रविवार, 24 नवंबर 2024

अ से ज्ञ तक कविता

एक अनोखी कोशिश
वर्णमाला का क्रमवार प्रयोग कर लिखी एक कविता ! 

अ से अं, क से ह + क्ष, त्र, ज्ञ, श्र

अदना सा है आदमी
आइना दिखाती रोज ही जिन्दगी
इतिहास को बदलने की बातें करता 
ईमान पर भी कायम न रह पाता आदमी !

उम्र भर करता गिले शिकवे
ऊल जलूल करता हरकतें 
ऋषि बनने का रचता ढोंग
एकाधिपत्य के पीछे दौड़ता आदमी!

ऐंठ इसमें गजब की पर 
ओहदे को सलाम करता 
औसतन रोज ही मरता ऐसे
अंत को भी भूल जाता आदमी!

ककहरा बिन सीखे ही 
खखोरता अपना भविष्य 
गणित बिन समझे ही
घटा जमा में रोज उलझता आदमी!

चकाचौंध में हुआ मस्त
छकाने की पड़ गई लत
जमीर भी अपना बेच आया
झाड़ पर खुद को चढ़ाता आदमी!

टकराव में बीता दी जिन्दगी
ठहराव न पाया कहीं
डगर पकड़ी आड़ी तिरछी
ढपली खुद ही बजाता आदमी!

तख्तोताज की रखता ख्वाहिश 
थापी देता खुद को ही
दलदल में धंसता जाता 
धर्म को भी न बक्शता आदमी !

नकाब से ढका मुखड़ा 
पतन की राह पर चलता
फक्कड़ सा जो दिखता 
बदनियति में पलता आदमी! 

भकोस भकोस यूँ खाता 
मकड़जाल में फँसता जाता 
यश अर्जन की चाहत में 
रकीब अपना ही बनता आदमी!

लगाई बुझाई में रस लेता
वश में न करता अहंकार 
शापित सा जीवन जीता 
षडयंत्र का हिस्सा बनता आदमी !

सत्ता का लोलुप 
हठ का पुतला अन्त में 
क्षमा दान की करे पुकार फिर
त्राहि माम त्राहि माम उच्चारता आदमी !

ज्ञान की बानी पर कान धर इस
श्राप से क्यूं न मुक्त होता आदमी।

अंजू खरबंदा

शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

रामलीला पर कविता

आज मिकें भौतें कम देखिनि रामलील नाटक हून
घनघोर जंगोंव मे भटकणि वाल राम लखन
तूमुल देखी तुमूल देखी हरैई सीता
खडाऊं लिबैर अयोध्या लौटणि वाल भरत
पांव पखार कठौती क जल वाल मंत्रमुग्ध मंल्लाह काछैं 
लक्ष्मण  ल नाक काटि सूर्पनखा बैहाल छ
खर दूषण बध कर तबै य बवाल छ
स्वर्ण मृग बनिबैर घा खाणि वाल  मारिच
मिठ्ठ मिठ्ठ बैर चखबैर धरणि वालि शबरी
नारी कै चोर बैर लि जाणि वाल रावण
लड़ बैर पंख कटाणि वाल जटायू
चानै चानै लडूहूं तैयार रुछी
हनुमान सुग्रीव जामवंत अंगद
राम राम रटनि वाल लंका विभीषण
लंका के धूं धूं जलोणि वाल हनुमान
पुरुषोत्तम राम सीता कें कंलंकित करणि वाल धौबि
अश्वमैघ यज्ञ क घ्वड़ पकडी़ वाल लवकुश
रामायण रचाणि वाल बाल्मिकी
त्रैतायुग मे सब मिलछी
य कलयुग मे आपाधापी
छल कपट कोलाहल शोर भरी
जीवनयुद्ध मे हम सब पापी
हम तो केवल नाचैं रु राम जाणो को हमूकें नचू रो
य रामलील नाटक देख बैर 
कै हम समझ रु कै हमर समझ मे उरों 
बताओ धै.... 
देव सती पहाडी़ बटोही

बुधवार, 2 अक्टूबर 2024

श्रीमान रतन सिंह किरमोलिया ज्यू क कुमाउनी कविता

कोशीश करला है जाल।
चै रौला रै जाल ।।
काम क्वे लै कठिन न्हैं।
कामै कि लिजी लगन चैं।।
मन जगाला जागि जाल।
ध्यान लगाला लागि जाल ।।
बस मन अर ध्यान एक चैं।
काम क परण नेक चैं।।
करि सकौ जो बखतै पन्यार।
मज्जल वैलै करै पार ।।
नय नय स्वैण देखण पड़ाल।
नय नय बाट ढुनण पड़ाल ।।
भरण पड़ैलि लंबी उड़ान।
फानण पड़ल ठुल तोफान।।
मिहनत कि भितेर जगाओ ललक।
तबै हात लागलि भलि सलक।।
उठो आब ठाड़ बादो कमर।
फिरि कां मिलैं य उमर।।
नानो ! तुम हमर देशाक तराण छा।
आपण मैं बाबोंक तुम पराण छा।।

रतन सिंह किरमोलिया

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024

मूर्ति विसर्जन

मूर्तियोंक विसर्जन तुम चुप किले छा»

