बुधवार, 25 सितंबर 2024

श्रीमान सुरेद्र रावत असोज कविता

रचनाकार: सुरेंद्र रावत

असोज के महीने में, काम करते करते।
अपनी बेटी को याद कर रही है एक मां।
अब जिसकी शादी हो गयी है। 
जरा गौर किजियेगा।

छापड़ी में लोहटू र्वट, हाथों में केतली।
मूं गढेरिक साग बणै बै, ल्या धैं मेरी चेली।। 
गिलास भरि बै छां, हां गिलास भरि बै छां। 
मनुवक र्वटम धरि बै दिदे, तीलै की चटणी।।

पाणी पिणक टैम निछ, लैगे चाहा'क अमल।
धारों ठन्डो पाणी ल्यै बे, को मकणी द्यल।। 
गिलास भरि बै चा, हां गिलास भरि बै चा।
मिसरी क कटक दशैं , दिजा तु मकणी।।

छापड़ी में लोहटू र्वट, हाथों में केतली। 
मूं गढेरिक साग बणै बै, ल्या धैं मेरी चेली।।
असोज मैहण लै रौ, धपरी को घाम।
मेरी पोथा तेरि आणै, मकैं भौतै फाम।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें