न्हैगे बसंत पंचमी, होइ लै न्हैगे,
न्हैगो फुलदेई क फूलों क त्यार!
ऐगे भेटोई आब् पुरि पू पकाल,
चेलि बेटि आलिन मैताक द्वार !!
गाड़ाभिड़ां पन हैरौ हरियो घा,
गोरु बाछ् खै बेर लागि रईं उगार !
ग्यौं जौं बालाड़ पौषण लै रईं ,
राड़ सरसों कि लै हैरै छ भरमार !!
बांजाक् डावां में पौव ऐ रौछ ,
बणूँ बणूँ में फुलि रईं बुरांश हजार !
सम्यो गुलबनफ्स खुशबू दीणईं,
आरु आल्पोखरै कि माया अपार !!
आम पौंय मेहव सब फुलि रईं ,
बनस्पतिनक् खुलि रौछ भन्डार !
सुरसुरू पौन चलण लागि रै छ,
ना कैं बर्ख न कैं छ कच्यार !!
गुणि बानर चाड़ पिटंग आश् में छैं,
पाकलि यो फसल होलि बहार !
नि रई कुड़ि बाड़ि बजीण गाड़ भिड़,
प्रकाशल् छोड़ि दी आपण घरद्वार !!
*प्रकाश पाण्डेय*
*कनखल (हरद्वार)*
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