बुधवार, 22 मई 2024

अरे ओ प्रवासी श्रीमान विनोद पंत जी की रचना

अरे ओ प्रवासी .......!

क्यों गांव के गधेरे गाड ढूढ रहा है 
चौमास मे फैले हौल  की बाड ढूढ रहा है
अरे ओ प्रवासी .... 
ऐसे तो और नराई लगेगी भुला 
शहर आकर क्यों पहाड ढूढ रहा है ?

क्यो अरबी मे गडेरी का स्वाद खोज रहा है 
बासमती मे जमाई का भात खोज रहा है 
फ्रिज मे चाह रहा है नौले सा पानी 
कूलर  में ढूढ रहा है हवा बांजाणी 
नाली के  पानी मे  क्यो कोसी सरयू पनार  ढूंढ रहा है 
अरे ओ प्रवासी ..
ऐसे तो और नराई लगेगी भुला 
शहर आकर  क्यों पहाड ढूंढ रहा है ?

लोधिया से अल्मोडे के बाल ले लेगा 
बागेश्वर,रानीखेत  से भट गहत की दाल भी ले लेगा 
हल्द्वानी से मिश्री के कुंजे भी रख लेता होगा 
भवाली के  आडू काफल भी चख लेता होगा 
मिक्सी मे पीसकर क्यो सिल पिसे डुबके का स्वाद ढूढ रहा है 
अरे ओ प्रवासी ....
ऐसे तो और नराई लगेगी भुला ,
शहर आकर  क्यों पहाड ढूंढ  रहा है ?

अपने किचन गार्डन में क्या रामबांस उगा पाऐगा 
टेरेस मे क्या बुरांस खिला पाऐगा 
जो पुदीना गांव से लाया था वो भी देसी हो जाऐगा 
गमले मे गेठी का पेड परदेशी हो जाऐगा 
लिप्टिस के पेड तले क्यों बांजकी छांव ढूंढ  रहा है ?
अरे ओ प्रवासी ....
ऐसे तो और नराई लगेगी भुला , 
शहर आकर अब क्यों पहाड ढूंढ  रहा है  ?

लोग यहां भी हैं पर जेठबाज्यू जेडजा नही हैं 
पडोसी हैं पर पहाड की आमा ईजा नही है 
न तेरे पास न तेरे लिए किसी को टैम होगा 
ना धनदा ,चनदा या परुली काखी सा प्रेम होगा 
 भागते लोगो मे क्यो चैंतार में बैठे  लोग ढूढ रहा है ? 
अरे ओ प्रवासी .....
ऐसे तो और नराई लगेगी भुला ,
शहर आकर क्यों पहाड ढूंढ रहा है ?
#विनोद_पन्त_खन्तोली