मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

दीपाली सुयाल जी की कविता

हिमाला की डानो मां बसी
बसी यों पहाड़ा
डाना डाना हंयू पड़ी
म्यर मुलुक पहाड़ा..।।

शिवज्यूकी की नगरी
के भलो यों कैलाशा
मन मां बसी यों म्यरो
म्यर बाबा केदारा..।।

ठंडी ठंडी हव जाकी
ठंडी पाणीकी यों धारा
रंगीलो मिजाज याको
रंगीलो यों पहाड़ा..।।

पितरों की जन्म भूमि
देवताओ का यों थाना
गंगाज्यूकि गोदमां बसी
बसी यों म्यर हरिद्वारा..।।

ढोल ,दमाऊ ,नागड़
बाज़ी हुड़की की थापा
रूमन झुमन हैबटी 
नाचो म्यर यों पहाड़ा..।।

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रचना - दीपाली सुयाल
रामनगर उत्तराखंड

शनिवार, 25 दिसंबर 2021

मत करो बदनाम

मत करो # बदनाम फिजूल में कि # दूल्हे_बिकते है लाख - हज़ार में .. ! # दौलत और # हैसियत , तुम ही देखते हो # सरकारी नौकरी के बाजार में .. ! # गरीब है लड़का तो मजाक उड़ाया , # रिश्ते_को_ठुकरा कर उसे # नीचा दिखाया # रईस है तो लड़की को # खुश रख सकेगा , # बड़ा_घर नही तो क्या " # मांग " नही भर सकेगा ? ये # रईसी तो बस रिश्ते को # पैसे से तौलती है # विवाह_के_बंधन को महज # सात फेरे बोलती है ! । # ख्वाब_बेटियों के # आसमां से भी # ऊंचे बनाना अच्छी बात है " # घर " तो # ज़मीन पर ही होना है , ये भी तो # सिखाने की बात है ! हम # मध्यम_वर्गीय लड़के रिश्ते # दिल से निभाते हैं # दौलत और # शोहरत से नहीं , # प्यार से जीवनसाथी बनाते हैं .. !

गुरुवार, 23 दिसंबर 2021

रुद्राभिषेक मंत्र

#रुद्राभिषेक मंत्र................
#रुद्राभिषेक मंत्र शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी के सभी मुख्य आठों अध्यायों में दिए गए मन्त्रों से किया जाता है लेकिन आवश्यक होने पर और यदि आप स्वयं ही आसान विधि से रुद्राभिषेक करना चाहें तो निम्लिखिन रुद्राभिषेक मंत्र से आप भगवान शिव का रुद्राभिषेक कर सकते हैं !

ॐ नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च 
मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च ॥ 
ईशानः सर्वविद्यानामीश्व रः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपति 
ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोय्‌ ॥ 
तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥ 
अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररुपेभ्यः ॥ 
वामदेवाय नमो ज्येष्ठारय नमः श्रेष्ठारय नमो 
रुद्राय नमः कालाय नम: कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमः 
बलाय नमो बलप्रमथनाथाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः ॥ 
सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः । 
भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्‌भवाय नमः ॥ 
नम: सायं नम: प्रातर्नमो रात्र्या नमो दिवा । 
भवाय च शर्वाय चाभाभ्यामकरं नम: ॥ 
यस्य नि:श्र्वसितं वेदा यो वेदेभ्योsखिलं जगत् । 
निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थ महेश्वरम् ॥ 
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिबर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात् ॥ 
सर्वो वै रुद्रास्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु । पुरुषो वै रुद्र: सन्महो नमो नम: ॥ 
विश्वा भूतं भुवनं चित्रं बहुधा जातं जायामानं च यत् । सर्वो ह्येष रुद्रस्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु ॥

सोमवार, 6 दिसंबर 2021

ब्राह्मण परम्परा

ब्राह्मण -परम्परा
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​एक कुलीन ब्राह्मण को अपनी कुल परम्परा का सम्पूर्ण परिचय निम्न  11 (एकादश) बिन्दुओं के माध्यम से ज्ञात होना चाहिए -

