💐पहाडों का अमंगल💐
अगर जलेंगे यों ही सारेजंगल
तो होगा ही पहाड़ों का अमंगल ।
सूखेंगे गाड़-गधेरे सूखेंगे नौले धारे
महीना आषाढ़ गर्मी तीस के पार
बारिश न हुए हो जाता है साल
पसीने की तड़-तड़ पर छिड़ा है दंगल ।
अगर जलेंगे यों ही सारे जंगल
तो होगा ही पहाड़ों का अमंगल ।।
जंगल जलें तो जलें हमारा क्या !
ऐसी जहरीली सोच पली है
बद से बद्तर होंगे हालात
ये तो बस खतरे की घंटी है ।
छोड़ो खुदगर्जी समझो जिम्मेदारी
वर्ना न जंगल रहेगा न रहेगा जल
ज़मीन भी सारी हो जाएगी बंजर
हर गांव का होगा इतिहास का बंडल
हर दरवाजे पर लगा होगा संगल ।
अगर जलेंगे यों ही जंगल
तो होगा ही पहाड़ों का अमंगल।।
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