तुमर भरजो भकार।
दैणी हजो द्वार और तुमर भर जो भकार, लाल बुरांशल बोट सजो।
भगबान जस बासंती य मौसम हैरौ, रंग बिरंगी हमर गौं लै हजो।
गौं गौं पन तब सब नान नानतिन, लि बेर फूल और गुड़कि डेई।
ब्रह्मांड सारो गुंजायमान कर द्याल, घर घरै जब हौल फूल देई छम्मा देई।।

फूलदेई

आज चौंक बैर पूछ बैठी कुछ दगडी
क्यें छ य फूलदेई
मै बोल्यूं पुरुखों क विरासत
पहाडी़ लोकपर्व छ फूलदेई.

मैं नी हय हैरान भ्यार देश क दगडी छ
क्यें जाणछी फूलदेई
तब मैं 
ऑखी बंद कर बैर आपण बचपन मे न्हैं गयू
चैत बटिक बैशाखी तक
रंग रंगिल फूल चुन बैर
दैण बुरांस प्योलि क नान कलि चुन बैर
उमड़ घुमण गीत गाछीं
फूलदेई फूलदेई फूल फूल 
तुमार धैयी द्वार मे उने रुल

पूर चैत मास फूलदेई
तैतीस प्रतिशत क दौड़
निगल गै बचपन गीत
उनी वाल पीढीं अंजान हैरान 
परशान शर्मिदा छ फूलदेई
बस फेसबुक वटसप मे जिन्द छ फूलदेई

आपूं सबों के आशीष संस्कार मंदिरों क घंटियों जस पवित्र पहाडी़  त्यार फूलदैई क भौत भौत बधैं

सोमवार, 11 मार्च 2024

होली

होली गीत
************
आई रैछौ रंग रंगीलो होली क त्यारा 
डाइ- बोटो में ऐइ गे बसंती बहारा ।।

ओ--
बागों में खिली चंपा चमेली
कै बुरांश त कै फूली प्योंली,
ब्योली जसी धरती छाजी 
पौनै फुहारा--
डाइ-बोटो में ऐइ गे बसंत बहारा।।

ओ---
फूली सरसों य फूलीगे दैंणा 
ऐगो रसीलो फागुन म्हैंणा,
परदेसी सब घर ऐ गयी 
देबि है गे दैणा--- 
डाइ बोटो में ऐइ गे बसंती बहारा 
आई रैछौ रंग रंगीलो होली क त्यारा।।

ओ---
भांगै खट्टै आलू का गुटूका 
गूडक कटकी चहा क घूटूका 
आओ! झूमि ल्हियो गीत सुणूंनू---
गुलाबी शरारा ...
डा इ-बोटो में ऐइ गे बसंती बहारा।।

कैलाश सिंह चिलवाल 
बनौङा सोमेश्वर अल्मोड़ा
( वर्तमान- लखनऊ से)
11/3/2024

साभार:- फोटो न्यूज 18.
**********************
ब्योली- दुल्हन 
पौनै- पवन की 
देबि- देवी मां 
दैणा- आशिर्वाद 
भांगै खट्टै- भांग की चटनी 
गूडक कटकी- गुड़ के साथ चाय

गुरुवार, 7 मार्च 2024

शिवरात्री

ॐनमःशिवाय

 नंदीगण नतमस्तक सन्मुख, नीलकंठ पर शोभित विषधर,

मूषक संग गजानन बैठे, कार्तिकेय संग मोर खड़े॥

 सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर, सुंदरता चहुंओर भरे,

अंतर्मन से तुझे पुकारूं, हर हर हर महादेव हरे
पीड़ित जन हम युगों-युगों से, आकर तेरे द्वार खड़े,

जितना भोला मुख मंडल है, उतना तीखा भाला है।
असुरों को बींधा हर युग में, मुख पर विष का प्याला है॥
सुना है तूने राम-कृष्ण के, उतर धरा दुःख दर्द हरे,

सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर, सुंदरता चहुं ओर भरे,

अंतर्मन से तुझे पुकारूं, हर हर हर महादेव हरे॥

जन-जन के हृदय में बसे हो, पशु-पक्षी के प्राणनाथ हो,

शत-शत नमन्‌ त्रिलोकी तुमको, जय जय जय पशुपतिनाथ हरे।

सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर, सुंदरता चहुंओर भरे,

अंतर्मन से तुझे पुकारूं, हर हर हर महादेव हरे॥

आप सभी पर महादेव जी की कृपा बनी रहै हर हर महादेव
देवसती पहाडी़ बटोही

श्रीमान महेश रौतेला जी की रचना बटुवा हरै गो

य शहरा मजि म्यर बटुआ हरै गो
य चलति गाड़ि में, म्यर जेब कटि गे
जथां चानु उथां, जेब कटि गे,
इथां चानु ,उथां चानु
मन उदास हयि गो।
मैं सोचनैं रै गयु
म्यर पहाड़ै हरै गो,
इथां चानु, उथां चानु
म्यर लिजि य शहर, शहर हरै गो।
कस समयि आछ बटुआ हरै गो
य लोगों की भीड़ै
म्यर जेबै कटि गे
मैं सोचनुं आब, यां म्यर पहाड़ै हरै गो।
काफो हरै ग या,हुसाउ हरै ग य
बुरांश का फूल ज सा
म्यर आँख हइ ग या
ठुल बजार मजि, म्यर बटुआ हरै ग य।

* महेश रौतेला

सोमवार, 4 मार्च 2024

श्रीमान तारादत तिवाडी़ जी की रचना

आहा कास छी हम
   आब कास है गयूं
भरि पुरी परवार
   फिर लै एकलै जास रै गयूं
पास पडौस
  आब 
    आब पराय जास लागनयीं
शकर ढेपु वाल
    एकल कट्टू है गयीं
बुलांण लाग रयीं
  बात
   बात उनार स्यूड जास 
     बुडंन लाग रयीं
धौड़ दगौड़
   पर निरै भरौस
आपण पीड़
    सबनंहै ठुलि
दुहरेकि पीडेकि नि
    लागनै मणी लै कसक
डबल /ढेपु
 डबल आब रिस्त है ठुल हैगो
देखंन
 देखंने मनखी कतुक बदयी
   भौत बदयी गो //
तारा दत्त तिवारी
हरत्वाव नैनताव बटिक

शनिवार, 2 मार्च 2024

कैलाश सिंह चिलवाल जी की हास्य कविता

कुंमाउनी हास्य कविता
*******************
आज-
रधुली इज कै वीक दगणियांल "भड़कै" दे
भनपान नी कर मील हो-
यैक लिजी वील मीकै "नड़कै"दे।

मील कौय मी सयाण मैस छु
य बातक तो ध्यान धर
दा!! वील नी सुणि हो-
मीकै सुदै नाना'कि चारि "झड़कै" दे।

वीक हाथक बेलन जै लुटण लागु
ओ बौज्यू! वील म्यर हाथ जै "मड़कै" दे।

फेसबुकी दगणी धै हलो-हाइ करणौंछी मी
वील सुदै म्यर मोबाइल जै "पड़कै" दे
भाजण चाणौंछी मी वीक डरैल 
पै वील पकड़िबेर मीकै सीढ़ियों बटी "गड़कै" दे।

समौस-जलेबि ल्यायूं हो बजार बटी 
पजै आइ लव यू कैबेर वील दिल "धड़कै" दे
म्यर बणांइ चहा वील गरमै "हड़कै" दे।

(अतवार छु पै, आब रधुली मैक झोइ भात तैयार करनूं)
नोट- कापीराइट छु य म्यर क्वे चोरिया झन नंतर गुलाबी शरारा वाल कांड करि द्यूंल हो महाराज।

कैलाश सिंह चिलवाल 
3 फरवरी 2024

शुक्रवार, 1 मार्च 2024

श्रीमान महेश रौतेला जी की रचना

बसंत:

तुमलै हिटला, हमलै हिटुल
य बसंत गैं भेटिबै औंल,
कुछ फूल तुम टिपला
कुछ फूल हम टिपुल,
प्योलिक फूल जस सजि बै
यों टोपरां गैं भरि भरि ल्योंल,
भाल दिन एसिकै आनि
पिल,निल हर रंग में सजनि।
आंख आंखांमें बसि य बसंत
तुमर वति लै आल,
हमर वैति लै आल।
हिमालय लै खिल गो
अकाश में छै बै
डाव- बोटियों में प्राण अयि गो।
हिमाला तु चानैं रैयै
हर बसंत गैं ढूंढनैं रैयै,
जां म्यर गायि, त्यर गायि छु
कान लगै बै सुणि रैयै।