रौल गध्यारों किनारों  पर
देखो मैल  देवी मय्या क मूर्ति विसर्जन

पर यू गध्यारों मे उ ताकत का
उ किनार लगै द् यू 
खंडित प्रतिमा
आदू काटि ख्वर
टूटी चूड़ि
बिखरे बाव
फटी चुनरि
स्वास्तिकाक  सुसज्जित कलशों क
खंड-खंड
फट री मय्या क वस्त्र
एक ओर लाग री
मय्या क  जयकारा
तो कथैं पड़ी रे मय्या क मूर्ति निर्वस्त्र
धर्म क नाम पर
य कस काम
माँ दुर्गा क य कस सम्मान?
जो मूर्तिक  पूज पाठ करि
सम्मान दि
माँ-माँ कै बैर 
पुत्र हून क मान दि
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
क जाप कर
तुमि आदि शक्ति
शक्ति स्वरूपा छा
म्येरि जीवनदायिनी
कल्याणमयी मय्या छा
फिर किले मय्या क विसर्जन
किले निष्कासित
इतू अपमानित।
कब तक चलल
य पाखंड?
स्त्री शक्ति क उपहास
स्त्रीयूक  क मानमर्दन
मूल्यों क हृास
आओ मिलकर करुल  य संकल्प
अब नि  करुल मय्या विसर्जन
उके प्रति वर्ष संवारुंल
नई रंगोंल सजोंल
क्येलेकि मय्या न्हैती  विसर्जन छवि
छ प्रेम प्रतिष्ठा क अक्षय निधि।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

2jun

द्वी जून क रव्टा लिजी
खून पसीन बगा रौ
चा रौ सुकून दिन भरि थकान बटिक

घर बटी न्है जारि
द्वी रव्टा कमूहूनी
बैहाल हैरों मनुज
हालातों क सामणि

द्वी जून क रव्ट
दिनोंदिन चिंता खा रै
बढी हुई महंगाई आंख दैखुरै

रव्ट कपड़ मकान
चंद सांसों क डोर
जिंदगी भागदौड़
ना कई चैन ना कई ठौर

दुनि गोल मटोल
कई म्वाट कई पतल
घ्यू लगाई सबूकें चै
यू रव्ट क्यें क्यें खैल दिखै

क्वें परदेश जारौं
नौकरी हजूरी लगारौं
आंधी तूफां सर्दी सह बैर
द्वी रव्ट कमारौं

रव्ट मतलब मिहनत
स्वाभिमान ल भरपूर
प्रेम पूर्वक रव्ट कमाऔ
रौं जग मे मशहूर!

द्वी जून क
रव्टा लिजी
कतूक पापड़ बैलन पडनी
हम सब जाणनूं
आपूं चाहै सैठ छा या गरीब
द्वी जून क रव्टा लिजी प्रयत्न करण पडनी

मजदूरों कें आज द्वी रव्टा क फिक्र छ
य चक्कर मे रोज मजदूरी करू
खून पसीड़ एक करु
तब जै बैर द्वी रव्टाक प्रबंध हूछ
@देव सती

बुधवार, 25 सितंबर 2024

चिठ्ठी

मूबाईल में उ बात का.चिठ्ठी पत्री मे छी संदेश शक्ति.कागज की खूशबू छी.स्याहिक सुगंध छी.भावनाओं क महक छी.
च्यल कि चिठ्ठी आइ ईजाल ख्वर लगाई.वात्सल्य क श्रंगार छी चिठ्ठी.मुबाइल मे उ बात का
अब चिठ्ठी केवल कार्यालय पत्र
इ मेल पर मेल.कभैं छी चिठ्ठी नौकरी क खुशी.सबैं संदेश गतिमान छ.अब उ महक न्हैति
मूबाइल मे उ बात न्हैति.....

सोल सराद

पित्रपक्ष शुरू होते ही एक बकवास करने की होड़ लग जाती  है कि __________
अपने अपने तरीके से  कुछ अनभिज्ञ पोस्ट ड़ालना चालू कर देते हैं कि_____
 माँ बाप को जीते जी सारे सुख देना ही वास्तविक श्राद्ध है...!! 
 कौवों को खिलाना  ढकोसला है।  【उन्हें शायद ये बिल्कुल भी नही पता होगा की पित्रपक्ष में कौवों को खिलाने से पित्र दोष समाप्त होते हैं।】
क्या जानते हैं ऐसे लोग श्राद्ध के बारे में❓
जो लोग अधूरा ज्ञान रखकर अनादिकाल से चली आ रही  परम्परा का मजाक उड़ाना चालू किया है उस पर प्रश्नवाचक❓चिन्ह लगाकर नयी पीढ़ी को भृमित कर रहे कि ये खोखला आडम्बर है⛔ ये अनपढों की निशानी है।
उनसे ये कहना चाहूंगा  कि श्राद्ध अपनी जगह है और जीते जी  माँ बाप का सम्मान और सुखी रखना अपनी जगह।
जीते जी मा बाप को उनके अंतिम समय तक  आप क्यो न श्रवण कुमार बनकर सेवा करे पर इसका ये कतई पर्याय नही की मृत्यु पश्चात उनको तर्पण की जरूरत नही होगी ,,,,तर्पण की प्रक्रिया तो करनी ही पड़ेगी।
क्योंकि श्राद्ध का वास्तविक अर्थ होता है ____ 
परिवार के वो  सदस्य जो गुजर चुके हैं°  वो दादी दादा हों या चाची चाचा हो अन्य कोई पूर्वज हों या माँ बाप ही क्यो न हो उन्हें पितरों में शामिल करने की एक प्रक्रिया होती है श्राद्ध।।
 और ये प्रथा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के समय से चली आ रही 
इस पूजा का ये कतई मतलब नही की आपने जीते जी अपने माता पिता का जीवन कैसे गुजारा ||  
भले ही आपने उन्हें फ़ूलो की सेज या पलकों पर क्यो न बिठा के रखा हो फर भी उनकी मृत्यु पश्चात उनका तर्पण तो करना ही पड़ेगा।
 और ये वही पितर होते हैं जिन्हें जब घर मे किसी का विवाह होता है तो सबसे पहले इन्हीं का आवाहन किया जाता है ।
 और यह  हमारे सनातन  धर्म की परंपरा है 
इसलिए विनम्र निवेदन है कि  अधूरा ज्ञान रखकर कोई इस पर ज्ञान न पेले🙏

