पित्रपक्ष शुरू होते ही एक बकवास करने की होड़ लग जाती है कि __________
अपने अपने तरीके से कुछ अनभिज्ञ पोस्ट ड़ालना चालू कर देते हैं कि_____
माँ बाप को जीते जी सारे सुख देना ही वास्तविक श्राद्ध है...!!
कौवों को खिलाना ढकोसला है। 【उन्हें शायद ये बिल्कुल भी नही पता होगा की पित्रपक्ष में कौवों को खिलाने से पित्र दोष समाप्त होते हैं।】
क्या जानते हैं ऐसे लोग श्राद्ध के बारे में❓
जो लोग अधूरा ज्ञान रखकर अनादिकाल से चली आ रही परम्परा का मजाक उड़ाना चालू किया है उस पर प्रश्नवाचक❓चिन्ह लगाकर नयी पीढ़ी को भृमित कर रहे कि ये खोखला आडम्बर है⛔ ये अनपढों की निशानी है।
उनसे ये कहना चाहूंगा कि श्राद्ध अपनी जगह है और जीते जी माँ बाप का सम्मान और सुखी रखना अपनी जगह।
जीते जी मा बाप को उनके अंतिम समय तक आप क्यो न श्रवण कुमार बनकर सेवा करे पर इसका ये कतई पर्याय नही की मृत्यु पश्चात उनको तर्पण की जरूरत नही होगी ,,,,तर्पण की प्रक्रिया तो करनी ही पड़ेगी।
क्योंकि श्राद्ध का वास्तविक अर्थ होता है ____
परिवार के वो सदस्य जो गुजर चुके हैं° वो दादी दादा हों या चाची चाचा हो अन्य कोई पूर्वज हों या माँ बाप ही क्यो न हो उन्हें पितरों में शामिल करने की एक प्रक्रिया होती है श्राद्ध।।
और ये प्रथा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के समय से चली आ रही
इस पूजा का ये कतई मतलब नही की आपने जीते जी अपने माता पिता का जीवन कैसे गुजारा ||
भले ही आपने उन्हें फ़ूलो की सेज या पलकों पर क्यो न बिठा के रखा हो फर भी उनकी मृत्यु पश्चात उनका तर्पण तो करना ही पड़ेगा।
और ये वही पितर होते हैं जिन्हें जब घर मे किसी का विवाह होता है तो सबसे पहले इन्हीं का आवाहन किया जाता है ।
और यह हमारे सनातन धर्म की परंपरा है
इसलिए विनम्र निवेदन है कि अधूरा ज्ञान रखकर कोई इस पर ज्ञान न पेले🙏
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