1👉  गोत्र।

2👉  प्रवर।

3👉  वेद।

4👉  उपवेद।

5👉  शाखा।

6👉  सूत्र।

7👉  छन्द।

8👉  शिखा।

9👉  पाद।

10👉 देवता।

11👉  द्वार।

1 गोत्र👉  गोत्र का अर्थ है कि वह कौन से ऋषिकुल का है या उसका जन्म किस ऋषिकुल से सम्बन्धित है । किसी व्यक्ति की वंश-परम्परा जहां से प्रारम्भ होती है, उस वंश का गोत्र भी वहीं से प्रचलित होता गया है। हम सभी जानते हें की हम किसी न किसी ऋषि की ही संतान है, इस प्रकार से जो जिस ऋषि से प्रारम्भ हुआ वह उस ऋषि का वंशज कहा गया । इन गोत्रों के मूल ऋषि – विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्त्य की संतान गोत्र कहलाती है। यानी जिस व्यक्ति का गौत्र भारद्वाज है, उसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज थे और वह व्यक्ति इस ऋषि का वंशज है। इन गोत्रों के अनुसार इकाई को "गण" नाम दिया गया, यह माना गया की एक गण का व्यक्ति अपने गण में विवाह न कर अन्य गण में करेगा। इस प्रकार कालांतर में ब्राह्मणो की संख्या बढ़ते जाने पर पक्ष ओर शाखाये बनाई गई । इस तरह इन सप्त ऋषियों पश्चात उनकी संतानों के विद्वान ऋषियों के नामो से अन्य गोत्रों का नामकरण हुआ ।
गोत्र शब्द  एक अर्थ  में  गो अर्थात्  पृथ्वी का पर्याय भी है ओर 'त्र' का अर्थ रक्षा करने वाला भी हे। यहाँ गोत्र का अर्थ पृथ्वी की रक्षा करें वाले ऋषि से ही है। गो शब्द इन्द्रियों का वाचक भी है, ऋषि- मुनि अपनी इन्द्रियों को वश में कर अन्य प्रजाजनों का मार्ग दर्शन करते थे, इसलिए वे गोत्रकारक कहलाए। ऋषियों के गुरुकुल में जो शिष्य शिक्षा प्राप्त कर जहा कहीं भी जाते थे , वे अपने गुरु या आश्रम प्रमुख ऋषि का नाम बतलाते थे, जो बाद में उनके वंशधरो में स्वयं को उनके वही गोत्र कहने की परम्परा आविर्भूत हुई । जाति की तरह गोत्रों का भी अपना महत्‍व है , यथा -

1. गोत्रों से व्‍यक्ति और वंश की पहचान होती है ।

2. गोत्रों से व्‍यक्ति के सम्बन्धों की पहचान होती है ।

3. गोत्र से सम्बन्ध स्थापित करने में सुविधा रहती है ।

4. गोत्रों से निकटता स्‍थापित होती है और भाईचारा बढ़ता है ।

​5. गोत्रों के इतिहास से व्‍यक्ति गौरवान्वित महसूस करता है और प्रेरणा लेता है ।

2. प्रवर👉 प्रवर का अर्थ हे 'श्रेष्ठ" । अपनी कुल परम्परा के पूर्वजों एवं महान ऋषियों को प्रवर कहते हें । अपने कर्मो द्वारा ऋषिकुल में प्राप्‍त की गई श्रेष्‍ठता के अनुसार उन गोत्र प्रवर्तक मूल ऋषि के बाद होने वाले व्यक्ति, जो महान हो गए वे उस गोत्र के प्रवर कहलाते हें। इसका अर्थ है कि आपके कुल में आपके गोत्रप्रवर्त्तक मूल ऋषि के अनन्तर तीन अथवा पाँच आदि अन्य ऋषि भी विशेष महान हुए थे।

3. वेद👉  वेदों का साक्षात्कार ऋषियों ने लाभ किया है , इनको सुनकर याद किया जाता है , इन वेदों के उपदेशक गोत्रकार ऋषियों के जिस भाग का अध्ययन, अध्यापन, प्रचार प्रसार, आदि किया, उसकी रक्षा का भार उसकी संतान पर पड़ता गया इससे उनके पूर्व पुरूष जिस वेद ज्ञाता थे तदनुसार वेदाभ्‍यासी कहलाते हैं। प्रत्येक ब्राह्मण का अपना एक विशिष्ट वेद होता है , जिसे वह अध्ययन -अध्यापन करता है ।

4. उपवेद👉  प्रत्येक वेद  से  सम्बद्ध  विशिष्ट  उपवेद  का  भी  ज्ञान  होना  चाहिये  । 

5. शाखा👉 वेदो के विस्तार के साथ ऋषियों ने प्रत्येक एक गोत्र के लिए एक वेद के अध्ययन की परंपरा डाली है , कालान्तर में जब एक व्यक्ति उसके गोत्र के लिए निर्धारित वेद पढने में असमर्थ हो जाता था तो ऋषियों ने वैदिक परम्परा को जीवित रखने के लिए शाखाओं का निर्माण किया। इस प्रकार से प्रत्येक गोत्र के लिए अपने वेद की उस शाखा का पूर्ण अध्ययन करना आवश्यक कर दिया। इस प्रकार से उन्‍होने जिसका अध्‍ययन किया, वह उस वेद की शाखा के नाम से पहचाना गया।

6. सूत्र👉 व्यक्ति शाखा के अध्ययन में असमर्थ न हो , अतः उस गोत्र के परवर्ती ऋषियों ने उन शाखाओं को सूत्र रूप में विभाजित किया है, जिसके माध्यम से उस शाखा में प्रवाहमान ज्ञान व संस्कृति को कोई क्षति न हो और कुल के लोग संस्कारी हों !

