मन को थोड़ा हरषाओ
ऊसर माटी को कुछ तो सरसाओ।
खेतों में सूखती खड़ी फसलें
कब से पानी को तरस रहीं,
शेर का डाँडा और अयारपाटा
पर्वतश्रेणियों के बीच पसरी
कृषकाया नैनी झील अपलक
तुम्हें बस तुम्हें निहार रही!
हाल में तुम आए थे,
उम्मीद बनकर नभ पर छाए थे,
लेकिन तुम गरजकर, आँखें दिखाकर
डराकर रफ़ूचक्कर हो गए!
क्यों भूल गए कि तुम्हारा काम
डराना नहीं हरषाना है
खड़ी फसलों को महकाना है,
डराने के लिए तो प्रशासन ही काफ़ी है!
हे मेघ, इतनी खुशामद तो न खाओ,
लिहाज करो, अब तो बरस जाओ!
इंटरनेट के हाईटेक युग में
भला कोई इतनी खुशामद खाता है,
शहर की किशोरियाँ कह रहीं
अगर खाना ही है तो गोलगप्पे खाओ!
अगर मन न भरे
तो नूडल्स, पास्ता खाओ, पिज्जा खाओ!
लेकिन तुम सोचो पानी, बरफ़ गिराने का
अपना मौलिक काम छोड़कर
गोलगप्पे, पास्ता, पिज्जा खाते हुए
तुम कैसे लगोगे? एकदम बजरबट्टू!
और
दूर किसी आमा की तुमपर निगाह पड़ेगी
तो जानते हो वो क्या कहेगी?
"त्यर ख्वर में डाम
मणि चाओ धें ओ इजा,
कस जमाण ऐगो कि
बादोव खाँण लागरे
नूडल्स, पास्ता, पिज्जा!!"
इसलिए मेघ अब तो सम्हल जाओ
समय रहते कुछ तो बरस जाओ!
धनेश, नैनीताल डेस्क, फरवरी 2,2023
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