मंगलवार, 8 नवंबर 2022

राजु पाण्डेय जी की कविता

ठौर
***

पाथर वाला घर
उसमें दो छोटे छोटे कमरे
एक कमरे के एक कोने में चुलान
दूसरे कोने में देवता की थाई
दूसरे कमरे के एक कोने में
गेहूँ, मड़वा पीसने की चक्की
असोज में
एक कोने में मड़वा, मादरा
चार भाई बहिन, ईजा, आमा
साल में दो महीने की छुट्टी आते
फौजी पापा
एक बिल्ली और उसके बच्चें
नीचे गौठ में गौठ भर जानवर
आते जाते पोन-पाछी
बारिश में टप्प टप्प करती छत
खाना बनाते हुए होलपट्ट
फिर भी असज नहीं हुआ कभी
मन और रिश्ते बड़े थे और दिखावा छोटा
तो ठौर हो ही जाती थी।

शब्दार्थ:
चुलान - रसोई
थाई- घर के अंदर बना छोटा मंदिर
गौठ - पालतू जानवर बांधने का कमरा
पोन-पाछी - रिश्तेदार
होलपट्ट - धुंवा धुंवा
असज - परेशानी
ठौर - जगह

© राजू पाण्डेय
ग्राम - पो. बगोटी (चम्पावत)
यमुनाविहार - दिल्ली

शनिवार, 5 नवंबर 2022

श्री पूरन चन्द्र काण्डपाल जी की कविता

खरी खरी - 1159 :  गिच खोलणी चैनी

मसमसै बेर के नि हुन
बेझिझक गिच खोलणी चैनी,
अटकि रौछ बाट में जो दव
हिम्मतल उकैं फोड़णी चैनी ।

अन्यार अन्यार कै बेर
उज्याव नि हुन,
अन्यार में  एक मस्याव
जगूणी चैनी । 
मसमसै..

जात  - धरम पर जो
लडूं रईं हमुकैं,
यास हैवानों कैं भुड़ जास
चुटणी चैनी ।
मसमसै ...

गिरगिट जस रंग
जो बदलैं रईं जां तां,
उनुकैं बीच बाट में
घसोड़णी  चैनी ।
मसमसै...

के दुखकि बात जरूर हुनलि
जो डड़ाडड़ पड़ि रै,
रुणीकैं एक आऊं 
कुतकुतैलि लगूणी चैनी ।
मसमसै बेर...

पूरन चन्द्र कांडपाल
05.11.2022

गुरुवार, 3 नवंबर 2022

दीपक करगेती जी की कविता

*घर कुड़ी पीछाड़ी कुरि कटारि*

कुड़ी पीछाड़ी, बाड़-ख्वड़ हैं छि
उनु मजि हंछि ,साग हरि
कोई उन्यूमें प्यांज लगा छि
कोई उगेछि उन्यूमें गडेरि
पै कसि हौला साग हरि?
को उगाल उन्यूमें गडेरि?
गौं बाखेइ ,बांजि पड़ी ग्ये
घर कुड़ी पीछाड़ी, कुरि कटारि ।।

एक हौवका बल्द हछि
कतु ते मंडु ,कतु झुवंर हछि
धान भकार भरिए रछि
भरिये र छि ग्यों ढूकैरि
जंगल जानर हांग घुसी री
कसि करूं हो खेति खन्यारि
गौं बाखेइ, बांजि पड़ी ग्ये
घर कुड़ी पीछाड़ी, कुरि कटारि ।।

को भुलौ,उं पांड़ी नोहौ 
पांड़ी गेलन,पांड़ी गागेरि
बकरां पोथिलु हुं, हैं छि छापेरी 
सुक गि नोहौ ,ना बचि गागेरी
 को बताओ ,बुंड़ोल छापरी
गौं बाखेइ, बांजि पड़ी ग्ये
घर कुड़ी पीछाड़ी ,कुरि कटारि ।।

त्योहारूं दिना, झर फर हैं छि
चैत महैन ,फुल खेलछि
जै घर मजिक भौ हैराया
उ भौ नामेकि ,घुमछि टोपेरी 
घा काटनि ,हछि घास्यारी
खों बनाड़ी, नाम रस्यारी 
आम गुठेइ,बनछि पिपिरि
गौं बाखेइ ,बांजि पड़ी ग्ये
घर कुड़ी पीछाड़ी, कुरि कटारि ।।

                स्वरचित
            दीपक करगेती