सोमवार, 27 जनवरी 2020

रामायण के सात सोपान

रामायण के सात काण्ड मानव की उन्नति के सात सोपान 

1 बालकाण्ड – बालक प्रभु को प्रिय है क्योकि उसमेँ छल , कपट , नही होता। विद्या , धन एवं प्रतिष्ठा बढने पर भी जो अपना हृदय निर्दोष निर्विकारी बनाये रखता है , उसी को भगवान प्राप्त होते है। बालक जैसा निर्दोष निर्विकारी दृष्टि रखने पर ही राम के स्वरुप को पहचान सकते है।

 जीवन मेँ सरलता का आगमन संयम एवं ब्रह्मचर्य से होता है। बालक की भाँति अपने मान अपमान को भूलने से जीवन मेँ सरलता आती है। बालक के समान निर्मोही एवं निर्विकारी बनने पर शरीर अयोध्या बनेगाजहाँ युद्ध, वैर ,ईर्ष्या नहीँ है , वही अयोध्या है ।

2. अयोध्याकाण्ड – यह काण्ड मनुष्य को निर्विकार बनाता है। जब जीव भक्ति रुपी सरयू नदी के तट पर हमेशा निवास करता है,तभी मनुष्य निर्विकारी बनता है।

भक्ति अर्थात् प्रेम ,अयोध्याकाण्ड प्रेम प्रदान करता है। राम का भरत प्रेम , राम का सौतेली माता से प्रेम आदि ,सब इसी काण्ड मेँ है। राम की निर्विकारिता इसी मेँ दिखाई देती है ।

अयोध्याकाण्ड का पाठ करने से परिवार मेँ प्रेम बढता है ।उसके घर मेँ लडाई झगडे नहीँ होते। उसका घर अयोध्या बनता है। कलह का मूल कारण धन एवं प्रतिष्ठा है। अयोध्याकाण्ड का फल निर्वैरता है ।सबसे पहले अपने घर की ही सभी प्राणियोँ मेँ भगवद् भाव रखना चाहिए।

3. अरण्यकाण्ड – यह निर्वासन प्रदान करता है। इसका मनन करने से वासना नष्ट होगी। बिना अरण्यवास(जंगल) के जीवन मेँ दिव्यता नहीँ आती। रामचन्द्र राजा होकर भी सीता के साथ वनवास किया ।वनवास मनुष्य हृदय को कोमल बनाता है। तप द्वारा ही काम रुपी रावण का बध होगा । इसमेँ सूपर्णखा(मोह )एवं शबरी (भक्ति)दोनो ही है। भगवान राम सन्देश देते हैँ कि मोह को त्यागकर भक्ति को अपनाओ ।

4. किष्किन्धाकाण्ड – जब मनुष्य निर्विकार एवं निर्वैर होगा तभी जीव की ईश्वर से मैत्री होगी ।इसमे सुग्रीव और राम अर्थात् जीव और ईश्वर की मैत्री का वर्णन है।

जब जीव सुग्रीव की भाँति हनुमान अर्थात् ब्रह्मचर्य का आश्रय लेगा तभी उसे राम मिलेँगे। जिसका कण्ठ सुन्दर है वही सुग्रीव है।कण्ठ की शोभा आभूषण से नही बल्कि राम नाम का जप करने से है। जिसका कण्ठ सुन्दर है ,उसी की मित्रता राम से होती है किन्तु उसे हनुमान यानी ब्रह्मचर्य की सहायता लेनी पडेगी।

5. सुन्दरकाण्ड – जब जीव की मैत्री राम से हो जाती है तो वह सुन्दर हो जाता है ।इस काण्ड मेँ हनुमान को सीता के दर्शन होते है।

सीताजी पराभक्ति है , जिसका जीवन सुन्दर होता है उसे ही पराभक्ति के दर्शन होते है ।संसार समुद्र पार करने वाले को पराभक्ति सीता के दर्शन होते है।

ब्रह्मचर्य एवं रामनाम का आश्रय लेने वाला संसार सागर को पार करता है ।संसार सागर को पार करते समय मार्ग मेँ सुरसा बाधा डालने आ जाती है , अच्छे रस ही सुरसा है , नये नये रस की वासना रखने वाली जीभ ही सुरसा है।

