रविवार, 19 फ़रवरी 2023

राजेन्द्र सिंह भण्डारी जी की कलम से

आजकलाक ब्वारी (राजेंद्र सिंह भंडारी) 

तुम छा परदेशी तुमकें बेटा खबर नि छू
आजकल ब्वारियों कें सासु डर नि छू

सासु कें झुकण पड़ल बवारिक खुट में
य बात में च्यला के अगर मगर नि छू

मुखड़ उज्याव पट क्रीम पौडर लगै भेर
मन आज भोव ब्वॉरियोंक ग्वर नि छू

टिकुलि बिंदुली साड़ी बिलौज मिजात
बांज घा ल्यौणी ब्वॉरियोंक ख्वर नि छू

कठिन हगे पोथा जिंदगी उत्तराखंड में
य दिल्ली बंबई कलकता शहर नि छू

पुर उतरखंडक इजा यसै छू हाल के हों
सुख शांति वाल य टैम में एक घर नि छू

दै दूध गाई छां देखनू हम आब स्वैणों में
धिनाई नाम पर घरों में एक थ्वर नि छू

दरप दाहा में ख़तम छू आजकल पहाड़
गों इलाक छोड़ इजा आपण स्वर नि छू

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

प्रीती जोशी जी की कलम से

सुनो ,
फलाने कल तुम ख्वाबों में आये थे 
मिलने आये थे ? 
या
मेरे कुछ ख्वाब साथ में जीने आये थे? 
या 
तुम्हें भी मेरी तरह हफ़्ते में एक दफ़ा
दूर बचपन को देख मुस्कुराने की आदत लग गयी है? 
देखो अगर ऐसा है तो बेझिझक बता दो
कुछ छुपाओ मत
क्योंकि आदतें छुपाना नामुमकिन है
और
देर सबेर तुम्हारी ये आदत भी सामने आ ही जायेगी
फिर क्या करोगे? 
सफाई दोगे! 
इश्क़ से मुकर जाओगे ? 
या कह दोगे 
की हमारा यूँ ख्वाबों में मिलना
महज मेरी आँखों का ख्वाब है 
और साजिशन मुलाकात पर उठे सवालों
का ये एक बेतुका जवाब है 
या झुठला दोगे दादी की वो बात
कि 
जब कोई हमे सपने में दिखता है तो
मतलब वो हमें बहुत याद कर रहा है 
मिलना चाह रहा है 
कुछ बातें हैं उसके मन में
जो वो कहना चाह रहा तो है 
तो अगर 
याद है तुम्हें तुम्हारा दादी की बातों को
सच का आइना कहना
तो इंतज़ार रहेगा
मुझे, 
वहीं जहाँ पेड़ों ने पहना है
यादों का गहना | 
@ प्रीती जोशी.

गणेश वंदना

गणेश ज्यू तुमर रूप छ निराला,

कोटि सूर्यक छ तेमे उज्यावा

सिंदुरलाल चढ़ाय अपण मनक

सुन्दरलाल विराजेछा 

सुतगौरी-शिवका

हेगणपति तुम सबन के दुःख दूर करिया

संकट में हम सबोंक रक्षा करिया

ग्ञानी दानी तुछै सिद्धिदाता,   

सबुक लिजी तु प्यार बरसुछा

हाथ में लिई लड्डू प्रभुगजानन,

सब भक्तोंके मिलो त्यर दर्शन

हर गुण बे पूर्ण छा हे शिवगौरीनंदन,

तुकै भायो कुमकुम केसर चन्दन

मोतियोंक माव चमकि त्यर गव पर, 

खुशि लहरए सबुके द्वार पर

जय श्री गजराज विद्यासुखदाता,   

गणपति बप्पा तु छै विघ्नहरता

त्यर दर्शनल  मिलजै जीवन में सफलता,

झुकाबे सिर त्यर खुटामें मिले प्रसन्नता!

देव सती

गौ घर बार

गौ घर बार छोड़ शहरो हू गाय

करहू अपण सपन सकार करन

 भीड़-भाडेको मे ऐबे बन बैठी छ लाचार!