क्ये लेखनू

क्ये लेखनूं
  देवभूमि तू मैं राक्षसों तान्डव लेखूं 
नेताओं विकास लेखूं 
  कर्मचारियों ठगणी नीयत लेखूं 
दगडियो तुमी बताओ 
  आब मैं को एंगल बटिक 
    पहाडेकि को कसि खूबसूरती लेखूं 
    मैं लेखूं त क्ये लेखूं 
बांज गौं मैं कुरी बुज लेखूं 
 टुटी कुड़ी बांज बाडि ख्वाडि लेखूं 
बिन नानौंक स्कूल लेखूं 
खाल्ली सड़केकि पीड़ लेखूं 
बिन मरीजौं असपताव लेखूं 
   मैं लेखूं तो क्ये लेखूं 
एकलै थडि मैं बैठी 
    आम बुबुक कवीड़ कहांणि लेखूं 
बहु गोरबाछनेकि पीड़ लेखूं 
बागौक डुडाट सुंअर बानरनौक उज्याड़ लेखूं 
दगडियो आब तुमी बताओ मैं 
मैं लेखूं त क्ये लेखूं //

श्रीमान सुरेद्र रावत असोज कविता

रचनाकार: सुरेंद्र रावत

असोज के महीने में, काम करते करते।
अपनी बेटी को याद कर रही है एक मां।
अब जिसकी शादी हो गयी है। 
जरा गौर किजियेगा।

छापड़ी में लोहटू र्वट, हाथों में केतली।
मूं गढेरिक साग बणै बै, ल्या धैं मेरी चेली।। 
गिलास भरि बै छां, हां गिलास भरि बै छां। 
मनुवक र्वटम धरि बै दिदे, तीलै की चटणी।।

पाणी पिणक टैम निछ, लैगे चाहा'क अमल।
धारों ठन्डो पाणी ल्यै बे, को मकणी द्यल।। 
गिलास भरि बै चा, हां गिलास भरि बै चा।
मिसरी क कटक दशैं , दिजा तु मकणी।।

छापड़ी में लोहटू र्वट, हाथों में केतली। 
मूं गढेरिक साग बणै बै, ल्या धैं मेरी चेली।।
असोज मैहण लै रौ, धपरी को घाम।
मेरी पोथा तेरि आणै, मकैं भौतै फाम।।

टिमटिमाता पहाड़

" टिमटिमाती धमक चमक में  "" खोयापहाड़ देखा !
  एक चूल्हे ( छिलुक लम्फू) से रौशन !  सारा गाँव देखा !
कहाँ खोया वो एक आवाज ( धात )पर खड़ा साथ पहाड़ देखा कंकरीटो मे दबे पहाड़ की सिसकी सुन सक वो "पहाड़ आखरी बार कहाँ देखा !

अशोज का राशिफल

पहाड़ का मासिक राशिफल

असोज में काम का दबाव रहेगा, विल चार लूट लगें हाली मिल नी लगैराय नी हून चैन और
घाम से मुख लाल रहेगा चटकुर और कूम्मरों को देखकर
बीच-बीच में झ्यांक उठेंगे, रात को दर्द भरी मीठी नींद आएगी।बेवजह ना उलझें।ककड़ी और पानी खाते-पीते रहें, मूरों मच्छरों को पटकाते रहै ,असोज आपूण टैम पर समेरी जाल ज्याद मारमार  झन करिया आपका अशोज शुभ रहै!😝🖐️🖐️🖐️🖐️🖐️

