*कलश से पूछा गया कि तुमने ऐसा क्या पुण्य किया है कि सबके सिर पर विराजते हो ?*
*उसने कहा कि मिट्टी के रूप में था तब पैरों में गूंथा गया, बनने के बाद धूप में तपा, फिर अग्नि में जलाया गया, इतनी साधना और अपमान के बाद तुम्हारे सिर पर आया हूं ।*
*जीवन में साधना और अपमान को विष न मानकर इसको अपने सम्मान का अमृत बना लेना चाहिए।*
*भगवान का कोई आकार नहीं*
किसने कहा, भगवान् साकार नहीं है ?
सभी आकार उसी के है।
भगवान् का कोई आकार नहीं है।
तुम भगवान् का आकार खोज रहे हो,
इसलिए सवाल उठता है
कि भगवान् साकार क्यों नही।
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वृक्ष में भगवान् वृक्ष है.
पक्षी में पक्षी है,
झरने मे झरना है ,
आदमी में आदमी है,
पत्थर में पत्थर है,
फूल में फूल है।
तुम भगवान् का आकार खोज रहे हो, तो चूकते चले जाओगे।
सभी आकार जिसके हैं, उसका अपना कोई आकार नहीं हो सकता।
अब यह बड़े मजे की बात है।
इसका अर्थ हुआ कि सभी आकार जिसके है वह निराकार!
सभी नाम जिसके है उसका अपना नाम कैसे होगा ?
जिसका अपना नाम है उसके सभी नाम कैसे हो सकते। सभी रुपों से जो झलका है उसका अपना रुप नहीं हो सकता।
जो सब जगह है उसे एक जगह खोजने की कोशिश करोगे तो चूक जाओगे।
सब जगह होने का एक हीं ढंग है
कि वह कहीं भी न हो। अगर कहीं होगा तो सब जगह न हो सकेगा।
कहीं होने का अर्थ है : सीमा होगी। सब जगह होने का अर्थ है : कोई सीमा न होगी।
तो परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है।
"परमात्मा सभी के भीतर बहती जीवन की धार है"।
वृक्ष में हरे रंग की धार है- जीवन की!
वृक्ष आकाश की तरफ उठ रहा है -
वह उठान परमात्मा है।
वृक्ष छिपे हुए बीज से प्रगट है रहा है -
वह प्रगट होना परमात्मा है।
परमात्मा किसी जैसा नहीं,
क्योंकि फिर सीमा आ गई।
अगर परमात्मा पुरुष जैसा हो,
तो फिर स्त्री मे कौन होगा ?
स्त्री जैसा हो तो पुरुष वंचित रह जाएगा।
मनुष्य जैसा हो तो पशुओं मे कौन होगा ?
और पशुओं जैसा हो तो पौधों में कौन होगा ?
इसे समझने की कोशिश करो।
परमात्मा जीवन का विशाल सागर है।
हम सब उसके रुप हैं, तरंगें हैं।
हजारों ढंगो में वह मौजूद है।
कितना हीं प्रगट होता चला जाए,
अनंत रुप से प्रगट होने को शेष है।
परमात्मा अस्तित्व का नाम है।
इसलिए तो उपनिषद कहते हैं,
उस पूर्ण से हम पूर्ण को भी निकाल लें तो पिछे पूर्ण हीं शेष रहता है....
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‼ *आपका दिन शुभ हो*
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