 शहरो में जन-जन गली गली भटकनी

 सपन टूट मन भटक जा

 शहर-शहर नि पा सकू मंजिल

 सदचार खो चुक गो

हैं भीड़-भाड़ में ऐबे बन बैठी छो
 लाचार

निज स्वार्थपूर्ति में दिखियो सब

अब कौ करो भल

 उपकार लिजी तरसरि शहरो में

 आपणपन का मिलो या का

 अपण ज प्यार का मिलू या शहरो मै

अरमानोंकी फाँचि लाद फिररो शहर मा

भटक रि बेरोजगार खो चुक गी उ सपण

 भीड़-भाड़ में ऐबै बन बैठि छ लाचार!

कविता देव सती 
पपनैपुरी

शनिवार, 11 फ़रवरी 2023

श्रीमान तारादत्त तिवारी जी की कविता

दगडियो पेश छ कविता 
    फिकर 
मनखिया तु 
  आजेकि सोच 
भोवेकि फिकर निकर 
दौ दयाप्तनौक नाम ले 
यैकि उव्वीकी जिगर निकर 
मणि आपण 
भाटन मै मसक दे 
    दुहरेकि कमै मै 
          नजर नि धर 
सजेकि जाग 
      ठिकांण बणा 
तौ त्यार हुं 
    आपणि मै माटि 
          कैं लै याद कर 
त्यौर गुजार 
    लैक ऐ जाल 
तु दिन रात 
  ततुक तौयाट निकर 
वौल दिन गै 
   पौल दिन गै 
नसि जलि त्येरि लै उमर 
मनखिया तु 
    आजेकि सोच 
भोवेकि फिकर निकर 
              फिकर निकर ।।

रविवार, 5 फ़रवरी 2023

थैचू

आवश्यकता आविष्कारैकि जननी हूं . जब जब जरूरत पडी लोगबाग आपुण जरूरता क हिसाबैलि आविष्कार करि दिनन . 
तसै एक आविष्कार छ थेच्चू .. थेच्चू हमर पहाडक आविष्कार छ . हमार यां कतू प्रकाराक थेच्चू बणनन . आलू क थेच्चू . मुलक थेच्चू . मूलक थेच्चुवक प्रयोग सलाद में . झोली में और साग बणूण में हूं . एक थेच्चू किलमौडाक फूल नक ले बणौं . जछैं सांनण ले कूनी . किरमौडाक फूल और पांलगाक बलाड कूटि बेर .. मतलब थेचि बेर सांनण बणाई जां . 
कबै कबै मी सोचूं कि यो थेचुवक आविषिकार कसी भो हुन्योल कैलि करि हुन्योल . भली कैबेर काटि बेर जै खान् धें . भला भाल टुकुड बणून . मतलब तरीकैलि खान .. यो कि बात भै सिल लोड में थेचिबेर खाण   
तब मैलि सोचो कि हमर पहाड में स्यैणी बहुत कर्मठ हुनी . खेति पाति क सब काम इनारै कन्ध न पर हूंछी . रत्ति ब्याण उठि बेर पाणि लूण . बुड बाडि नानतिनाक लिजी पाणि ततूण . द्याप्त पुजण नानतिन बट्यूण .ठुलतिन बट्यूण ईसकूल लगूण . लाकाड लूण . घा पात निराई गुडाई भितर झाड पात झाडन .. मतलब .. सब कामनक ठ्याक स्यैणिनक भै . बहुत ज्यादा काम और समयैकि कमी . 
तब क्वे स्यैणि लि फटाफट क चक्कर में आल को काटण लागि रूं ढील हुण रै कैबेर फटाफट आल थेचि बेर पकै दे हुन्याल .. बस परिवार वालन सवाद लाग हुन्योल .. तब बटी थेच्चू प्रचलन में आ हुन्योल ... 
हां यो बात ले छ कि ईज कबै कबै उपद्रैबि करण में हमन छै कूंछी कि - रनकारा मारि मारि बेर थेच्चू बणै द्यूल .. 
पर के ले कओ हो .. थेचुवक एत अलगै सवाद छ . सिल में जमैं सब मस्याल हल्द पिसी रूंछी उमें थेचि मुलक सैलेड .. मतलब सलाद .. आहा ..... आब शहरन में सिल लोड क जाग में मिक्सी ऐगे .. उमें थेच्चू बणाओ ले कसिके . ल्हि दिबेर चकई बेलण रै गोय थेच्चू बणूणी यन्त्र .. चकई में मुल थेचण बैठ्यू तो चोट मारते ही मुल उछीटी बेर क्वाडन जानै रौ .. मैलि फिर हाथैलि मुल पकडौ और बेलण मारौ जोरैलि ....... ओईज्या मेरी ...... आंगूं जै थेची पड गो आगहान ......... मतलब मैर बिती एक नई आविष्कार हैगो ...... आगुलक थैच्चू ....आयोडैक्स लगैबेर ले ठन्ड नै पडमैई .. आब नंग उचेडीछै जि बजीं .....