विश्वकर्मा दिवस

[17/09, 2:57 am] D sati: तकनीकी कला क जो छ ज्ञाता,
देवालय, शिवालय क छ विज्ञाता।
सत्रह सितम्बर छ जन्म दिवस,
कहलुनी शिल्पकला क  प्रज्ञाता।।
कला कौशल में निपुण छ,
बनए सुने क लंका!
विश्वकर्मा भगवान छ,
सबैं देवों क अभियंता।।
शिल्प कला क  जो छ ज्ञाता!
विष्णु वैकुंठ क  छ निर्माता!!
कूनी हम सबूं के प्रभु द् यो ज्ञान!
क्येलकि हमें क्ये नी आन!!
पृथ्वी, स्वर्ग लोक क भवन बनाइ!
विष्णु चक्र, शिव त्रिशूल तुम्हू बै पाई!!
सब देवन पर करि कृपा आप भारी! 
पुष्पक दी कुबेर के हइ उ  विमान धारी।।
इंद्रपुरी, कुबेरपुरी और यमपूरी बनाइ!
द्वारिका बसे बैर कृष्ण ज्यूक प्रिय कहलाइ!!
तुमार बनाइ  कुंडल के धारण कर बैर!
दानी कर्ण कुंडल धारक कहलाइ!!
विश्वकर्मा ज्यू छ पंच मुख धारी!
करनि उ हंस क सवारी!!
तीनों लोक, चौद भुवन मे!,
सब करनी उनरी जय जयकारी!!
[17/09, 3:10 am] D sati: विश्वकर्मा जयन्ती  पर कविता  
सृष्टि क रचयिता ,
महान शिल्पी ,
विज्ञान विधाता ,
भगवान विश्वकर्मा ज्यू  के प्रणाम |

स्यूड़ बटी साबौं क सम्मान करो
बस मन लगै बैर क्यें काम त करो ,
रत्ति बै ब्याव करो ,
बस मन लगै बैर काम करो |
हाथो में हुनर छ तो सम्मान मिलोल 
खाली नी भै रौला कें ले काम मिलोल
इंतज़ार करेगी दुनिया आपूण
काम कर बैर दाम मिलोल
भले  ही नी मिलेलि सरकारि नौकरी 
पर हुनर क पूर दाम मिलोल
यैक लिजी पढा़ई क दगड़ दगडै़
क्यें काम ले सीखो ,
देव विश्वकर्मा का ध्यान करो ,
जग में अपूण  नाम करो |
||जय बाबा विश्वकर्मा ||

खतडू़

अमरकोष पढ़ो, इतिहासा पत्र पल्टी
खतड़सींग नि मिल, गैड़ नि मिल!
कथ्यार पुछिन, पुछ्यार पुछिन-
गणत करै, जागर लगा-
बैसि भैट्यूं, रमौल सुणौं भारत सुणौं-
खतड़सींग नि मिल, गैड नि मिल।
स्याल्दे बिखैति गयूं, देवधुरै बग्वाव गयूं,
जागसर गयूं, बागसर गयूं
अल्मोडै कि नंदेबी गयूं
खतड़सिंह नि मिल, गैड़ नि मिल!
तब मैल समझौ
खतड़सींग और गैड़ द्वी अफवा हुनाल!
लेकिन चैमास निड़ाव
नानतिन थैं पत्त लागौ-
कि खतडुवा एक त्यार छ-
उ लै सिर्फ कुमूंक ऋतु त्यार.

हिंदी दिवस

" बारखड़ी ! और नान एक ठुल एक पड़ने वालों को 
हिन्दी दिवस की
हार्दिक शुभकामनायें

मेरा जो तजुर्बा है जिंदगी

मेरा जो भी तजुर्बा है ऐ ज़िंदगी,
मै तुझे बतला जाऊँगा।
चाहे जितना करना पड़े संघर्ष,
मै कर जाऊँगा।
उम्म्मीद क्या होती है ज़माने में
ये हमसे बेहतर कोई नहीं जानता,
कभी आ मेरी चौखट पे,
ये विषय भी तुझे सिखला जाऊँगा।
मेरा जो भी तजुर्बा है ऐ ज़िन्दगी,
मैं तुझे बतला जाऊँगा।
रंग बदल के तु मेरा इम्तिहां ना ले
जीतूंगा मै ही अब हार का नाम ना ले,
सितम का ज़ादू तेरा औरों पे चल जायेगा
उठूँगा हर हाल में अब गिरने का नाम ना ले।
प्यास मेरी थोड़े की नही है जो मिट जाये,
ज़रूरत आने पर ये आसमां भी पी जाऊँगा।
मेरा जो भी तजुर्बा है ऐ ज़िन्दगी,
मैं तुझे बतला जाऊँगा।

Nyjd

जय श्री राम

जीवन के नाटक में लीला
हर प्राणी को निश्चित करनी
मूल तत्व ज्ञानी कहते हैं
जैसी करनी वैसी भरनी.

हम तो केवल नाच रहै है
कौन शक्ति जो हमें नचाती
यह लीला नर्तक के मन में 
समझ नहीं जीवन भर आती.

बिना आप सभी के सहयोग प्राप्त कर
रामलीला कैसे सम्भव हो जाती.

हे हनुमत उर प्रभुमय कर दो
मन की बीणा के तारों को.

