आज पूछ बैठी मिहूं
क्यें छ य फूलदेई?
मैं बोल्यूं पुरखों क विरासत छ
पहाड़ी लोकपर्व- फूलदेई
मैं न्हैं थी हैरान, सुदूर प्रान्त क दगड़ी छी पर
उ क्यैं जाणूं - फूलदेई
पर, गहन छी पीड़
पहाड़ी नान ले नी जाणन फूलदेई
रंग-रँगील फूल चुनबैर
उमड़-घुमड़ गीत गाछि
सबूकें मंगलकामनाएँ
गुंजन-भरी स्वर
फूलदेई फूलदेई गुनगुनाछी
फूलदेई केवल रै ग्यों
वट्टसप्प -स्टेटस सिंबल
ज्यूनैं निगई गो - फूलदेई
आणि पीढ़ी अंजान हैरान,
परेशान छ शर्मिंदा छ- फूलदेई
उत्तराखण्ड संस्कृति के भूल बैर,
अब गुड मॉर्निंग छ फूलदेई
फूल हराय बचपन हराय,
बस मूबैलों मे जिन्द छ - फूलदेई
नान छना कतु भल छी, खेल-कूद-पढ़ाई दगड़ दगड़
खेलछी फूलदेई
आशीष, संस्कार,
मंदिरों क घंटी ज पवित्र- फूलदेई त्यार
हे सकों त ताज कर द् यों फूल म पानी छिटमारबैर
आई ले बासी न्हैं ती - फूलदेई
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