बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

श्रीमान तारादत तिवाडी़ ज्यू क रचना

आहा कास छी हम
   आब कास है गयूं
भरि पुरी परवार
   फिर लै एकलै जास रै गयूं
पास पडौस
  आब 
    आब पराय जास लागनयीं
शकर ढेपु वाल
    एकल कट्टू है गयीं
बुलांण लाग रयीं
  बात
   बात उनार स्यूड जास 
     बुडंन लाग रयीं
धौड़ दगौड़
   पर निरै भरौस
आपण पीड़
    सबनंहै ठुलि
दुहरेकि पीडेकि नि
    लागनै मणी लै कसक
डबल /ढेपु
 डबल आब रिस्त है ठुल हैगो
देखंन
 देखंने मनखी कतुक बदयी
   भौत बदयी गो //
तारा दत्त तिवारी
हरत्वाव नैनताव बटिक

शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

मंजुला पाण्डेय जी की रचना

सिटोल चारि
_२०.०२.२०२४ ________________
रोज-रोज सितड़ बखत
मैं यस सोचनू छूं
कि रत्ती-रत्ती  उठजूल,
पर सोच!सोचन तलक लै
सीमित रेईं जां।

सूर्ज दैप्त ले आंजी-कल
बादल पछिल घोप्टिल जां।।
अन्यार समझ बेर,मै ले
दुवार बार कांम्ला भितेर लुकि जां।।

आजकलां जाड़ जस दिन
हांड़ मासन को हाड़नी,
चांकल-बाकल फुदकीने मैंस के लै
आलसी बनै डालनी।।

फिर मैं म्यं तो म्यों भयूं
रोज राति मां सितड़ं बखत
 आपुण दगड़ झुट्ट वाद कर बैर
रत्ती मा बैर तलक बिस्तरम्
सितने रूंनू।।

फिर आपि-आप सिटोल जस
बोलते रुनूं,
भोल बटि !बैर तलक झन सितुल 
स्याव जस बुद्धि-फुर्ति जगै बैर.
अपुण धर्मक पालन करुल।।।

म्यर मन ले रोज-रोज,
सिटोले चारि बदली जां।।
झन बनिये रे मनखि तुम सिटोल चारि,
नतर आलस्यक है जालि बिमारी।।

मंजुला पांडेय
पिथौरगढ़ बटि

श्रीमान महेश रौतेला जी की कविता

यादगार छा तुम:

यादगार छा तुम, गाड़ जस नैं
पहाड़ जस नैं, अगास जस नैं,
बादोव जस नैं
बस, केवल प्यार जस।
यादगार छैं शब्द, कंकणों जास नैं
पाथरु जास नैं,कनां जस नैं
फूलों जस नैं
बस, केवल प्यार जस।
यादगार छु दगड़,घर जस नां
बटक जस नां, खेलक जस नां
समय जस नां, कामक जस नां,
बस, केवल प्यार जस।
यादगार छा तुम, लड़ैं जस नैं
संधि जस नैं, समझौत जस नैं
वीरक जस नैं, सच जस नैं
बस, केवल प्यार जस।

( मेरि हिन्दी कविता अनुवाद छु य)

यादगार हो तुम:

यादगार हो तुम,नदी की तरह नहीं,
पहाड़ की तरह नहीं,आसमान की तरह नहीं,
बादल की तरह नहीं,
बस, स्नेह की तरह ।
यादगार हैं शब्द,कंकड़ों तरह नहीं,
पत्थरों तरह नहीं,काँटों की तरह नहीं,
फूलों की तरह नहीं,
बस, प्यार की तरह ।
यादगार है साथ,घर की तरह नहीं,
राह की तरह नहीं,खेल की तरह नहीं,
समय की तरह नहीं,काम की तरह नहीं,
बस, प्रेम की तरह ।
यादगार हो तुम,युद्ध की तरह नहीं,
संधियों की तरह नहीं,समझौतों की तरह नहीं,
योद्धा की तरह नहीं,सत्य की तरह नहीं,
बस, प्यार की तरह ।
       *****
** महेश रौतेला
२०१३