त्रैतायुग की संस्कृति को भी आगे चलते रहना है.
हे नवयुवक जागृति दल के सभी सदस्यों रामनाम यूही 
जपते रहना है...
जय श्री राम

सोमवार, 16 सितंबर 2024

१७सितम्बर विश्वकर्मा दिवस

तकनीकी कला क जो छ ज्ञाता,
देवालय, शिवालय क छ विज्ञाता।
सत्रह सितम्बर छ जन्म दिवस,
कह लानि शिल्पकला क  प्रज्ञाता।।
कला कौशल में निपुण छ,
बने सुने क लंका!
विश्वकर्मा भगवान छ,
सबैं देवों क अभियंता।।
शिल्प कला  जो छ ज्ञाता!
विष्णु वैकुंठ क  छ निर्माता!!
हम सबूं के प्रभु द् यो ज्ञान!
क्येलकि हमूकें क्ये नी आन!!
पृथ्वी, स्वर्ग लोक क भवन बनाइ!
विष्णु चक्र, शिव त्रिशूल तुम्हू बै पाई!!
सब देवन पर करि कृपा आपूं भारी! 
पुष्पक दी कुबेर के हइ उ  विमान धारी।।
इंद्रपुरी, कुबेरपुरी और यमपूरी बनाइ!
द्वारिका बसे बैर कृष्ण ज्यूक प्रिय कहलाइ!!
तुमार बनाइ  कुंडल के धारण कर बैर!
दानी कर्ण कुंडल धारक कहलाइ!!
विश्वकर्मा ज्यू छ पंच मुख धारी!
करनि उ हंस क सवारी!!
तीनों लोक, चौद भुवन मे!,
सब करनी उनरी जय जयकारी!!
विश्वकर्मा जयन्ती  पर कविता  
सृष्टि क रचयिता ,
महान शिल्पी ,
विज्ञान विधाता ,
भगवान विश्वकर्मा ज्यू  के प्रणाम |
स्यूड़ बटी साबौं करो सम्मान
बस मन लगै बैर  
काम  करो ,
रत्ति बै ब्याव करो ,
बस मन लगै बैर काम करो |
हाथो में हुनर छ तो सम्मान मिलोल 
खाली नी भै रौला कें ले काम मिलोल
इंतज़ार करेगी दुनिया आपूण
काम कर बैर दाम मिलोल
भले  ही नी मिलेलि सरकारि नौकरी 
पर हुनर क पूर दाम मिलोल
यैक लिजी पढा़ई क दगड़ दगडै़
क्यें काम ले सीखो ,
देव विश्वकर्मा का ध्यान करो ,
जग में अपूण  नाम करो |
||जय बाबा विश्वकर्मा ||

शनिवार, 6 जुलाई 2024

जून न्हैं गो रौनक ले न्है गै

जून न्हैं गो,रौनक लै न्हैं गै
क्वैं शहर न्हैं गो 
क्वैं भाबर न्हैं गो...
दगाड़ मे लि गई प्याज कट्ट
पूलम खुमानी बेडू तिमिल फोटो खिचीं स्यट....
और जन तका कै गई असोज मे भेज दिया पिहव काकड़ मूवक फांच....

उ आइ कुछ दिन बढें गई
गौंनौं क चहल पहल
कुछ हमूहें सीख बैर कुछ सीखें बैर
सीख बैर गई आलू थैचूं और भट्टाक डूबुक..
सिखै बैर गई जन्मदिन सालगिरह मनूण
रील ब्लॉग बनूण
किटी पार्टी करण
कारों मे धारों मे
गौनों क बाजारु मे..

देवी दय्प्तोंक मंदिरो मे बजै गई घंटी
बतै गई इनर धार्मिक महत्ता...

आपणि तो मजबूरी बतै बैर
समझै गई हमूकें क्यारीं खेतबाडी़ गौरु भैंस पालण फैद
स्वरोजगार क कैद...

बस कुछै दिन ठाडी़ रई
गौनौंक तलि मलि सारियों मे लाल सफेद काई चमचमान कार
जो सरपट दौड़बैर फिर आघिल क्वैं कामकाजों मे आल
हमर हाथ बटाल...

आब हमर यकलैपन कें देख बैर ऐ गै रिमझिम बरखा क बूंद
निकल ऐ गई घा कोंपल
डानूंक उडी कूहर
आब तो छौय ले फूटाल
गध्यर लें पुकारंल
उनूकें तरसाल हर्षाल
और फिर यई बूलाल...

जय देवभूमि जय उत्तराखण्ड
देवसती पहाडी़ बटोही

मंगलवार, 18 जून 2024

कयामत के आसार

शीर्षक:कयामत के आसार

तपने लगे सब घर-शहर,
कैसे  होगा गुजर-बसर।
अब बस है एक ही खबर,
लू का कहर,लू का कहर।

गया हो या दिल्ली नगर,
असह्य गर्मी आठो पहर।
जल नहीं ताल,नदी-नहर,
सूख रहे तरु कहर कहर।

तरु काट विकास कर गए,
जलस्रोत भर घर बन गए।
प्लास्टिक से धरा पट गई,
इसी से प्रकृति उलट गई।

खतरे   में  पानी -पहाड़,
उजड़ा जो जंगल व झाड़।
अभी भी चेत जा मानव,
कम हो विकास का दानव।