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023

मेघ अब तो बरस जाओ, 
मन को थोड़ा हरषाओ
ऊसर माटी को कुछ तो सरसाओ। 
खेतों में सूखती खड़ी फसलें
कब से पानी को तरस रहीं, 
शेर का डाँडा और अयारपाटा
पर्वतश्रेणियों के बीच पसरी
कृषकाया नैनी झील अपलक
तुम्हें बस तुम्हें निहार रही!

हाल में तुम आए थे, 
उम्मीद बनकर नभ पर छाए थे,
लेकिन तुम गरजकर, आँखें दिखाकर
डराकर रफ़ूचक्कर हो गए!
क्यों भूल गए कि तुम्हारा काम 
डराना नहीं हरषाना है 
खड़ी फसलों को महकाना है, 
डराने के लिए तो प्रशासन ही काफ़ी है!

हे मेघ, इतनी खुशामद तो न खाओ, 
लिहाज करो, अब तो बरस जाओ!
इंटरनेट के हाईटेक युग में 
भला कोई इतनी खुशामद खाता है,
 शहर की किशोरियाँ कह रहीं 
अगर खाना ही है तो गोलगप्पे खाओ! 
अगर मन न भरे 
तो नूडल्स, पास्ता खाओ, पिज्जा खाओ!

लेकिन तुम सोचो पानी, बरफ़ गिराने का 
अपना मौलिक काम छोड़कर 
गोलगप्पे, पास्ता, पिज्जा खाते हुए 
तुम कैसे लगोगे? एकदम बजरबट्टू!

और 
दूर किसी आमा की तुमपर निगाह पड़ेगी 
तो जानते हो वो क्या कहेगी? 
"त्यर ख्वर में डाम 
मणि चाओ धें ओ इजा, 
कस जमाण ऐगो कि
बादोव खाँण लागरे 
नूडल्स, पास्ता, पिज्जा!!" 

इसलिए मेघ अब तो सम्हल जाओ
समय रहते कुछ तो बरस जाओ! 

धनेश, नैनीताल डेस्क, फरवरी 2,2023

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

आहा रे मेरो उत्तराखण्ड

जै उत्तराखण्ड  (गीत) 
************
मानसखण्ड केदारखण्ड
के भली भूमि जै उत्तराखण्ड
देवभूमि पुराणों की धरा-----
ऊंच -निच धरती हिमाली हिमाला.

गंगा यमुना सरयू पावन
पिण्डर गोरी काली मनभावन
पंचप्रयाग यां बदरी केदारा
गंगोत्री यमुनोत्री हरि हरिद्वारा
        तोप् -तोप् अमृत कण -कण में शिवाला
        उंच -निच धरती............................ 

साल शीशम सालो बांज देवदार 
सेमल तुन खड़की बुराशों बहार
धानों छमाक अहा गेहूँ की बाला
मसूर भट राजमा गहतों की दाला
          मडुवा कूंण कान्दो भटिया खा जाला
          उंच -निच धरती........................... 

उत्तरकाशी औली श्रीनगर टिहरी
दून की घाटी देखो छबीली मसूरी
नैनीताल कौसानी ओहो मुनस्यारी
पाताल भुवनेश्वर जागेश्वरा दुनगिरी
            रंगीलो यो पहाड़ रिवाज रंगीला
            उंच -निच धरती.................... 

      दीवान सिंह कठायत, प्रधानाध्यापक, 
       राआप्रावि उडियारी, बेरीनाग (पिथौरागढ) उत्तराखण्ड.