नदी से - पानी नहीं, रेत चाहिए।
पहाड़ से - औषधि नहीं, पत्थर चाहिए।
पेड़ से - छाया नहीं, लकड़ी चाहिए।
खेत से - अन्न नहीं, नकद फसल चाहिए।
उलीच ली रेत, खोद लिए पत्थर,
काट लिए पेड़, तोड़ दी मेड़़।
रेत से पक्की सड़क , पत्थर से मकान बनाकर लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे सजाकर
अब भटक रहे हैं।
सूखे कुओं में झाँकते,
रीती नदियाँ ताकते,
झाड़ियां खोजते लू के थपेड़ों में,
बिना छाया के ही हो जाती सुबह से शाम।
और गली-गली ढूंढ़ रहे हैं आक्सीजन।
फिर भी सब बर्तन खाली l सोने के अंडे के लालच में, मानव ने मुर्गी मार डाली।
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