7. छन्द👉 उक्तानुसार ही प्रत्येक ब्राह्मण को  अपने परम्परासम्मत   छन्द का  भी  ज्ञान  होना  चाहिए  ।

8. शिखा👉 अपनी कुल परम्परा के अनुरूप शिखा को दक्षिणावर्त अथवा वामावार्त्त रूप से बांधने  की परम्परा शिखा कहलाती है ।

9. पाद👉 अपने-अपने गोत्रानुसार लोग अपना पाद प्रक्षालन करते हैं । ये भी अपनी एक पहचान बनाने के लिए ही, बनाया गया एक नियम है । अपने -अपने गोत्र के अनुसार ब्राह्मण लोग पहले अपना बायाँ पैर धोते, तो किसी गोत्र के लोग पहले अपना दायाँ पैर धोते, इसे ही पाद कहते हैं ।

10. देवता👉 प्रत्येक वेद या शाखा का पठन, पाठन करने वाले किसी विशेष देव की आराधना करते है वही उनका कुल देवता [गणेश , विष्णु, शिव , दुर्गा ,सूर्य इत्यादि पञ्च देवों में से कोई एक ] उनके आराध्‍य देव है । इसी प्रकार कुल के भी  संरक्षक  देवता या कुलदेवी होती हें । इनका ज्ञान कुल के वयोवृद्ध  अग्रजों [माता-पिता आदि ] के द्वारा अगली पीड़ी को दिया जाता  है । एक कुलीन ब्राह्मण को अपने तीनों प्रकार के देवताओं का बोध  तो अवश्य ही  होना चाहिए -

(क) इष्ट देवता अथवा इष्ट देवी ।
(ख) कुल देवता अथवा कुल देवी ।
(ग) ग्राम देवता अथवा ग्राम देवी ।

11.  द्वार👉 यज्ञ मण्डप में अध्वर्यु (यज्ञकर्त्ता )  जिस दिशा अथवा द्वार से प्रवेश करता है अथवा जिस दिशा में बैठता है, वही उस गोत्र वालों की द्वार होता है।
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बुधवार, 1 दिसंबर 2021

हनुमान चालीसा अर्थ सहित

हम सब हनुमान चालीसा पढते हैं, सब रटा रटाया।

क्या हमे चालीसा पढते समय पता भी होता है कि हम हनुमानजी से क्या कह रहे हैं या क्या मांग रहे हैं?

बस रटा रटाया बोलते जाते हैं। आनंद और फल शायद तभी मिलेगा जब हमें इसका मतलब भी पता हो।

तो लीजिए पेश है श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित!!

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।
📯《अर्थ》→ गुरु महाराज के चरण.कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे।★
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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।★
📯《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन.करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।★
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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥★
📯《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों,स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।★
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥★
📯《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नही है।★
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥★
📯《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।★
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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥★
📯《अर्थ》→ आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।★
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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥★
📯《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।★
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शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥★
📯《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।★
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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥★
📯《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।★
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥★
📯《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते है।★
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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा॥9॥★
📯《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके.लंका को जलाया।★
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भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥★
📯《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके.राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।★
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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥★
📯《अर्थ 》→ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।★
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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥★
📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।★
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥★
📯《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से.लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।★
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥14॥★
📯《अर्थ》→श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।★
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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥★
📯《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।★
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥★
📯《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।★
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥★
📯《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।★
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥★
📯《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।★
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥★
📯《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है।★
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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥★
📯《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।★
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राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥21॥★
📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप.रखवाले है, जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।★
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू.को डरना॥22॥★
📯《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक. है, तो फिर किसी का डर नही रहता।★
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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥★
📯《अर्थ. 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।★
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥★
📯《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नही फटक सकते।★
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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25॥★
📯《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥★
📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे, कर्म करने मे और बोलने मे, जिनका ध्यान आपमे रहता है, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है।★
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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥ 27॥★
📯《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर दिया।★
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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥★
📯《अर्थ 》→ जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।★
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥★
📯《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है, जगत मे आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।★
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साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥★
📯《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप.सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।★
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥★
📯《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।★
1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर.जाता है।★
2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।★
3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।★
4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।★
5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।★
6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे समा सकता है, आकाश मे उड़ सकता है।★
7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय हो जाता है।★
8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।★
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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥★
📯《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।★
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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥★
📯《अर्थ 》→ आपका भजन करने से श्री राम.जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।★
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अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥★
📯《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।★
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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥★
📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।★
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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥★
📯《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥★
📯《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।★
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जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥★
📯《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।★
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥★
📯《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।★
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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥★
📯《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।★
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पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥★
📯《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।★
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
🌹सीता राम दुत हनुमान जी को समर्पित🌹
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🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
जय जय श्री राम🙏

शनिवार, 27 नवंबर 2021

बानर और पधान ज्यू

बानर और पधान ज्यु

पधान ज्यु यो बानर पहाड़ बटि कब हराल।
पली बटी यो आँखा देखि डरछी।
ढुंग दिखाते ही चार गाड़ दूर मिलछी।
बाड़ घटा पन कम उजाड़ करछी।

पत् न काबे इनर इदु दांग ऐ गई।
यस लागडो देशक सबे बानर पहाड़ ऐ गेई।
अब तो यु हमर चुलम तक पोसी गई।
बाघ हबे ले ज़ायद खूंखार हे गई।

जे देखड़ रेइ वी लीजाणि।
नी दीणा बुंगाहा आणि।

अब तो बानर हकाण ले एक काम हे गो।
परवारक एक जड़ियोक रोजगार हे गो।
ठुल छोड़ो नानथिनाक ले टेमपास हे गो।
रुडी असोज चौमास अब सदाबहार हे गो।

