" *चलो जी लौट चलें* "
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चलो जी ! लौट चलें अब,
बहुत हो चुकी ऐशोआराम।
बच्चे वहां भी पढ़ ही लेंगे,
सबसे अच्छा अपना ग्राम।।
यहां इस महामारी में दम घुटता,
चैन नहीं अब सुबह और शाम।
दो वक्त की रूखी सूखी सही,
शुकुन भरा है अपना ग्राम।।
चुप रे पगली! तू ही झगड़ी थी,
कि मुझसे नहीं होता यहां काम।
न स्वास्थ्य न शिक्षा। न सुविधा,
छोड़ चल तू ऐसा ग्राम।।
अब किस मुंह है बोल रही,
क्यों जपती अब वही नाम।
अब क्यों भाये तुझको खंडहर,
जो कभी था मेरा ग्राम।।
आज वहां न खेत ही अपना,
कहाँ जाने अब खलिहान-मकान।
क्या जाने वहां कौन जगह दे,
किसका लूं अब वहां अहसान।।
देखो जी वह जैसा भी है,
है तो अपना पूज्य वही धाम।
वहीं तो डोला लेकर आये थे मेरा,
जिसे कह रहे हो अपना ग्राम।।
मुझे आज भी याद है गांव की,
खेती-पाती, सास-जेठानी तमाम।
वहां अमृत है कलकल बहता,
स्वछंद वायु है सुबह और शाम।।
यहां मौत का तांडव देखो,
कोई नहीं यहां अपना राम।
सब घरों में बंद हुए हैं,
अपने से सिर्फ अपना ही काम।।
कसम तुम्हारी अब न कहूंगी,
ले चलो तुम मुझे मेरे ग्राम।
वहीं मरूँगी जिऊँगी अब।
वहीं करूंगी अन्तिम विश्राम।।
*🙏स्वर्ग से सुंदर अपना गाँव🙏*