मंगलवार, 18 जून 2024

कयामत के आसार

शीर्षक:कयामत के आसार

तपने लगे सब घर-शहर,
कैसे  होगा गुजर-बसर।
अब बस है एक ही खबर,
लू का कहर,लू का कहर।

गया हो या दिल्ली नगर,
असह्य गर्मी आठो पहर।
जल नहीं ताल,नदी-नहर,
सूख रहे तरु कहर कहर।

तरु काट विकास कर गए,
जलस्रोत भर घर बन गए।
प्लास्टिक से धरा पट गई,
इसी से प्रकृति उलट गई।

खतरे   में  पानी -पहाड़,
उजड़ा जो जंगल व झाड़।
अभी भी चेत जा मानव,
कम हो विकास का दानव।

 सुनो प्रकृति की पुकार को,
 कयामत के आसार को।
नरेंद्र सिंह
19.06.2024

रविवार, 16 जून 2024

श्रीमान शंकर दत्त जोशी जी की रचना

💐पहाडों का अमंगल💐
अगर जलेंगे यों ही सारेजंगल 
तो होगा ही  पहाड़ों का अमंगल ।
सूखेंगे गाड़-गधेरे सूखेंगे नौले धारे 
महीना आषाढ़  गर्मी तीस के पार
बारिश न हुए हो जाता है साल
पसीने की तड़-तड़ पर छिड़ा है दंगल ।
अगर जलेंगे यों ही  सारे जंगल
तो होगा ही पहाड़ों का अमंगल ।।
जंगल जलें तो जलें हमारा क्या !
ऐसी जहरीली सोच पली है
बद से बद्तर होंगे हालात
ये तो बस खतरे की घंटी है ।
छोड़ो खुदगर्जी समझो जिम्मेदारी 
वर्ना न जंगल रहेगा न  रहेगा जल
ज़मीन भी सारी हो जाएगी बंजर 
हर गांव का होगा इतिहास का बंडल 
हर दरवाजे पर लगा होगा संगल ।
अगर जलेंगे यों ही जंगल 
तो होगा ही पहाड़ों का अमंगल।।

शनिवार, 15 जून 2024

श्रीमान दीवान सिंह कठायत जी की रचना

ओ बाबा नीम करौली तुमि दैणा हैई जाया। 
दैणा हयी जाया स्वामी वरदैणा हैई जाया।। 

हनुमंत रूप तूमी राम दुलारा
राम नाम जप सदा तुमन को प्यारा
      हे परमहंस प्रभु पार लगा दीया
      दैणा हयी जाया स्वामी वरदैणा हैई जाया। 
तुमारा दरवारा सब एक समान
दीन गरीब होवे या हो धनवान
       हे दयालु महाराज ममता फैला दीया
       दैणा हयी जाया स्वामी वरदैणा हैई जाया। 
कैंची धाम तुमन को छ्यो अति प्यारो
सोमवारी जी की यज्ञ थली पहाड़ी न्यारो
        दीवाना सेवक तुमरो दिव्य बणा दीया
        दैणा हयी जाया स्वामी वरदैणा हैई जाया। 

                दीवान सिंह कठायत प्रधानाध्यापक, राआप्रावि उडियारी ,बेरीनाग।

शुक्रवार, 14 जून 2024

प्रसिद्ध व्यंगकार श्रीमान राजीव पाण्डे जी की रचना कैची धाम वाले बाबाजी पर

जय जय  नीम करौली बाबा, 
दु:ख  पीडा़ सब हर लो बाबा, 
जो भी कैची धाम आये, 
उसके सारे कष्ट मिट जाये, 
जय जय नीम करौली बाबा, 
शिप्रा के तट पर आकर,  
लोग करें गुणगान हो बाबा, 
जय जय नीम करौली बाबा, 
जय जय नीम करौली बाबा, 
आप  कौशल्या  के सुत  हो बाबा, 
बिगड़ी बनादो सबकी बाबा, 
जय जय नीम करौली बाबा, 
चाहे वृदांवन हो, चाहे हो लखनऊ , 
चाहे हनुमान गढी हो, या हो भुमियाधार  बाबा, 
जो भी आता द्वार तिहारे, 
सुख समृद्धि है वो पाता, 
जय जय नीम करौली बाबा, 
जय जय नीम करौली बाबा,
#खीमदा
एक छोटी रचना बाबाजी को समर्पित 🙏🏻🙏🏻🌹🌹

सोमवार, 10 जून 2024

नदी से  -  पानी नहीं,  रेत चाहिए।
पहाड़ से - औषधि नहीं, पत्थर चाहिए।
पेड़ से  - छाया नहीं, लकड़ी चाहिए।
खेत से - अन्न नहीं, नकद फसल चाहिए।