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024

अमॉ के समर्पित

प्रणाम सबों कै

आज म्यर अमॉ क पुण्यतिथि छ।
अमॉ क याद में एक श्रद्धान्जली स्वरुप एक कविता उनुकें समर्पित करनूँ----

"अमाँ" अमाँ त्यरि याद भौतें ए ।

य झुट ना सॉचि छु कई बार रुलैं।

आई ले त्यरी सुरत आखों मे ऐ जे।

ओ अमॉ त्यरि भोते याद ए।

हर लम्ह मिकें भलि भा याद छु।

त्यर लाड़ दुलार क हर लम्हक स्वाद छु।

तुम किलैं गछा हमूकें छोड बैर।

अमॉ त्यर नी हूणक मलाल छु।

पर मिकें पत्त छु यई कई छा तुम ।

हमारे दिल में रुछा।

यादो में मिलछा।

और आपुण आशीष दिछा अमॉ।

त्वली हम सबुकें संभालो
बचपन बै पालों।

कभै  लोरी ले सुनाई ।

त्यरि  डाट कभी रुलें छी।

तो ममता बहुत हँसें छी।

आज में नाराज नि छु।

जो कभै नि छी  उ आज छु।

अकल बतुणि क्वें न्हा।

त्यर दुलार याद आ।

होई में भाग्यसाली छु
जो त्यर प्रेम पा।

त्यर  लाड़ पा

तिहूँ वैद करनू।

त्यर सीख कै अपनूल।

संस्कार त्यर , सपन म्यार हो।

अमॉ त्यरि पुण्यतिथि पर ।
तुकैं सादर नमन् छु।।

अमॉ कै सादर समर्पित

कविता-- देवेन्द्र सती
पपनैपुरी (पाखुडा)

बुधवार, 21 फ़रवरी 2024

अहा रे दाज्यू कस बखत ऐंरो

आहा रे दाज्यू 
कैसिक बखत एरौ
सबुन खींची फोटो
फेसबुकम  डाल हैलो
कैक छू जन्म वार
कैक  बया हैरो
को लिगो काकड़ दिल्ली
कैन डुबुक भात खै हैलो
सब फेसबुकम डाल हैलो
आज पैरुवा दिल्ली बटी घर एरौ
अपेण अम्म कै फोन दिखाण़म लैरो
खूब खींची सेल्फी अम्म  दगड़
अपुण फेसबुक दगड़ियों कै 
पहाड़ी स्वैग बतुण लैरो
ननतीन बटी बुड़बाड़ी 
सबुन कै फोंनक चसक लैरो
का हुनी अब किस्स कहाणी
सबुक फेसबुक वटसप मा दिन काटन हैरो
इजक खांनी गाई रती ब्याव
ना पढ़नम लिखड़म मन लैरो
Pubg के हैगो दाज्यू
यो फोनम आग लागन हैरो 
दाज्यू कैसिक बखत ऐरौ...

Dsuyal
🙏🙏🙏

य पहाड़

*य पहाड़*

य म्यर जमीं य म्यर पहाड़ 
म्येरि रंगतों क शान छू.

य म्येरि जन्मभूमि य म्येरि कर्मभूमि य म्यर स्वाभिमान छू.

रंगिल कुमों छबिल गढ़वाल उत्तराखण्ड क मान छू
आस्था क चारों धाम या म्यर गढ़ कुमों शान छू.

य रंगिल पहाड़ धत्यूरिं आपणी माटी कें
सुणूहूं तरस गी य गध्यारों क छक्बकाट कें
बुलों री आपण आपणों कें जो छोड़ गी पहाड़ कें 
कर रो पहाड़ आपूणाक लौटनक इंतजार
दुनियक शहरों बै कतू भल छ य पहाड़.

सुकुन क दूहर नाम पहाड़ जडी़ बूटियों खजान पहाड़
अद्भूत दुनियक प्यार पहाड़ ऋषि मुनियोंक तपोभूमि पहाड़.