 सुनो प्रकृति की पुकार को,
 कयामत के आसार को।
नरेंद्र सिंह
19.06.2024

रविवार, 16 जून 2024

श्रीमान शंकर दत्त जोशी जी की रचना

💐पहाडों का अमंगल💐
अगर जलेंगे यों ही सारेजंगल 
तो होगा ही  पहाड़ों का अमंगल ।
सूखेंगे गाड़-गधेरे सूखेंगे नौले धारे 
महीना आषाढ़  गर्मी तीस के पार
बारिश न हुए हो जाता है साल
पसीने की तड़-तड़ पर छिड़ा है दंगल ।
अगर जलेंगे यों ही  सारे जंगल
तो होगा ही पहाड़ों का अमंगल ।।
जंगल जलें तो जलें हमारा क्या !
ऐसी जहरीली सोच पली है
बद से बद्तर होंगे हालात
ये तो बस खतरे की घंटी है ।
छोड़ो खुदगर्जी समझो जिम्मेदारी 
वर्ना न जंगल रहेगा न  रहेगा जल
ज़मीन भी सारी हो जाएगी बंजर 
हर गांव का होगा इतिहास का बंडल 
हर दरवाजे पर लगा होगा संगल ।
अगर जलेंगे यों ही जंगल 
तो होगा ही पहाड़ों का अमंगल।।

शनिवार, 15 जून 2024

श्रीमान दीवान सिंह कठायत जी की रचना

ओ बाबा नीम करौली तुमि दैणा हैई जाया। 
दैणा हयी जाया स्वामी वरदैणा हैई जाया।। 

हनुमंत रूप तूमी राम दुलारा
राम नाम जप सदा तुमन को प्यारा
      हे परमहंस प्रभु पार लगा दीया
      दैणा हयी जाया स्वामी वरदैणा हैई जाया। 
तुमारा दरवारा सब एक समान
दीन गरीब होवे या हो धनवान
       हे दयालु महाराज ममता फैला दीया
       दैणा हयी जाया स्वामी वरदैणा हैई जाया। 
कैंची धाम तुमन को छ्यो अति प्यारो
सोमवारी जी की यज्ञ थली पहाड़ी न्यारो
        दीवाना सेवक तुमरो दिव्य बणा दीया
        दैणा हयी जाया स्वामी वरदैणा हैई जाया। 

                दीवान सिंह कठायत प्रधानाध्यापक, राआप्रावि उडियारी ,बेरीनाग।

शुक्रवार, 14 जून 2024

प्रसिद्ध व्यंगकार श्रीमान राजीव पाण्डे जी की रचना कैची धाम वाले बाबाजी पर

जय जय  नीम करौली बाबा, 
दु:ख  पीडा़ सब हर लो बाबा, 
जो भी कैची धाम आये, 
उसके सारे कष्ट मिट जाये, 
जय जय नीम करौली बाबा, 
शिप्रा के तट पर आकर,  
लोग करें गुणगान हो बाबा, 
जय जय नीम करौली बाबा, 
जय जय नीम करौली बाबा, 
आप  कौशल्या  के सुत  हो बाबा, 
बिगड़ी बनादो सबकी बाबा, 
जय जय नीम करौली बाबा, 
चाहे वृदांवन हो, चाहे हो लखनऊ , 
चाहे हनुमान गढी हो, या हो भुमियाधार  बाबा, 
जो भी आता द्वार तिहारे, 
सुख समृद्धि है वो पाता, 
जय जय नीम करौली बाबा, 
जय जय नीम करौली बाबा,
#खीमदा
एक छोटी रचना बाबाजी को समर्पित 🙏🏻🙏🏻🌹🌹

सोमवार, 10 जून 2024

नदी से  -  पानी नहीं,  रेत चाहिए।
पहाड़ से - औषधि नहीं, पत्थर चाहिए।
पेड़ से  - छाया नहीं, लकड़ी चाहिए।
खेत से - अन्न नहीं, नकद फसल चाहिए।

उलीच ली रेत, खोद लिए पत्थर,
काट लिए पेड़, तोड़ दी मेड़़।

रेत से पक्की सड़क , पत्थर से मकान बनाकर लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे सजाकर

अब भटक रहे हैं।

सूखे कुओं में झाँकते, 
रीती नदियाँ ताकते,
झाड़ियां खोजते लू के थपेड़ों में,
बिना छाया के ही हो जाती सुबह से शाम।
और गली-गली ढूंढ़ रहे हैं आक्सीजन।

फिर भी सब बर्तन खाली l                                                           सोने के अंडे के लालच में,  मानव ने मुर्गी मार डाली।

बुधवार, 5 जून 2024

मेरी रचना

हाव चै सबूकें शुद्ध
पेड़ नै क्वै लगू रई
अनजान मे सब रोगों के 
दगाड़ आपू बलू रई

हरियाली फैलै बे ओल 
अब हम सबूकें स्वस्थ बनूल
संदेश सब जाग फैलोल
आपन पर्यावरण बचूल

जैकै कूनी पृथ्वीक आवरण 
उ छ हमर पर्यावरण
प्रदूषण बन गो पर्यावरण क
चिंता क कारण

य प्रदूषण यसि बढें रो 
जैक न्हैति क्वै माप
दैखों कसी माठू माठ
बनै रो अभिशाप

हरियाली खत्म ह्वैगै
धधकैरै सूरजैक ज्वाला
दिनोंदिन बढणि प्रदूषण
औजोन परत कै बनू रो निवाला