लट्ठ गुलेल ढुंग मेसुल आपुण पटागण में धर रेई।
बानर ले बड़ होसियार उले मोके इन्तेजार करण रेई।
दिन तो छोड़ो रात ले ताक में भे रेई।
नेताओ दगड़ क्रिकेटक आनंद ले लीण रेइ।

यस बात नहे पधान ज्यु यो विषय में गंभीर नहे।
केवल डोइ बानरुक लीजि उनर पा रोजगार नहे।
पधान ज्यु ले मजबूर बानर उनर बसम ले नहे।

अल्बेर चुनावो में यो विषय ले रोल।
वरना पधान ज्यु के सब राम राम कौल।

रविवार, 22 अगस्त 2021

मै बाखली हू

पहाड़ के पलायन पर सुन्दर कविता

मैंने देखा है अपने आँगन में
तेरे दादा और परदादा को भी,
तुतलाते,अलमस्त बचपन बिताते,
तख्ती पे घोटा लगाते,कलम बनाते....
मुस्कराते,गुनगुनाते और खिलखिलाते,
जब अ से अनार सीखते थे तेरे बूबू.....
       मैं  तब भी थी , मैं आज भी हूँ,

    मैं बाखली हूँ........

खेले हैं मैंने होली के रंग ,तेरे पुरखों के संग ,
ना जाने कितनी दिवालियों में सजी हूँ,
सुनी है मैंने वो "काले-कव्वा काले " की पुकार
जब घूघूते की माला ले के दौड़ते थे तेरे बाज्यू...
           मैं तब भी थी , मैं आज भी हूँ,
            मैं बाखली हूँ......
गवाह हूँ मैं कितनी डोलियों की याद नहीं,
कितनी बेटियों की विदाई में बहे आंसू मेरे
कितनी बहुवों की द्वारपूजा की साक्षी हूँ....
जब चाँद सी सजके आई थी तेरी ईजा ......
              मैं तब भी थी ,मैं आज भी हूँ,
               मैं बाखली हूँ..........
फिर तेरे नामकरण की वो दावत
कितनी लम्बी पंगतों को जिमाया मैंने....
तेरा बचपन, तेरी शिक्षा,तेरा संघर्ष,
कितना फूला था मेरा सीना ,जब आया तू
पहली बार मेरे आँगन में ठुल सैप बनके
                 मैं तब भी थी , मैं आज भी हूँ...
                  मैं बाखली हूँ......
पर शायद मेरा आँगन छोटा हो गया ,
तेरे सपनो  के लम्बे सफर के लिए...
तुझे पूरा हक है, जीने का नई जिंदगी।
शायद समय की दौड़ में मैं ही पिछड़ गई हूँ...
याद है वो भी जब आखिरी बार कांपते हाथों से 
सांकल चड़ाई थी तूने..................
            मैं तब भी थी,मैं आज भी हूँ,
            मैं बाखली हूँ..............
अब शायद और ना झेल पाऊं वक्त की मार,
अकेलेपन ने हिला दिया है मेरी बुनियादों को....
अब तो दरवाजों पे लगे तालों पे भी जंक आ गया
पर मेरा रिश्ता तेरी बागुड़ी से आज भी वही है।
 लेके खड़ी  मीठी यादें,ढेरों आशीर्वाद......
                   मैं तब भी थी ,मैं आज भी हूँ,
                    मैं बाखली हूँ.........

मंगलवार, 15 जून 2021

हरेला

*लोक पर्व हर्याव*

हर्याव आई हर्याव आई

चौ दिशी बहार आई

भ्यार जाई घर आई

चैली बेटी मैत आई

लग्गै सोण हर्याव क त्यार आई

जी रया जाग रया बची रया
हर साल हर्याव मनूनें रया
शिव ज्यू के नवूनें रया!

**है सकल त धरतीक ऋण क*
*लिजी एक पेड जरुर लगाया*    🌳  

सोण मनाया हर्याव भादों तीज त्यार

कार्तिक मनाया दिवाई फागुन उडाया गुलाल

क्वे दिल्ली क्वे मुबंई क्वे बैगलोंर रुछा

घरवाल खुशि तब हुछी जब य हर्याव घर उछिया

पैली ना डर ना चोरि सब बैखोफ छी

उतराखण्डी सभ्यता लै गजब छी

हर्याव फुलदैयी घ्यू संग्रात घुघुती याक त्यार छी

नाखेक नथूली हाथोंक पौजी महिलाओंक श्रृगार छी

*लाग हर्याव लाग दशै लाग बगवाव* 
*जी रया जाग रया यो दिन महैन भेंटने रया*

*सोशल डिस्टेन्सिंग बनै बै रया*
*कोरोना हू बचबैं रया*

चाहे उतराखण्ड मे रया 
या
सात समुन्दर पार रया

*जी रया जागि रया*
*जी रया जागि रया*

*य दिन य बार य मैहैण भैटनें रया*

🌼देव सती क तरफ बटि आपु सबों कैं उत्तराखण्ड लोक पर्व हर्याव की भोंत भोंत हार्दिक शुभ मंगल कामनॉए ।🌼जय भोले 
जय देवभूमि

सर्वाधिकार सुरक्षित-देव सती

मंगलवार, 18 मई 2021

मिकें य समझ नी आय

मिकें य समझ नि आय
*******************
पेलिका बुढ़बाड़ी पैदल हिठ छि
अब नानतिन कुनि तराण नहां
कुनि विकास हेगो 
गंव फन सड़क पूजिगे
मोटर धड़धड़ाट हेगो
आहा रे मोटरा त्यर आबेर 
जवानों क तराण हरेगो .....

