रंग बिरंगी मन्क जडि
रक्छा सज गे छोटी बडी़
समेटि धाग मे स्नेह अपार
आ भै बैणियोक त्यार
अटूट बंधन गैर प्यार
क्वै भै बैणी छै घरों मे
क्वै लिखै पंक्ति चार
जो दाद भूली छ सात समुन्दर पार
सबुकै रक्छा बंधनैक शुभकामना छू यार
कविता - देवेन्द्र सती
पपनैपुरी
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