प्रकृतिक रक्षा करो
प्रदूषण रोक बैर
वृक्षारोपण करबैर
प्रदूषण पर करो वार
प्रकृतिक करो सम्मान
पर्यावरण क स्वच्छताक ले धरिया ध्यान

यैक रक्षा हैतु तुम चलावों
प्रदूषण मुक्ति अभियान

आऔ य संकल्प उठूल
आपण पर्यावरण बचूल

हर दिन एक नई वृक्ष लगूल 
आपन आपन जीवन बचूल


बानों बान य धरा क ऑचव
जैक नील अगास
पहाडों जस उच कपाव
वि पर सूर्ज चन्द्रमा जस बिंदियूक ताज
गध्यार छीण जास छल छल छलकनी यौवन
सतरंगी पेड पौधोंक स्यूनि सिंगार
खेत खलिहानों मे लहलहाणि मंद मंद मुस्कान
*हौई यई त छ य प्रकृतिक स्वच्छ स्वरुप*

देव सती पहाडी़ बटोही

श्रीमान पूरन चन्द्र काण्डपाल ज्यू रचना

खरी खरी - 1448 : पर्यावरण बचौ ( 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस )

सौवा जंगवोंल पाणी बुसै है
डाव बोट काटणियांल जंगव धुसै है। 

जंगव उजाड़ि हलीं आग लगुणियांल
जड़ि बुटि उजाड़ि हलीं जाड़ खोदणियांल। 

प्लास्टिकै थैलिक ढेर पहाड़ पुजिगो
बखत पर द्यो निहुणल पहाड़ सुकिगो। 

अनाधून ख्वैरान पहाड़क हैगो
पाणि जंगव जमीन कैं माफिया खैगो। 

चौमासाक द्योक स्वैर हरैगीं
बदोव एकबटीण है पैली खरैगीं। 

नौव धार सीरक पाणि उजड़िगो
हरैगे हरयाइ पर्यावरण बिगड़िगो। 

वैज्ञानिक संसारि गर्मी बतूंरीं
अटपट बिकास कैं रातदिन घतूंरीं। 

बचौ पर्यावरण तराण लगै दियो
जता लै द्यो हूं पाणि नि बगण दियो। 

कसिके लै द्वि चार डाव बोट लगौ
पनाणक पाणिल लै उम्मीद जगौ। 

थ्वाड़ कोशिश करो हिम्मत द्यखौ
पर्यावरण बचुणियां में नाम ल्यखौ। 

म्यर यूट्यूब चैनल लै देखिया । धन्यवाद। 

https://youtube.com/@poorankandpal5634

पूरन चन्द्र कांडपाल
05.06.2024

श्रीमान रमेश हितैषी ज्यू रचना

रमेश हितैषी 
कुमाउनी गढ़वाली हिंदी साहित्य सृजक

डाइ लगाओ

डाइ लगाओ जीवन बचाओ,  खुद बचौ औरों कें बचाओ। 
जीवन मे कुछ बचौ न बचौ,  पर हवा पाणि जरूर बचाओ। 
 
 
बिन डाइ बिन पाणि नि बचली ज्यान, 
    मथ मथै नि चहाओ आजि लै धरौ ध्यान।  
बांज, बुरांश कांफोव लगाओ,  
     देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
नाग धरती कु श्रंगार कै जाओ, 
     अघिला पीड़ी की कुछ समाउ कै जाओ।  
कसिक लिल सांस यौ समझी जाओ, 
    देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
बांज, बुरांश कांफोव डाइ छौ पाणि कि महतारी, 
     नि हौळ पाणि मरळि दूनि सारी। 
यू डायौं जंगल कें मिलि बै बचाओ,  
    देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
उतीस खड़ीक अंयार लोद जंगव कि सान, 
     जति हनि घोर जंगव वेति हों धरती क मान।
कुहां कें हटाओ बांज, बुरांश कांफोव लगाओ, 
     देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
बेडु, तिमिल फें कें जरूर बचाओ, 
     गोरू बकर चारु हौल, भलि हवा पाओ। 
बांजि खेति में बगीच बनाओ,  
     देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
आरू, चुवारु, खुमानी, नासपाती लगाओ, 
    बितण, अकेसिया तूणी बांस लै उगाओ, 
है सकूं देवदार, रंसू ळ मंगाओ, 
     देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
बौड़, सीसम, गींठी, सानण लगाओ, 
     छोड़ौ पुराणि कहावत पीपल लै रोपाओ।  
कनार, साल, सागौनक भाबर बनाओ,  
     देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
नीम, सहतूत, अमलतास, मरांडी और टीक उगाओ, 
    स्यौव लै भल हौल जामुन जरूर लगाओ। 
धरतिकि पकड़ लै मजबूत बनाओ, 
    देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
सर्वाधिकार@सुरक्षित

सोमवार, 3 जून 2024

पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस से मकान में।  
9 से 6 की ड्यूटी, और मानसिक थकान में।।  