बात पुराणी नाहां
जब बांज क क्वेल 
तिमूर क दातुन करछि
दांत मरण तक मुख'में रुछि
अब मंजन ले हराणो
कस कस पेस्ट ऐजाणो
फिर ले जवानी में दांत टुटणि
कतु जल्दि मनखि बदल जाणि....

कुणि पहाड़ क विकास हेगो 
मिकें लागु आदु मुलुक खाली हेगो
पेली खेती जमीन'क मालिक छि हम
बड़ स्वाभिमानी छि हम
अब हम दूसर,क नॉकर हेगयूँ
इमें बड़ खुश छयूँ हम
यो कसि तरक्की छू
घर हेबेर ले बेघर हेगयूँ हम .....

पेलिक बटि च्यल भियार बे 
ईज बौजु हूं मिलूं हूँ गंव उंछि
अब कस बखत बदिलो
अब च्यल ब्वारी परदेश'म बसि गई
बुढ़ बॉडी पहाड़'म यकले रें गई
च्यल के भेटुहूँ ईज बौजु शहर जाणि
अपड जस मुख लिबेर वापस आणी
ठीके कुंछि आमा कस बखत आय
आघिल के महन पहिंके छाज हुणि

कस विज्ञान क समय आयो
मिकें आई ले समझ नि आयो
सब कुनि विकास हुणों
मिकें य ले समझ नि आयो
भरी पुरि पहाड़ बांज जस हेगो
पहाड़ कि जड़ बुटि क माट हेगो
स्वर्ग जस पहाड़ लोगु'ल छोड़ी हेलो
भ्यार क मनखियों ल पहाड़ हथिये हेलो 
य कसि काव हेगे
मिकें य समझ नि आय....

पुष्पा
@ copyright received

मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

चलो जी लौट चलें

"    *चलो जी लौट चलें*   "
              ********
चलो जी  ! लौट चलें अब,
बहुत हो चुकी ऐशोआराम।
बच्चे वहां भी पढ़ ही लेंगे, 
सबसे अच्छा अपना ग्राम।।

यहां इस महामारी में दम घुटता,
चैन नहीं अब सुबह और शाम।
दो वक्त की रूखी सूखी सही,
शुकुन भरा है अपना ग्राम।।

चुप रे पगली!  तू ही झगड़ी थी,
कि मुझसे नहीं होता यहां काम।
न स्वास्थ्य न शिक्षा। न सुविधा,
छोड़ चल तू ऐसा ग्राम।।

अब किस मुंह है बोल रही,
क्यों जपती अब वही नाम।
अब क्यों भाये तुझको खंडहर,
जो कभी था मेरा ग्राम।।

आज वहां न खेत ही अपना,
कहाँ जाने अब खलिहान-मकान।
क्या जाने वहां कौन जगह दे,
किसका लूं अब वहां अहसान।।

देखो जी वह जैसा भी है,
है तो अपना पूज्य वही धाम।
वहीं तो डोला लेकर आये थे मेरा,
जिसे कह रहे हो अपना ग्राम।।

मुझे आज भी याद है गांव की,
खेती-पाती, सास-जेठानी तमाम।
वहां अमृत है कलकल बहता,
स्वछंद वायु है सुबह और शाम।।

यहां मौत का तांडव देखो,
कोई नहीं यहां अपना राम।
सब घरों में बंद हुए हैं,
अपने से सिर्फ अपना ही काम।।

कसम तुम्हारी अब न कहूंगी,
ले चलो तुम मुझे मेरे ग्राम।
वहीं मरूँगी जिऊँगी अब।
वहीं करूंगी अन्तिम विश्राम।।

*🙏स्वर्ग से सुंदर अपना गाँव🙏*

सोमवार, 22 मार्च 2021

नई अंग्रेजी साल

[01/01, 1:54 am] Dev Sati: *प्रणाम आपण है ठूला कैं*🙏🏻
*बराबर वालों के नमस्कार*👏🏻
*खुशी रया व भौतें प्यार  नानतिनों*✋🏻



अंग्रेजी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऔ सहित


नववर्षाक हाथ टिकी जमीन मे
राताक बार बाजणाक इन्तजार मे! 

दिन हफ्त महैण बीतो 
य नई सालाक इन्तजार मे! 

भूल ग्यू धूमिल है गयी उ पल
जो बीती द्वी हजार बीस मे!
 जनवरी जाड जाड़े गै 
फरवरी फरफराणि गै
मार्च  बाद लौकडाउन
फिर आदतें पढ़ गै! 

अप्रैल मे कोरोना
मई मै रामायण
जून मे महाभारत
जुलाई मे विकास दूबे
यू हम सबकें लि डूबे! 

