सफर लम्ब हुं, जिंदगी छोटि हुं।
आ्ब इदू सफर में कदुक पहाड़ में रूं।
उ कुड़ि अब कसि आबाद हुं।
क्वे भै बैड़ी रूनी वा, क्वे का्क काकी रूनी वां।
कदुक निकल गी, कदुक निकलनेक त्यारी में बैठ री वां।
जिंदगिक शौक और जिंदगी बितुनेक में भौत अंतर आजा।
जिंदगी शौक तुमन क एक जाग् बैठ बेर न मिलन,
जिंदगी जाग् जाग् भटक बेर न बिताई जा्न।
आ्ब आपुण बिरादरी में ज नाम रखनू,
यां फिर आपुण नाम पहाङ में राखनू।
आ्ब के लै जान्हा त आपुण पहाड ढूणना,
क्वे सफर में ल छा जब जा्ण पहछान ढूणना।
आ्ब घर में इज हौश में ला्ग रै कि च्यल घर ऊणौ,
कदुक दिन में वापिस आ जालै नौकरी बै फोन ऊणै।
आ्ब का्क ज रूनू, ये बात भौतै परेशान करनै,
मैंकैं आपुण पहाड़क याद ऊणै।
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