**🖋️२**  
मन गांव में ही रह गया, शरीर शहर का वासी है।  
ताज़ा बस, ख़बर यहाँ, तासीर बासी_बासी है।।  

**🖋️३**  
दो जन दोनों कमाने वाले, बच्चों को कौन संभाले।  
टारगेट के पीछे भाग रहे हैं, तन को कर, बीमा के हवाले।।  

**🖋️४**  
यारों का न संग रहा, न न्योता न व्यवहार।  
खुद के घर जाते हैं बन, जैसे रिश्तेदार।।  

**🖋️५**  
कर बंटवारा एकड़ बेचा, वर्ग फीट के दरकार में।  
बिछड़े, पिछड़ा कह के, खो गए अगड़ों के कतार में।।  

**🖋️६**  
शुरुवाती; मज़ा बहुत है, एकाकी; स्वप्न; संसार में।  
मुसीबत हमेशा हारा है, संगठिक संयुक्त परिवार में।।

**🖋️७**  
मात, पिता न आने को राजी, गांव में नौकरी है कहां जी।
जिनके  पास  दोनों  है बंधुओं, उनका जीवन है शान में 

पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस से मकान में।  
9 से 6 की ड्यूटी, और मानसिक थकान में।।  

~विपिन शर्मा 🖋️🖋️

शनिवार, 1 जून 2024

२जून

द्वी जून क रव्टा लिजी
खून पसीन बगा रौ
चा रौ सुकून दिन भरि थकान बटिक

घर बटी न्है जारि
द्वी रव्टा कमूहूनी
बैहाल हैरों मनुज
हालातों क सामणि

द्वी जून क रव्ट
दिनोंदिन चिंता खा रै
बढी हुई महंगाई आंख दैखुरै

रव्ट कपड़ मकान
चंद सांसों क डोर
जिंदगी भागदौड़
ना कई चैन ना कई ठौर

दुनि गोल मटोल
कई म्वाट कई पतल
घ्यू लगाई सबूकें चै
यू रव्ट क्यें क्यें खैल दिखै

क्वें परदेश जारौं
नौकरी हजूरी लगारौं
आंधी तूफां सर्दी सह बैर
द्वी रव्ट कमारौं

रव्ट मतलब मिहनत
स्वाभिमान ल भरपूर
प्रेम पूर्वक रव्ट कमाऔ
रौं जग मे मशहूर!

द्वी जून क
रव्टा लिजी
कतूक पापड़ बैलन पडनी
हम सब जाणनूं
आपूं चाहै सैठ छा या गरीब
द्वी जून क रव्टा लिजी प्रयत्न करण पडनी

मजदूरों कें आज द्वी रव्टा क फिक्र छ
य चक्कर मे रोज मजदूरी करू
खून पसीड़ एक करु
तब जै बैर द्वी रव्टाक प्रबंध हूछ
@देव सती

बुधवार, 22 मई 2024

अरे ओ प्रवासी श्रीमान विनोद पंत जी की रचना

अरे ओ प्रवासी .......!

क्यों गांव के गधेरे गाड ढूढ रहा है 
चौमास मे फैले हौल  की बाड ढूढ रहा है
अरे ओ प्रवासी .... 
ऐसे तो और नराई लगेगी भुला 
शहर आकर क्यों पहाड ढूढ रहा है ?

क्यो अरबी मे गडेरी का स्वाद खोज रहा है 
बासमती मे जमाई का भात खोज रहा है 
फ्रिज मे चाह रहा है नौले सा पानी 
कूलर  में ढूढ रहा है हवा बांजाणी 
नाली के  पानी मे  क्यो कोसी सरयू पनार  ढूंढ रहा है 
अरे ओ प्रवासी ..
ऐसे तो और नराई लगेगी भुला 
शहर आकर  क्यों पहाड ढूंढ रहा है ?

लोधिया से अल्मोडे के बाल ले लेगा 
बागेश्वर,रानीखेत  से भट गहत की दाल भी ले लेगा 
हल्द्वानी से मिश्री के कुंजे भी रख लेता होगा 
भवाली के  आडू काफल भी चख लेता होगा 
मिक्सी मे पीसकर क्यो सिल पिसे डुबके का स्वाद ढूढ रहा है 
अरे ओ प्रवासी ....
ऐसे तो और नराई लगेगी भुला ,
शहर आकर  क्यों पहाड ढूंढ  रहा है ?

अपने किचन गार्डन में क्या रामबांस उगा पाऐगा 
टेरेस मे क्या बुरांस खिला पाऐगा 
जो पुदीना गांव से लाया था वो भी देसी हो जाऐगा 
गमले मे गेठी का पेड परदेशी हो जाऐगा 
लिप्टिस के पेड तले क्यों बांजकी छांव ढूंढ  रहा है ?
अरे ओ प्रवासी ....
ऐसे तो और नराई लगेगी भुला , 
शहर आकर अब क्यों पहाड ढूंढ  रहा है  ?

लोग यहां भी हैं पर जेठबाज्यू जेडजा नही हैं 
पडोसी हैं पर पहाड की आमा ईजा नही है 
न तेरे पास न तेरे लिए किसी को टैम होगा 
ना धनदा ,चनदा या परुली काखी सा प्रेम होगा 
 भागते लोगो मे क्यो चैंतार में बैठे  लोग ढूढ रहा है ? 
अरे ओ प्रवासी .....
ऐसे तो और नराई लगेगी भुला ,
शहर आकर क्यों पहाड ढूंढ रहा है ?
#विनोद_पन्त_खन्तोली