अगस्त सुशांत रिया
मार्च बटि  लागी लौकडाउन नी खुल
य कस हो रिया! 

सितम्बर कंगना  
कथैं  ब्या काजों  मे बैण्ड नी बजना

अक्टूबर आई पी एल IPL
हमार एक्क सट्ट नी चल! 

नवम्बर भारती हर्ष
प्रवासियों क हैरों भौतें खर्च! 

दिसम्बर किसानों क  आन्दोलन
शायद ये साल ३१st नी मनाल! 

छ  यई ईश्वर हू गुहार
पूर हे जो सबुक
कल्पना क विस्तार
तुम सबें छा आपुण
सबुक दिल मे भरि छु प्यार

नव  वर्ष शुभमंगलमय 
हो

सबुकैं आशानुसार


  नव वर्ष शुभमंगल मय हो

*नई साल क स्वागत करन जतूवें ज्यादा* *जरूरी छ,   उतूवें ज्यादा जरूरी*
 *पिछाड़ी साल के विदाई करण क्यैलै कि*
*अब द्वी हजार बीस २०२० कभै*
 *वापिस नी आल य साल ल पुर  तीन सौ**
*पैसठ दिन हमर साथ निभा बिती* *साल मे हमूल भौतें कुछ    खो भौतें कुछ* *पा अलविदा २०२०*
*स्वागत २०२१*

रविवार, 14 मार्च 2021

ॐ जय शिव ओंकारा

आज सोमवार है तो आइए जानते है
*"ॐ जय शिव ओंकारा"*
यह वह प्रसिद्ध आरती है जो देश भर में शिव-भक्त नियमित गाते हैं..

लेकिन, बहुत कम लोग का ही ध्यान इस तथ्य पर जाता है कि... इस आरती के पदों में ब्रम्हा-विष्णु-महेश तीनो की स्तुति है..

एकानन (एकमुखी, विष्णु),  चतुरानन (चतुर्मुखी, ब्रम्हा) और पंचानन (पंचमुखी, शिव) राजे..

हंसासन(ब्रम्हा) गरुड़ासन(विष्णु ) वृषवाहन (शिव) साजे..

दो भुज (विष्णु), चार चतुर्भुज (ब्रम्हा), दसभुज (शिव) अति सोहे..

अक्षमाला (रुद्राक्ष माला, ब्रम्हाजी ), वनमाला (विष्णु ) रुण्डमाला (शिव) धारी..

चंदन (ब्रम्हा ), मृगमद (कस्तूरी विष्णु ), चंदा (शिव) भाले शुभकारी (मस्तक पर शोभा पाते हैं)..

श्वेताम्बर (सफेदवस्त्र, ब्रम्हा) पीताम्बर (पीले वस्त्र, विष्णु) बाघाम्बर (बाघ चर्म ,शिव) अंगे..

ब्रम्हादिक (ब्राह्मण, ब्रह्मा) सनकादिक (सनक आदि, विष्णु ) प्रेतादिक (शिव ) संगे (साथ रहते हैं)..

कर के मध्य कमंडल (ब्रम्हा), चक्र (विष्णु), त्रिशूल (शिव) धर्ता..

जगकर्ता (ब्रम्हा) जगहर्ता (शिव ) जग पालनकर्ता (विष्णु)..

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका (अविवेकी लोग इन तीनो को अलग अलग जानते हैं।)

प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका

(सृष्टि के निर्माण के मूल ऊँकार नाद में ये तीनो एक रूप रहते है... आगे सृष्टि-निर्माण, सृष्टि-पालन और संहार हेतु त्रिदेव का रूप लेते हैं.

संभवतः इसी *त्रि-देव रुप के लिए वेदों में ओंकार नाद को ओ३म्* के रुप में प्रकट किया गया है ।
🙏🙏🙏

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

मां का पल्लू

((¯°·._.• *माँ का पल्लू* अनमोल* •._.·°¯))

  मुझे नहीं लगता, कि आज के बच्चे 
          यह जानते हों , कि 
          पल्लू क्या होता है ?

        इसका कारण यह है, कि 
          आजकल की माताएं
        अब साड़ी नहीं पहनती हैं.
               ● पल्लू ● 
     बीते समय की बातें हो चुकी हैं.

    माँ के पल्लू का सिद्धाँत ... माँ को 
गरिमामयी छवि प्रदान करने के लिए था.

  इसके साथ ही ... यह गरम बर्तन को 
   चूल्हा से हटाते समय गरम बर्तन को 
      पकड़ने के काम भी आता था.

        पल्लू की बात ही निराली थी.
           पल्लू पर तो बहुत कुछ
              लिखा जा सकता है.
 पल्लू ... बच्चों का पसीना, आँसू पोंछने, 
   गंदे कान, मुँह की सफाई के लिए भी 
          इस्तेमाल किया जाता था.
   माँ इसको अपना हाथ पोंछने के लिए 
           तौलिया के रूप में भी
           इस्तेमाल का लेती थी.
         खाना खाने के बाद 
     पल्लू से मुँह साफ करने का 
      अपना ही आनंद होता था.
      कभी आँख मे दर्द होने पर ...
    माँ अपने पल्लू को गोल बनाकर, 
      फूँक मारकर, गरम करके 
        आँख में लगा देतीं थी,
   दर्द उसी समय गायब हो जाता था.
माँ की गोद में सोने वाले बच्चों के लिए 
   उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू
        चादर का काम करता था.
     जब भी कोई अंजान घर पर आता,
           तो बच्चा उसको 
  माँ के पल्लू की ओट ले कर देखता था.
   जब भी बच्चे को किसी बात पर 
    शर्म आती, वो पल्लू से अपना 
     मुँह ढक कर छुप जाता था.
    जब बच्चों को बाहर जाना होता,
          तब 'माँ का पल्लू' 
   एक मार्गदर्शक का काम करता था.

