शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

रामलीला पर कविता

आज मिकें भौतें कम देखिनि रामलील नाटक हून
घनघोर जंगोंव मे भटकणि वाल राम लखन
तूमुल देखी तुमूल देखी हरैई सीता
खडाऊं लिबैर अयोध्या लौटणि वाल भरत
पांव पखार कठौती क जल वाल मंत्रमुग्ध मंल्लाह काछैं 
लक्ष्मण  ल नाक काटि सूर्पनखा बैहाल छ
खर दूषण बध कर तबै य बवाल छ
स्वर्ण मृग बनिबैर घा खाणि वाल  मारिच
मिठ्ठ मिठ्ठ बैर चखबैर धरणि वालि शबरी
नारी कै चोर बैर लि जाणि वाल रावण
लड़ बैर पंख कटाणि वाल जटायू
चानै चानै लडूहूं तैयार रुछी
हनुमान सुग्रीव जामवंत अंगद
राम राम रटनि वाल लंका विभीषण
लंका के धूं धूं जलोणि वाल हनुमान
पुरुषोत्तम राम सीता कें कंलंकित करणि वाल धौबि
अश्वमैघ यज्ञ क घ्वड़ पकडी़ वाल लवकुश
रामायण रचाणि वाल बाल्मिकी
त्रैतायुग मे सब मिलछी
य कलयुग मे आपाधापी
छल कपट कोलाहल शोर भरी
जीवनयुद्ध मे हम सब पापी
हम तो केवल नाचैं रु राम जाणो को हमूकें नचू रो
य रामलील नाटक देख बैर 
कै हम समझ रु कै हमर समझ मे उरों 
बताओ धै.... 
देव सती पहाडी़ बटोही

बुधवार, 2 अक्टूबर 2024

श्रीमान रतन सिंह किरमोलिया ज्यू क कुमाउनी कविता

कोशीश करला है जाल।
चै रौला रै जाल ।।
काम क्वे लै कठिन न्हैं।
कामै कि लिजी लगन चैं।।
मन जगाला जागि जाल।
ध्यान लगाला लागि जाल ।।
बस मन अर ध्यान एक चैं।
काम क परण नेक चैं।।
करि सकौ जो बखतै पन्यार।
मज्जल वैलै करै पार ।।
नय नय स्वैण देखण पड़ाल।
नय नय बाट ढुनण पड़ाल ।।
भरण पड़ैलि लंबी उड़ान।
फानण पड़ल ठुल तोफान।।
मिहनत कि भितेर जगाओ ललक।
तबै हात लागलि भलि सलक।।
उठो आब ठाड़ बादो कमर।
फिरि कां मिलैं य उमर।।
नानो ! तुम हमर देशाक तराण छा।
आपण मैं बाबोंक तुम पराण छा।।

रतन सिंह किरमोलिया

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024

मूर्ति विसर्जन

मूर्तियोंक विसर्जन तुम चुप किले छा»

रौल गध्यारों किनारों  पर
देखो मैल  देवी मय्या क मूर्ति विसर्जन

पर यू गध्यारों मे उ ताकत का
उ किनार लगै द् यू 
खंडित प्रतिमा
आदू काटि ख्वर
टूटी चूड़ि
बिखरे बाव
फटी चुनरि
स्वास्तिकाक  सुसज्जित कलशों क
खंड-खंड
फट री मय्या क वस्त्र
एक ओर लाग री
मय्या क  जयकारा
तो कथैं पड़ी रे मय्या क मूर्ति निर्वस्त्र
धर्म क नाम पर
य कस काम
माँ दुर्गा क य कस सम्मान?
जो मूर्तिक  पूज पाठ करि
सम्मान दि
माँ-माँ कै बैर 
पुत्र हून क मान दि
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
क जाप कर
तुमि आदि शक्ति
शक्ति स्वरूपा छा
म्येरि जीवनदायिनी
कल्याणमयी मय्या छा
फिर किले मय्या क विसर्जन
किले निष्कासित
इतू अपमानित।
कब तक चलल
य पाखंड?
स्त्री शक्ति क उपहास
स्त्रीयूक  क मानमर्दन
मूल्यों क हृास
आओ मिलकर करुल  य संकल्प
अब नि  करुल मय्या विसर्जन
उके प्रति वर्ष संवारुंल
नई रंगोंल सजोंल
क्येलेकि मय्या न्हैती  विसर्जन छवि
छ प्रेम प्रतिष्ठा क अक्षय निधि।