संसार सागर पार करने की कामना रखने वाले को जीभ को वश मे रखना होगा। जहाँ पराभक्ति सीता है,वहाँ शोक नही रहता , जहाँ सीता है वहाँ अशोकवन है।

6. लंकाकाण्ड – जीवन भक्तिपूर्ण होने पर राक्षसो का संहार होता है काम क्रोधादि ही राक्षस हैँ। जो इन्हेँ मार सकता है ,वही काल को भी मार सकता है।

जिसे काम मारता है उसे काल भी मारता है , लंका शब्द के अक्षरो को इधर उधर करने पर होगा कालं। काल सभी को मारता है किन्तु हनुमान जी काल को भी मार देते हैँ। क्योँकि वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हैँ,पराभक्ति का दर्शन करते है।

7. उत्तरकाण्ड – इस काण्ड मेँ काकभुसुण्डि एवं गरुड संवाद को बार बार पढना चाहिए । इसमेँ सब कुछ है ।जब तक राक्षस , काल का विनाश नहीँ होगा तब तक उत्तरकाण्ड मे प्रवेश नही मिलेगा ।इसमेँ भक्ति की कथा है। भक्त कौन है ? 

जो भगवान से एक क्षण भी अलग नही हो सकता वही भक्त है। पूर्वार्ध मे जो काम रुपी रावण को मारता है। उसी का उत्तरकाण्ड सुन्दर बनता है ,वृद्धावस्था मे राज्य करता है।

जब जीवन के पूर्वार्ध मे युवावस्था मे काम को मारने का प्रयत्न होगा तभी उत्तरार्ध – उत्तरकाण्ड सुधर पायेगा । अतः जीवन को सुधारने का प्रयत्न युवावस्था से ही करना चाहिए।

मंगलवार, 21 जनवरी 2020

2 पर्यावरण

हाव चै सबूकें शुद्ध
पेड़ नै क्वै लगू रई
अनजान मे सब रोगों के 
दगाड़ आपू बलू रई

हरियाली फैलै बे ओल 
अब हम सबूकें स्वस्थ बनूल
संदेश सब जाग फैलोल
आपन पर्यावरण बचूल




जैकै कूनी पृथ्वीक आवरण 
उ छ हमर पर्यावरण
प्रदूषण बन गो पर्यावरण क
चिंता क कारण

य प्रदूषण यसि बढें रो 
जैक न्हैति क्वै माप
दैखों कसी माठू माठ
बनै रो अभिशाप

हरियाली खत्म ह्वैगै
धधकैरै सूरजैक ज्वाला
दिनोंदिन बढणि प्रदूषण
औजोन परत कै बनू रो निवाला



प्रकृतिक रक्षा करो
प्रदूषण रोक बैर
वृक्षारोपण करबैर
प्रदूषण पर करो वार
प्रकृतिक करो सम्मान
पर्यावरण क स्वच्छताक ले धरिया ध्यान

यैक रक्षा हैतु तुम चलावों
प्रदूषण मुक्ति अभियान




 पर्यावरण पर भारि प्रदूषण 
राक्षसों क राज खरदूषण

आऔ य संकल्प उठूल
आपण पर्यावरण बचूल

हर दिन एक नई वृक्ष लगूल 
आपन आपन जीवन बचूल




बानों बान य धरा क ऑचव
जैक नील अगास
पहाडों जस उच कपाव
वि पर सूर्ज चन्द्रमा जस बिंदियूक ताज
गध्यार छीण जास छल छल छलकनी यौवन
सतरंगी पेड पौधोंक स्यूनि सिंगार
खेत खलिहानों मे लहलहाणि मंद मंद मुस्कान
*हौई यई त छ य प्रकृतिक स्वच्छ स्वरुप*

*रचनाकार परिचय*
नाम-देवेन्द्र सती(मस्त पहाडीं)
बौज्यू-स्व•श्री चन्द्रादत सती
ईजा-हेमा देवी
जन्मस्थान-गौ-पाखुडा़(पपनैपुरी)
पोस्ट-उपराडीं
राणिखेत उत्तराखण्ड
फोन-9411300850
ई मेल -Devendrasati2@gmai.com
शैक्षिक योग्यता-10 वी पास
शौक -कुमाऊनी मे कविता लेखणक