     जब तक बच्चे ने हाथ में पल्लू 
   थाम रखा होता, तो सारी कायनात
        उसकी मुट्ठी में होती थी.
       जब मौसम ठंडा होता था ...
  माँ उसको अपने चारों ओर लपेट कर 
    ठंड से बचाने की कोशिश करती.
          और, जब वारिश होती,
      माँ अपने पल्लू में ढाँक लेती.
  पल्लू --> एप्रन का काम भी करता था.
  माँ इसको हाथ तौलिया के रूप में भी 
           इस्तेमाल कर लेती थी.

 पल्लू का उपयोग पेड़ों से गिरने वाले 
  जामुन और मीठे सुगंधित फूलों को
     लाने के लिए किया जाता था.

     पल्लू में धान, दान, प्रसाद भी 
       संकलित किया जाता था.
       पल्लू घर में रखे समान से 
 धूल हटाने में भी बहुत सहायक होता था.
      कभी कोई वस्तु खो जाए, तो
    एकदम से पल्लू में गांठ लगाकर 
          निश्चिंत हो जाना , कि 
             जल्द मिल जाएगी.
       पल्लू में गाँठ लगा कर माँ 
      एक चलता फिरता बैंक या 
     तिजोरी रखती थी, और अगर
  सब कुछ ठीक रहा, तो कभी-कभी
 उस बैंक से कुछ पैसे भी मिल जाते थे.
       मुझे नहीं लगता, कि विज्ञान
     इतनी तरक्की करने के बाद भी 
     पल्लू का विकल्प ढूँढ पाया है.

      पल्लू कुछ और नहीं, बल्कि
     ◆ एक जादुई एहसास है. ◆
    आधुनिकता ने हमारी मूल धरोहर, 
 हमारे संस्कारों को, हमारी संस्कृति को
          धूमिल अवश्य किया है.

      संस्कार एवं संस्कृति फिर वही 
   पल्लू वाला समय ले आए, जिससे
         बच्चे अपने बचपन को 
           पुनः प्राप्त कर सकें.
           यही ईश विनती है.
     पुरानी पीढ़ी से संबंध रखने वाले 
  अपनी माँ के इस प्यार और स्नेह को 
    हमेशा महसूस करते हैं, जो कि 
      आज की पीढ़ियों की समझ से 
             शायद गायब है।

🙏🏻💐🙏        
╲\╭┓
╭ 🌸 ╯  
┗╯\╲☆ ●═❥ ❥ ❥

पहाडी़ के दो आगे पहाडी़

पहाड़ी के दो आगे पहाड़ी,
  पहाड़ी के दो पीछे पहाड़ी,
बढ ना पाये तीनों पहाड़ी । 
कुंठित रह गये भीतर-भीतर।
बढ ना जाये अगला पहाड़ी,
खींच रहा है पिछला पहाड़ी।
बाहर खूब दिखावा करते,
कुढ़ते रहते भीतर भीतर।
जहां खड़ा था पहला पहाड़ी।
वही खड़ा हैं अब भी पहाड़ी।
भारत का दुर्भाग्य देखिये।
सुधर नहीं पाते हैं पहाड़ी। 
अन्य जातियाँ हो गयीं आगे।
एक नहीं हो पाये पहाड़ी।।

सभी पहाड़ी भाइयो को भेजो क्योंकि
*कडवा है पर है तो सच...*🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

कलश

*कलश से पूछा गया कि तुमने ऐसा क्या पुण्य किया है कि सबके सिर पर विराजते हो ?*

*उसने कहा कि मिट्टी के रूप में था तब पैरों में गूंथा गया, बनने के बाद धूप में तपा, फिर अग्नि में जलाया गया, इतनी साधना और अपमान के बाद तुम्हारे सिर पर आया हूं ।*
*जीवन में साधना और अपमान को विष न मानकर इसको अपने सम्मान का अमृत बना लेना चाहिए।*
*भगवान का कोई आकार नहीं*

किसने कहा, भगवान् साकार नहीं है ? 
सभी आकार उसी के है। 

भगवान् का कोई आकार नहीं है। 
तुम  भगवान् का आकार खोज रहे हो, 
इसलिए सवाल उठता है 
कि भगवान् साकार क्यों नही। 
🌺🏵️
वृक्ष में भगवान् वृक्ष है. 
पक्षी में पक्षी है, 
झरने मे झरना है , 
आदमी में आदमी है, 
पत्थर में पत्थर है,
 फूल में फूल है। 

तुम भगवान् का आकार खोज रहे हो, तो चूकते चले जाओगे।   

सभी आकार जिसके हैं, उसका अपना कोई आकार नहीं हो सकता। 
अब यह बड़े मजे की बात है। 

इसका अर्थ हुआ कि सभी आकार जिसके है वह निराकार! 