उलीच ली रेत, खोद लिए पत्थर,
काट लिए पेड़, तोड़ दी मेड़़।

रेत से पक्की सड़क , पत्थर से मकान बनाकर लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे सजाकर

अब भटक रहे हैं।

सूखे कुओं में झाँकते, 
रीती नदियाँ ताकते,
झाड़ियां खोजते लू के थपेड़ों में,
बिना छाया के ही हो जाती सुबह से शाम।
और गली-गली ढूंढ़ रहे हैं आक्सीजन।

फिर भी सब बर्तन खाली l                                                           सोने के अंडे के लालच में,  मानव ने मुर्गी मार डाली।

बुधवार, 5 जून 2024

मेरी रचना

हाव चै सबूकें शुद्ध
पेड़ नै क्वै लगू रई
अनजान मे सब रोगों के 
दगाड़ आपू बलू रई

हरियाली फैलै बे ओल 
अब हम सबूकें स्वस्थ बनूल
संदेश सब जाग फैलोल
आपन पर्यावरण बचूल

जैकै कूनी पृथ्वीक आवरण 
उ छ हमर पर्यावरण
प्रदूषण बन गो पर्यावरण क
चिंता क कारण

य प्रदूषण यसि बढें रो 
जैक न्हैति क्वै माप
दैखों कसी माठू माठ
बनै रो अभिशाप

हरियाली खत्म ह्वैगै
धधकैरै सूरजैक ज्वाला
दिनोंदिन बढणि प्रदूषण
औजोन परत कै बनू रो निवाला

प्रकृतिक रक्षा करो
प्रदूषण रोक बैर
वृक्षारोपण करबैर
प्रदूषण पर करो वार
प्रकृतिक करो सम्मान
पर्यावरण क स्वच्छताक ले धरिया ध्यान

यैक रक्षा हैतु तुम चलावों
प्रदूषण मुक्ति अभियान

आऔ य संकल्प उठूल
आपण पर्यावरण बचूल

हर दिन एक नई वृक्ष लगूल 
आपन आपन जीवन बचूल


बानों बान य धरा क ऑचव
जैक नील अगास
पहाडों जस उच कपाव
वि पर सूर्ज चन्द्रमा जस बिंदियूक ताज
गध्यार छीण जास छल छल छलकनी यौवन
सतरंगी पेड पौधोंक स्यूनि सिंगार
खेत खलिहानों मे लहलहाणि मंद मंद मुस्कान
*हौई यई त छ य प्रकृतिक स्वच्छ स्वरुप*

देव सती पहाडी़ बटोही

श्रीमान पूरन चन्द्र काण्डपाल ज्यू रचना

खरी खरी - 1448 : पर्यावरण बचौ ( 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस )

सौवा जंगवोंल पाणी बुसै है
डाव बोट काटणियांल जंगव धुसै है। 

जंगव उजाड़ि हलीं आग लगुणियांल
जड़ि बुटि उजाड़ि हलीं जाड़ खोदणियांल। 

प्लास्टिकै थैलिक ढेर पहाड़ पुजिगो
बखत पर द्यो निहुणल पहाड़ सुकिगो। 

अनाधून ख्वैरान पहाड़क हैगो
पाणि जंगव जमीन कैं माफिया खैगो। 

चौमासाक द्योक स्वैर हरैगीं
बदोव एकबटीण है पैली खरैगीं। 

नौव धार सीरक पाणि उजड़िगो
हरैगे हरयाइ पर्यावरण बिगड़िगो। 

वैज्ञानिक संसारि गर्मी बतूंरीं
अटपट बिकास कैं रातदिन घतूंरीं। 

बचौ पर्यावरण तराण लगै दियो
जता लै द्यो हूं पाणि नि बगण दियो। 

कसिके लै द्वि चार डाव बोट लगौ
पनाणक पाणिल लै उम्मीद जगौ। 

थ्वाड़ कोशिश करो हिम्मत द्यखौ
पर्यावरण बचुणियां में नाम ल्यखौ। 

म्यर यूट्यूब चैनल लै देखिया । धन्यवाद। 

https://youtube.com/@poorankandpal5634

पूरन चन्द्र कांडपाल
05.06.2024

श्रीमान रमेश हितैषी ज्यू रचना

रमेश हितैषी 
कुमाउनी गढ़वाली हिंदी साहित्य सृजक

डाइ लगाओ

डाइ लगाओ जीवन बचाओ,  खुद बचौ औरों कें बचाओ। 
जीवन मे कुछ बचौ न बचौ,  पर हवा पाणि जरूर बचाओ। 
 
