||पुराण जमानक नई फैशन||
चल रो कलयुगी टैम
ज्यूून पराणियों कै भैमे भैैम
दनादन सब दौड री
आपूण संस्कृति के छौडे री ।
पली बटिक टाल वाल पैंट मे शरम लागछी।
आज टाल लगई जींस हजार मे खरिदै री
बिन फैशनै जीवन कस।
अनपढ गवॉर मुर्ख जस।
आड त्यरछ जस लै हो।
उल्ट सीध कस लै हो।
बस नई फैशने के देखने रो।।
चाहै है जो अंग प्रदर्शन ।
पर नी ओ फैशन मे अड़चन।
फैक हैलो लाज शरम उतारि।
कर हैलि हमरि संस्कृति पर प्रहार।
मर्यादा मे सब भाल।
घाम पाणी हाव रोल।
दि भगवानुल सुन्दर रुप।
किलै बणुछा इकै कुरुप।
छोड द् यो फैशने के पिछाडी।
आपण संस्कृति के अपनाया।
झन चलिया दोहरोक पिछाडी।
तुमर बाटं तुमी बनाया।।।
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