सभी नाम जिसके है उसका अपना नाम कैसे होगा ? 
जिसका अपना नाम है उसके सभी नाम कैसे हो सकते।  सभी रुपों से जो झलका है उसका अपना रुप नहीं हो सकता। 
जो सब जगह है उसे एक जगह खोजने की कोशिश करोगे तो चूक जाओगे। 
सब जगह होने का एक हीं ढंग है 
कि वह कहीं भी न हो। अगर कहीं होगा तो सब जगह न हो सकेगा। 
कहीं होने का अर्थ है : सीमा होगी।  सब जगह होने का अर्थ  है : कोई सीमा न होगी। 

तो परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है। 
"परमात्मा सभी के भीतर बहती जीवन की धार है"। 

वृक्ष में हरे रंग की धार है- जीवन की! 
वृक्ष आकाश की तरफ उठ रहा है - 
वह उठान परमात्मा है।
वृक्ष छिपे हुए बीज से प्रगट है रहा है - 
वह प्रगट होना परमात्मा है। 
परमात्मा किसी जैसा नहीं, 
क्योंकि फिर सीमा आ गई। 

अगर परमात्मा पुरुष जैसा हो, 
तो फिर स्त्री मे कौन होगा ? 
स्त्री जैसा हो तो पुरुष वंचित रह जाएगा। 
मनुष्य जैसा हो तो पशुओं मे कौन होगा ? 
और पशुओं जैसा हो तो पौधों में कौन होगा ? 
इसे समझने की कोशिश करो। 
परमात्मा जीवन का विशाल सागर है। 
हम सब उसके रुप हैं, तरंगें हैं। 
हजारों ढंगो में वह मौजूद है। 
कितना हीं प्रगट होता चला जाए, 
अनंत रुप से प्रगट होने को शेष है। 
परमात्मा अस्तित्व का नाम है। 
इसलिए तो उपनिषद कहते हैं, 
उस पूर्ण से हम पूर्ण को भी निकाल लें तो पिछे पूर्ण हीं शेष रहता है.... 
🌹🌹👁🙏👁🌹🌹
  ‼ *आपका दिन शुभ हो*

बुधवार, 27 जनवरी 2021

ईजा भक्ति

Nice poem : Author Unknown :

 ईजा भक्ति में कुछ पंक्तियाँ... 

पहाडूँ की देवीक रूप छू ईजा,
गर्मी में छाया जाड़ान में धूप छू  ईजा 
ईजा छू तो उज्याव छू अन्यार में,
ईजा छू तो हँसी छू परिवार में।।

ईजा छू त झोई भात छू,
ईजा छू त चुड़कानि में स्वाद छू,
ईजा छू त बुराँस में रंग छू,
ईजा छू तो त्यार वारन में उमंग छू।। 🙏🏻🙏🏻

ईजा छू तो हर दु:ख दूर छू,
ईजा घरैकि छत व धूर छू,
ईजा गंगोत्री छू,ईजा यमुनोत्री छू,
ईजा सबैनकै एक राखिनी छत्री छू।। 🙏🏻🙏🏻

ईजा यमुना छु,ईजा गंगा की धार छू,
सच जब तक ईजा छू तब तक परिवार छू,
ईजा सत्यनारायणज्यू की काथ छू,
ईजा छू तो दूर हर व्यथा छू।। 🙏🏻🙏🏻

बँजानी धुराको धारा छू ईजा,
चाँद,सूरज,ध्रुबतारा छू ईजा,
ईजा छू तो म्यार  बाट साफ छू,
ईजा छू त मेरि हर गल्ती माफ छू।। 🙏🏻🙏🏻

ईजा तपस्या छू,ईजा भक्ति छू,
सच ईजाक आशीश में भौतै शक्ति छू,
ईजा तूँ छै त खेतों में हरियाली छू,
ईजा तू छै तो साल भर धिनाली छू।। 🙏🏻🙏🏻

घरौक श्रिंगार तू छै ईजा,
खुशी की बहार तू छै ईजा,
ईजा तू छै त काँणा ले फूल छन,
ईजा तू छै तो ढूँगा ले धूल छन।। 🙏🏻🙏🏻

तेरी उमर लम्बी है जा ईजा,
तेरा हाथ म्यार ख्वार  में रौ ईजा,
ईजा तू छै तो खेतन में हरियाली छू,
ईजा तू छै तो साल भर धिनाली छू।।

सादर ||

मंगलवार, 19 जनवरी 2021

गौ गौ पहाड़

कविता देव सती

गौ गौ पहाड पलायन हैगौ

मंखी सब शहर न्हैगौ

गौ अब विरान हैगौ

किसान सब बर्बाद हैगौ

सुअर बानर खेतम ऐगौ

खेत सब बाज पड गई

यस हमर पहाड हैगौ

लोगौक बुलाण नी सुणिन

नानतीनाक टिटाट नी सुणीन

पहाड हमर बिरान हैगौ

कस य पहाड छी

कस य पहाड हैगौ