आज मिकें भौतें कम देखिनि रामलील नाटक हून
घनघोर जंगोंव मे भटकणि वाल राम लखन
तूमुल देखी तुमूल देखी हरैई सीता
खडाऊं लिबैर अयोध्या लौटणि वाल भरत
पांव पखार कठौती क जल वाल मंत्रमुग्ध मंल्लाह काछैं
लक्ष्मण ल नाक काटि सूर्पनखा बैहाल छ
खर दूषण बध कर तबै य बवाल छ
स्वर्ण मृग बनिबैर घा खाणि वाल मारिच
मिठ्ठ मिठ्ठ बैर चखबैर धरणि वालि शबरी
नारी कै चोर बैर लि जाणि वाल रावण
लड़ बैर पंख कटाणि वाल जटायू
चानै चानै लडूहूं तैयार रुछी
हनुमान सुग्रीव जामवंत अंगद
राम राम रटनि वाल लंका विभीषण
लंका के धूं धूं जलोणि वाल हनुमान
पुरुषोत्तम राम सीता कें कंलंकित करणि वाल धौबि
अश्वमैघ यज्ञ क घ्वड़ पकडी़ वाल लवकुश
रामायण रचाणि वाल बाल्मिकी
त्रैतायुग मे सब मिलछी
य कलयुग मे आपाधापी
छल कपट कोलाहल शोर भरी
जीवनयुद्ध मे हम सब पापी
हम तो केवल नाचैं रु राम जाणो को हमूकें नचू रो
य रामलील नाटक देख बैर
कै हम समझ रु कै हमर समझ मे उरों
बताओ धै....
देव सती पहाडी़ बटोही