बिषम परिस्थितियों मे ले ठाड़ पहाड़
धैर्य संघर्ष साहस क शिक्षा द् ये य पहाड़.!!
@देव सती पहाडी़ बटोही

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2024

विलुप्त होती विवाह परम्परा

विलुप्त होती उत्तराखण्ड विवाह की परम्परा 
पहले उत्तराखण्ड विवाह में सब मिलकर बर्तन इकट्ठे करते थे क्योंकि बुजुर्गों ने एक एक पैसे इकट्ठा करके गांव में कमेटी बनाई थी जिसमें हर घर का सहयोग होता था हर महीने एक दिनांक को गांव के एक घर में कमेटी होनी जहाँ हर घर से एक मेंबर ने जाना कमेटी में सभी ने पैसे जमा करने जैसे जैसे पैसे इकट्ठे होते जाने विवाह के लिए बर्तन खरीदना शुरू कर दिए ऐसे करते करते गांव में विवाह के लिए जरूरत वाले पूरे बर्तन इकठे हो गए उनको इकठे रखने की समस्या आने ही नही दी बुजुर्गों ने उनका आसान सा रास्ता निकला दिया कि हर घर में एक एक बर्तन रखा जाएगा और उसकी देख भाल भी उस घर वालों की होगी जब गांव में विवाह होना कमेटी से पूरी लिस्ट लेकर घर घर से बर्तन इकठे  करने खुद ही साफ करने विवाह में पता ही नही चलना कब कौन सा काम कोन कर गिया ऐसा लगता था कि जैसे अपने घर का विवाह है खट्टी मीठी बातें होनी मौज मस्ती करते हुए सब विवाह को एन्जॉय करते जिस घर में विवाह होता उनको पता ही नही चलता था कि कोई कमी पेसी रह गई है विवाह में बर्तन सारे आपस में मिलकर हंसी मजाक में साफ कर देते थे जिसको बाद में खास पकवान बना कर मस्ती करनी लेकिन समय के बदलाव के साथ धीरे धीरे परम्परा बदलती गई आज बर्तन साफ करने के लिए कामा करना पड़ता है विवाह में घर घर बर्तन इकठे करने नही जाते है अब टेंट वालों से केटरींग ली जाती है भारी रकम देकर कच्चे चील के चलाफू से स्वागतम् द्वार बनाया जाता था तब टेंट की जरूरत नहीं होती थी कुदरत से सब कुछ मिल जाता था कच्चे चील के चलाफू बड़े अच्छे थे आज के महंगे टेंट से पत्तल में खाने का मजा ही अलग था तेलिया माहं दा सुबाद कने काले चने दा खट्टा चटपटा कन्ने आना फिर मीठा बत्त मिंजो थोड़ा ज्यादा आ जाने कि आस होना दोस्तों का शादी में दिल खोलकर काम करना सब रिश्तेदारों ने पूछना ऐह कुन है बड़ा काम कर रहा है बड़ा अच्छा लड़का है बारात आने पर चाय की चरोटी गर्म करनी फिर दुनु च बूंदी सेयियां डाल कर देनी अब तो महंगी चीज़ों में भी बूंदी का सूबाद नहीं आता है बड़े बड़े घड़े सुरा दे लगाए होने चाटकी होनी 
बुजुर्गों ने हमे बचत करनी ओर मिलजुल कर रह कर एक दूसरे के काम आने के लिए यह शिख दी आज भी बहुत से गांव में बुजुर्गों की बातों को जिंदा रखा हुआ है जो कि नई पीढ़ी के लिए एक अच्छा संदेश भी है उनको सीखने और एक होकर रहने के लिए क्योंकि आज हमें अपने बच्चों को बताना होगा कि कैसे हम विवाह में पैसे कम होने पर भी एक दूसरे की मदद करते थे और कर रहे है कितनी बचत बुजुर्गों दुबारा इस परम्परा से हमे दी गई है सोचना तो पड़ना है एक दिन .....