 
बिन डाइ बिन पाणि नि बचली ज्यान, 
    मथ मथै नि चहाओ आजि लै धरौ ध्यान।  
बांज, बुरांश कांफोव लगाओ,  
     देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
नाग धरती कु श्रंगार कै जाओ, 
     अघिला पीड़ी की कुछ समाउ कै जाओ।  
कसिक लिल सांस यौ समझी जाओ, 
    देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
बांज, बुरांश कांफोव डाइ छौ पाणि कि महतारी, 
     नि हौळ पाणि मरळि दूनि सारी। 
यू डायौं जंगल कें मिलि बै बचाओ,  
    देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
उतीस खड़ीक अंयार लोद जंगव कि सान, 
     जति हनि घोर जंगव वेति हों धरती क मान।
कुहां कें हटाओ बांज, बुरांश कांफोव लगाओ, 
     देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
बेडु, तिमिल फें कें जरूर बचाओ, 
     गोरू बकर चारु हौल, भलि हवा पाओ। 
बांजि खेति में बगीच बनाओ,  
     देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
आरू, चुवारु, खुमानी, नासपाती लगाओ, 
    बितण, अकेसिया तूणी बांस लै उगाओ, 
है सकूं देवदार, रंसू ळ मंगाओ, 
     देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
बौड़, सीसम, गींठी, सानण लगाओ, 
     छोड़ौ पुराणि कहावत पीपल लै रोपाओ।  
कनार, साल, सागौनक भाबर बनाओ,  
     देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
 
नीम, सहतूत, अमलतास, मरांडी और टीक उगाओ, 
    स्यौव लै भल हौल जामुन जरूर लगाओ। 
धरतिकि पकड़ लै मजबूत बनाओ, 
    देश रौ पहाड़ पर पाणि जरूर बचाओ। 
सर्वाधिकार@सुरक्षित

सोमवार, 3 जून 2024

पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस से मकान में।  
9 से 6 की ड्यूटी, और मानसिक थकान में।।  

**🖋️२**  
मन गांव में ही रह गया, शरीर शहर का वासी है।  
ताज़ा बस, ख़बर यहाँ, तासीर बासी_बासी है।।  

**🖋️३**  
दो जन दोनों कमाने वाले, बच्चों को कौन संभाले।  
टारगेट के पीछे भाग रहे हैं, तन को कर, बीमा के हवाले।।  

**🖋️४**  
यारों का न संग रहा, न न्योता न व्यवहार।  
खुद के घर जाते हैं बन, जैसे रिश्तेदार।।  

**🖋️५**  
कर बंटवारा एकड़ बेचा, वर्ग फीट के दरकार में।  
बिछड़े, पिछड़ा कह के, खो गए अगड़ों के कतार में।।  

**🖋️६**  
शुरुवाती; मज़ा बहुत है, एकाकी; स्वप्न; संसार में।  
मुसीबत हमेशा हारा है, संगठिक संयुक्त परिवार में।।

**🖋️७**  
मात, पिता न आने को राजी, गांव में नौकरी है कहां जी।
जिनके  पास  दोनों  है बंधुओं, उनका जीवन है शान में 

पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस से मकान में।  
9 से 6 की ड्यूटी, और मानसिक थकान में।।  

~विपिन शर्मा 🖋️🖋️

शनिवार, 1 जून 2024

२जून

द्वी जून क रव्टा लिजी
खून पसीन बगा रौ
चा रौ सुकून दिन भरि थकान बटिक

घर बटी न्है जारि
द्वी रव्टा कमूहूनी
बैहाल हैरों मनुज
हालातों क सामणि

द्वी जून क रव्ट
दिनोंदिन चिंता खा रै
बढी हुई महंगाई आंख दैखुरै

रव्ट कपड़ मकान
चंद सांसों क डोर
जिंदगी भागदौड़
ना कई चैन ना कई ठौर

दुनि गोल मटोल
कई म्वाट कई पतल
घ्यू लगाई सबूकें चै
यू रव्ट क्यें क्यें खैल दिखै

क्वें परदेश जारौं
नौकरी हजूरी लगारौं
आंधी तूफां सर्दी सह बैर
द्वी रव्ट कमारौं

रव्ट मतलब मिहनत
स्वाभिमान ल भरपूर
प्रेम पूर्वक रव्ट कमाऔ
रौं जग मे मशहूर!

द्वी जून क
रव्टा लिजी
कतूक पापड़ बैलन पडनी
हम सब जाणनूं
आपूं चाहै सैठ छा या गरीब
द्वी जून क रव्टा लिजी प्रयत्न करण पडनी

मजदूरों कें आज द्वी रव्टा क फिक्र छ
य चक्कर मे रोज मजदूरी करू
खून पसीड़ एक करु
तब जै बैर द्वी रव्टाक प्रबंध हूछ
@देव सती